कृष्णपाल सिंह इंदौर। पानी के लिए शहर में लोग लाठियां खा रहे हैं। बताया जा रहा है कि पानी का भारी संकट है। वहीं सूत्र कह रहे हैं, कई बार संकट पैदा किया जाता है ताकि पानी के रास्ते पैसा बहता रहे। बीते एक साल (मार्च 2015 से मार्च 2016) के दौरान नर्मदा लाइन 471 बार फूटी (या फोड़ी गई)। मतलब... महीनें में 40 बार, मतलब... औसन रोजाना एक से ज्यादा जगह। इसके सुधार पर ही पांच करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च कर दिए गए। इसमें वो लाइनें भी शामिल हैं जिन्हें बिछे हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है। मतलब, अफसरों का यह बहाना भी बेमानी है कि लाइनें पुरानी हो गई हैं और प्रेशर बर्दाश्त नहीं कर पा रहीं। तो फिर क्या वजह है कि नर्मदा रोज पाइप फोड़ सड़क पर प्रकट हो जाती है। वजह है भ्रष्टाचार। पाइप लाइन सुधार और पाइप रिप्लेसमेंट पर होने वाला भारी भरकम खर्च और उससे मिलने वाला कमीशन। कौन खा रहा है, कौन खिला रहा है यह बड़े अफसर जांचें लेकिन यह तय है कि खाने-खिलाने के इस खेल में जनता को अक्सर पानी पीने के लाले पड़ जाते हैं।
471 का यह आंकड़ा निगम के दस्तावेजों में दर्ज है। 471 बार बाहर आए पानी को वापस सही रास्ते पर लाने के लिए निगम को कम से कम 5 करोड़ रुपए खर्च करना पड़े। सूत्रों के मुताबिक एक बार लाइन फूट जाए तो कम से कम 25 हजार से 5 लाख रुपए तक खर्च हो जाते हैं। यहां औसतन एक लाख रुपए प्रति लीकेज भी माने तो आंकड़ा 5 करोड़ को छूता नजर आ रहा है। दस्तावेजों में यह खर्च इससे ज्यादा ही मिलेगा। क्योंकि कई लाइन तो लीकेज के मामले में ‘आदतन’ हो गई है। गीता भवन चौराहा, रेसकोर्स रोड, भमोरी, अन्नपूर्णा टंकी क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां चाहे जब मिट्टी के ढेर पर सावधान वाली लाल झंडी, लहराती नजर आती है। जानकार कहते हैं जितनी आसानी से लाइन फूटना बता दिया जाता है, न तो पाइप इतने ‘नाजुक मिजाज’ हैं कि पानी के प्रेशर के आगे ‘पानी’ मांगने लगें न ही पानी की रफ्तार इतनी तेज है कि इतने बलिष्ठ पाइप को भेदकर सड़क पर आ जाएं। हकीकत तो यह है कि शहर के अधिकांश हिस्सों में पानी इतने सहमे-सहमे जाता है कि लोग कुछ समझें न समझें उससे पहले ही पानी (नल) आकर जा चुकाहोता है, फिर प्रेशर की बात कहां से आ गई।
फिर ये लाइन क्यों फूटती है? सूत्र कहते हैं, लाइन फूटने के पीछे गहरा अर्थशास्त्र है जिसे कतिपय अफसर और ठेकेदार मिलकर लिखते हैं। लाइन फोड़ो, फिर जोड़ो और उसमें अपना हिसाब-किताब जोड़ो। जहां लाइन फूटती है वहां जोड़ने से पहले ही तय हो जाता है कि फीते को उतना ही कसना है कि नर्मदा हफ्ते-दो हफ्ते में दोबारा सड़क पर दर्शन दे दे। फीता ढीला रखेंगे, तो फिर गढ़्ढा, फिर लाल झंडी, फिर बिल बनेगा। लाइनों का इतिहास उठाकर देख लीजिए (देखें तालिका) कई क्षेत्रों के रहवासी भी अभ्यस्त हो गए हैं कि हमारे क्षेत्र में महीने-पंद्रह दिन में लाइन फूटती ही है। ऐसा नहीं है कि हर जगह लाइन फोड़ी ही जाती है, बहुत पुरानी कुछ लाइनें सचमुच भी फूटती हैं लेकिन कई जगह इन्हें नियोजित तरीके से खंडित किया जाता है। बार-बार लाइन फूटने से शक गहराया तो शिकायत अपर आयुक्त देवेंद्रसिंह तक जा पहुंची। जांच हो रही है।
एक लाइन फूटे तो 50 हजार लोग प्रभावित होते हैं
जानकारों के मुताबिक हर बड़ी लाइन से दो से तीन टंकियां जुड़ी होती हैं। एक टंकी से करीब 50 हजार कनेक्शन होते हैं। मतलब लाइन फूट जाए तो हाहाकार होता है। मटके फूटते हैं, चक्काजाम होता है, लाठियां बरसती हैं। बस यही इमरजेंसी कमीशन खाने वालों के लिए वरदान होती है। आनन-फानन में लाइन सुधारने के लिए बजट भी जल्दी मंजूर हो जाता है और ठेकेदार भी झोला लेकर तैयार बैठा रहता है सूुधार के लिए क्योंकि 50 हजार लोगों की प्यास का सवाल होता है।
पानी की कोई कमी नहीं है
बता दें कि शहर में पानी की कोई कमी नहीं है। नर्मदा, यशवंत सागर, सरकारी बोरिंग (निजी की तो गिनती ही नहीं है) मिलकर ही शहर की जरूरत आसानी से पूरी कर सकते हैं लेकिन गड़बÞड़ है पानी के व्यवस्थित मैनेजमेंट की। लेकिन बात वही है कि यदि पानी व्यवस्थित बंटने लगेगा, पाइप लाइन सलामत रहेगी तो कुछ लोगों के घर सूखे रह जाएंगे।
जरूरत से ज्यादा है पानी
यानी कुल पानी 425 एमएलडी। कुदरती लीकेज के हिस्से 20 एमएलडी पानी कुदरती लीकेज और अव्यवस्थाओं के हिस्से में डाल दें तो भी 400 एमएलडी खरा पानी जनता के लिए है, उसके बाद भी लाठियां चल रही है, जाम लग रहे हैं तो यह हालात किसी कुएं से भी गहरे षड़यंत्र की तरफ इशारा कर रहे हैं।
पता करेंगे क्यों बार-बार फूटती है लाइन
लगातार पानी पर काम कर रहे हैं। यशवंत सागर से 30 एमएलडी पानी मिलता था, चूंकि अभी समस्या है इसलिए 15 एमएमडी मिल रहा है। अब इन टंकियों को नर्मदा के पानी से भर रहे हैं। इसके अलावा नर्मदा का अतिरिक्त 45 एमएलडी पानी भी बढ़ाया है। कई बोरिंग सूख गए हैं। पूरी गर्मी निकल गई, अब 10-12 दिन से दिक्कत हो रही है, लेकिन हम पानी वितरण की व्यवस्था कर रहे हैं। आप बता रहे हैं, तो मैं पता करती हूं कि एक ही स्थान पर बार-बार लाइनें क्यों फूटती हैं।
- मालिनी गौड़, महापौर