रफी मोहम्मद शेख इंदौर। देअविवि में नए सत्र से सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए अनजान व्यक्ति को अंदर जाने से रोकने की योजना बनाई गई है। यहां पढ़ने वाले विद्यार्थी, कर्मचारी और शिक्षक तक के गले में फोटोयुक्त आईडेंटिटी कार्ड अनिवार्य किया जाएगा। साथ ही बाहरी व्यक्तियों को भी अंदर आने के लिए इंट्री कराना जरूरी होगा। देश के अन्य विश्वविद्यालयों की तर्ज पर ये व्यवस्था लागू की जा रही है।
कुलपति डॉ. नरेंद्र धाकड़ ने कुर्सी संभालने के बाद बदलाव शुरू कर दिए हैं। विवि के खंडवा रोड स्थित तक्षशिला परिसर में बैठते ही उनके सामने सबसे बड़ा मुद्दा बाहरियों के कैंपस प्रवेश का आया है।
बाहरियों का आना रुकेगा
विवि के लगभग सभी टीचिंग डिपार्टमेंट तक्षशिला कैंपस और उससे जुड़े हैं। इसमें करीब 20 हजार विद्यार्थी अध्ययनरत रहते हैं। कैंपस में सबसे बड़ी आवाजाही इनकी ही रहती है। इस सत्र से सभी टीचिंग डिपार्टमेंट इन्हें आइडेंटिटी कार्ड इश्यु करेंगे, जिन्हें गले में डालकर रखना होगा। कैंपस और उसके बाद टीचिंग डिपार्टमेंट में इसकी चेकिंग की जाएगी। बिना इसके विद्यार्थी प्रवेश नहीं कर पाएंगे। इससे बाहरी विद्यार्थियों का अंदर आना रुकेगा। विवि अब विद्यार्थियों के अतिरिक्त शिक्षकों और टीचिंग डिपार्टमेंट के कार्यालयीन स्टाफ को भी पहचान-पत्र जारी करेगा। इससे यहां की फैकल्टी व स्टाफ को भी पहचान के बाद ही अंदर जाने दिया जाएगा।
खेलने आने वालों के लिए भी
साथ ही आरएनटी मार्ग स्थित मुख्य प्रशासनिक भवन व अन्य डिपार्टमेंट में कार्यरत स्टाफ के लिए भी कार्ड बनवाए जाएंगे। ऐसी ही व्यवस्था शाम को घूमने आने वाले और मैदानों पर खेलने वालों के लिए भी रहेगी। उनके लिए भी मासिक पास जारी होंगे। खेलने आने वालों के लिए विवि ने दो सौ से पांच सौ रुपए तक फीस लेने का प्रस्ताव पारित किया है, लेकिन ये मूर्त रूप में नहीं आ पाया है। उधर, अंदर किसी से मिलने जाने वाले की भी इंट्री होगी या टेंपरेरी कार्ड जारी किया जाएगा। इससे आने का प्रयोजन पता रहेगा।
सुरक्षा के साथ पहचान भी
कुलपति के अनुसार नई व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य सुरक्षा तो है ही, विद्यार्थी, शिक्षक या कर्मचारी की पहचान भी रहेगा। इससे काम न करने या पहचान की स्थिति में कोई भी कार्ड से उनका नाम बता पाएगा। देश के सभी बड़े विश्वविद्यालयों में यही व्यवस्था रहती है। नई व्यवस्था से विवि का स्टेटस भी दिखेगा। वैसे, कई पूर्व कुलपतियों ने कर्मचारियों और स्टाफ के पहचान-पत्र बनवाए थे, लेकिन ये गले के स्थान पर लोगों की जेब में रहते हैं। कई डिपार्टमेंट के विद्यार्थी भी इन्हें नहीं पहनते हैं।