विनोद शर्मा इंदौर। मई 2015 में जिस श्रीवर्धन कॉम्पलेक्स में दो हवाला कंपनियों के आॅफिस सील किए गए थे, उसी कॉम्पलेक्स में गुरुवार को चार ठिकानों पर हुई इनकम टैक्स की छापेमार कार्रवाई इंदौर में बढ़ते हवाला कारोबार का कद भी बता रही है। हालांकि वक्त के साथ हवाले के तौर-तरीकों के साथ ही इस माध्यम से रकम भेजने वाले भी बदल गए हैं। इंदौर में हर दिन करोड़ों रुपए हवाले के माध्यम से राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल भेजे जाते हैं। कपड़ा, सराफा और इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट के साथ ही शहर का किराना कारोबार तक हवाले के लेन-देन से चल रहा है।
2004 से 2016 के बीच आयकर विभाग और अन्य एजेंसियों की छापामार कार्रवाई में जितने भी मामले सामने आए हैं, उनकी जांच में पता चला है कि मप्र में हर रोज औसतन 300 करोड़ रुपए का हवाला कारोबार होता है, लेकिन जांच एजेंसियां इसकी जड़ तक नहीं पहुंच सकी हैं। गुजरात व राजस्थान में आंगड़िया सर्विस रुपए लाती-ले जाती है। वहीं महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से लेन-देन के लिए शहर में दर्जनों अर्बन को-आॅपरेटिव सोसायटी संचालित हैं, जिनके खिलाफ भी आयकर ने एक के बाद एक छापेमार कार्रवाई की और अरबों का बेनामी लेन-देन उजागर किया।
इन कारोबारों में बड़ा लेन-देन
रेडीमेड कारोबार, किराना कारोबार, ड्राइफ्रुट कारोबार, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स (मोबाइल ऐसेसरिज, चायनामेड आइटम, सीरिज, बल्ब, लैंप) के कारोबार में भी टैक्स के साथ ही टैक्सेशन एजेंसियों की संख्ती होने के कारण गुपचुप कारोबार और चोरी छिपे लेनदेन होता है।
इसलिए तह तक नहीं पहुंच पाती एजेंसियां
जितने आॅफिस पकड़े जाते हैं, उनमें सिर्फ एक रजिस्टर ही मिलता है जिसमें अनाप-शनाप नामों की इंट्री होती है।
अघोषित रकम पकड़े जाने के बाद लोग क्लैम करने नहीं आते।
को-आॅपरेटिव सोसायटी में भी एक दुकान के खाते कर्मचारियों के नाम पर खोल दिए जाते हैं उनके भी पते फर्जी होते हैं।
कड़ी सजा का प्रावधान नहीं है। आॅफिस पर दबिश दी तो दूसरा आॅफिस खोलकर बैठ जाते हैं।
पूरा खेल कोडिंग से होता है, इसीलिए पकड़ आसान नहीं होती। जो मौके पर पकड़ा गया वही चोर कहलाता है।
दो साल में दो हजार करोड़ का खुलासा
आयकर विभाग को प्रदेश के नर्मदा हॉस्पिटल, मनोहर डेयरी, मोयरा समूह, केटी कंस्ट्रक्शन सहित कई उद्योगपतियों के यहां की गई कार्रवाई में हवाला कनेक्शन के दस्तावेज मिले हैं। 2014 से 2016 के बीच गुरु शरण अर्बन क्रेडिट को-आॅपरेटिव, कान्हां क्रेडिट को-आॅपरेटिव, वर्धमान क्रेडिट को-आॅपरेटिव, राजेंद्र सूरी को-आॅपरेटिव बैंक, बुलढ़ाणा क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसायटी, श्री रेणुकामाता अर्बन क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसायटी पर हुई दबिश के दौरान 2000 करोड़ से अधिक के हवाला कारोबार के खुलासे ने इंदौर को बड़ा गढ़ बना दिया है। इनसे महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ के कनेक्शन भी सामने आए हैं। इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर जैसे शहरों में ही नहीं लगभग हर छोटे-बड़े शहर में हवाला कारोबारी हैं। ये कारोबारी चंद मिनटों में करोड़ों रुपए दुबई से दिल्ली और अमेरिका तक ट्रांसफर कर देते हैं।
सराफा भी बड़ा गढ़
गुजरात और राजस्थान में सोने पर इंट्री टैक्स की छूट है, जबकि मप्र में दो प्रतिशत टैक्स लगता है। इसीलिए इंदौर में बैठे सोने के बड़े कारोबारियों ने गुजरात-राजस्थान में भी अपना अड्डा खोल लिया है। वहीं से सोना यहां आता-जाता है और रकम का लेन-देन हवाले से होता है। 21 मार्च 2016 को भी जूनी इंदौर पुलिस ने आरटीओ रोड निवासी नमोस उर्फ नीमेश तलरेजा को 50 लाख 50 हजार 210 रुपयों के साथ गिरफ्तार किया था। नीमेश माणिक बाग निवासी जितेंद्र ललवानी का कर्मचारी था। ललवानी ने उसे रुपए सराफा में एक पार्टी तक पहुंचाने को कहा था।
चॉकलेट का डिब्बा
क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसायटी की पासबुक को चॉकलेट का डिब्बा कहा जाता हैं, जबकि डिमांड ड्राफ्ट (डीडी) को कैडबरी का नाम दिया गया है।
काजू-बादाम : हवाला कारोबार से जुड़े नीमेश के मोबाइल की तलाशी में रुपयों को काजू-बादाम के रूप में परिभाषित करते हुए मौके पर पहुंचाने की बात कही गई थी। व्यापारी रुपयों की जगह काजू-बादाम शब्द का उपयोग करते हैं। इस कोडवर्ड को वही लोग समझ पाते हैं, जो हवाला कारोबार करते हैं।
गांधी क्या बोला: एक नोट के दो टुकड़े करके एक पास में रखा जाता है दूसरा पार्टी को दे देते हैं। जब डिलीवरी लेने या देने जाती है, तो पार्टी से नोट का नंबर पूछते वक्त कहा जाता है गांधी क्या बोला? फिर वह नोट की सीरिज के आखिरी तीन नंबर बता देता है।