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दबा दिया महाकाल मंदिर का फायर फाइटिंग घोटाला

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 4 2016 10:15AM | Updated Date: Jun 4 2016 10:15AM
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विनोद शर्मा इंदौर। मंदिरों में होती आ रही आगजनी की घटनाओं से सबक लेते हुए सिंहस्थ 2016 की तैयारियों के तहत महाकाल मंदिर परिसर में फायर फाइटिंग की व्यवस्था की गई थी, जो बहुत ही हल्के स्तर की थी। न मानक का मेल था, न ही क्वालिटी का। सिंहस्थ शुरू होने से ठीक पहले भोपाल से भेजे गए फायर सेफ्टी आॅफिसर ने इसकी पोल खोल दी। उनकी रिपोर्ट पर 22 अपै्रल को हुए पहले शाही स्नान से चंद घंटे पहले पुरानी लाइन उखाड़कर गुपचुप तरीके से नई फायर लाइन डाल दी गई।

सिंहस्थ 2016 के नाम पर उज्जैन में बड़े पैमाने पर हेराफेरी हुई है, जिसका ताजा और बड़ा उदाहरण उस महाकाल मंदिर का फायर फाइटिंग सिस्टम है जहां कुंभ के दौरान दर्शन के लिए करोड़ों लोगों की आवाजाही रही। 2009 में मंदिर परिसर में हुई आगजनी की घटना के बाद 2013-14 में सिंहस्थ की तैयारियों के तहत भोपाल की एक कंपनी ने मंदिर में हाइड्रेंट बेस्ड फायर फाइटिंग इक्विपमेंट लगाए गए। दो साल तक ये यूं ही लगे रहे। किसी ने इनकी जांच नहीं की, लेकिन भुगतान जरूर कर दिया। इसी बीच 10 अपै्रल को केरल के पुत्तिंगल देवी मंदिर परिसर में आतिशबाजी के दौरान लगी भीषण आग से 110 लोगों की मौत होने के बाद मप्र सरकार जागी। 4शेष पेज-7

सिंहस्थ में ऐसी कोई घटना न हो, इसी सोच के साथ पुलिस हेडक्वार्टर (भोपाल) से डीएसपी अनिल यादव को विशेष फायर सेफ्टी आॅफिसर बनाकर उज्जैन पहुंचाया गया। यादव और नगर निगम, उज्जैन के इंजीनियर नागेंद्र सिंह भदौरिया ने मातहतों के साथ दौरा किया और पहली ही नजर में सिस्टम को खारिज कर दिया। इसके बाद मंदिर प्रशासन चेता और ताबड़तोड़ नए सिरे से काम कराया।

फिर कैसे हुई गड़बड़
मंदिर प्रबंध समिति में प्रशासनिक अधिकारी हैं जिनका मूल काम ही मंदिर की गतिविधयों पर नजर रखना है। उनकी देखरेख के बावजूद कोई कंपनी हलका काम कैसे कर सकती है? यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है। उल्टा, आशंका यही है कि अधिकारियों ने कमीशन लेकर हल्का काम करवाया और बिना लाइन टेस्ट किए ही भुगतान भी कर दिया।

ताबड़तोड़ हुआ बदलाव
16 अपै्रल को यादव और उनकी टीम ने इक्विपमेंट की नेगेटिव रिपोर्ट दी और उन्हें खारिज कर दिया। 17 अपै्रल को ताबड़तोड़ मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में फायर फाइटिंग के क्षेत्र में काम करने वाली इंदौर की एक कंपनी को बुलाकर नए सिरे से काम की जिम्मेदारी दी गई। काम शुरू हुआ 18 अपै्रल से खत्म हुआ 24 अपै्रल को जबकि महाकुंभ के पहले शाही स्नान की धूम 21 अपै्रल से ही शुरू हो गई थी। 22 अपै्रल को दो लाख लोगों ने महाकाल दर्शन किए थे। कंपनी ने 400 फीट लाइन डाली और 40 से अधिक फायर एस्टिंग्विशर भी लगाए।

क्यों नकारा?
होना चाहिए था-
हाईड्रेंट सिस्टम के लिए माइल्ड स्टील (एमएस) या गेल्वेनाज्ड आयरन (जीआई) पाइप डाली जाना चाहिए, ताकि लाइन पे्रशर बढ़ने पर यह जवाब न दे।
हुआ यह - अनप्लास्टिसाइज्ड पॉलीविनाइल क्लोराइड (यूपीवीसी) की पाइपलाइन डाल दी।

होना चाहिए था-  नॉर्म्स के हिसाब से पाइप का डाया 100 एमएम (4 इंच) होना चाहिए, ताकि आपातस्थिति में कम वक्त में ज्यादा पानी मिले।
हुआ यह- हाइड्रेंट के लिए 63 एमएम (2.5 इंच) डाया की लाइन डाली गई, जिसकी वजह से प्रेशर बहुत कम था, जबकि परिसर व मंदिर की ऊंचाई ज्यादा है।

होना चाहिए था- हाइड्रेंट व पंपिंग आॅटोमेटिक हो, ताकि आपातस्थिति में हाइडेÑंट यूज करते ही पंपिंग शुरू हो जाए।
हुआ यह- कुंड में 5 हॉर्स पावर (एचपी) की मोटर डाली गई, लेकिन सिस्टम मेन्युअल था। आग लगने की परिस्थिति में हाइड्रेंट इस्तेमाल करने से पहले एक आदमी को पंप चालू करने भेजना पड़ता।

इसलिए जरूरी सुरक्षा

सिंहस्थ 2016 के दौरान करोड़ों लोग महाकाल मंदिर पहुंचे। यूं भी यहां दिनभर में हजारों श्रद्धालु दर्शन करते हैं। विपरीत परिस्थिति में कोई बड़ी जनहानि न हो यह सुनिश्चित करना जरूरी है। मंदिर के आसपास 100 मीटर तक निर्माण है इसीलिए फायर ब्रिगेड भी नहीं पहुंच सकती। एक मात्र उपाय हाइड्रेंट सिस्टम है। अब भी यहां हाइड्रेंट की संख्या पर्याप्त नहीं है।

फिर कैसे हुई गड़बड़

काम किस सरकारी एजेंसी के माध्यम से कराया गया है और कैसे हुआ था? इसके साथ ही कैसे नए सिरे से काम कराया गया? इस पूरे मामले की जांच करवाता हूं। इसके बाद ही कुछ कह पाऊंगा।
- कवींद्र कियावत
कलेक्टर, उज्जैन

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