संतोष शितोले इंदौर। लंबे समय बाद शहर में अपराधों में कमी आई है। खासकर बड़ी वारदात को लेकर। शुक्रवार को पुलिस कंट्रोल रूम में आयोजित समीक्षा बैठक में डीआईजी संतोषकुमार सिंह ने भी इस आशय की बात कही। माना गया कि अपराधों में 20 से 25 प्रतिशत तक कमी आई है। आखिर अपराधों में कमी कैसे आई, इसे लेकर दैनिक दबंग दुनिया ने आकलन किया तो पता चला कि इसके पीछे आधुनिक संसाधन व पुलिस की ठोस कार्यप्रणाली का बड़ा योगदान रहा है।
अगस्त 2015 में वह दिन कौन भूल सकता है जब फार्मा कंपनी के अधिकारी संजय रैना की पत्नी कविता की हत्या कर उसके टुकड़े कर फेंक दिए थे। करीब तीन महीने तक पुलिस की कई टीमें छानबीन में लगी रहीं और आखिरकार मामले का पर्दाफाश कर दिया। इसके बाद भी अपराध हुए लेकिन इतने बड़े नहीं। हालांकि कविता हत्याकांड की तर्ज पर हीरा नगर थाना क्षेत्र में पिछले महीने एक व्यक्ति के टुकड़े कर फेंक दिए थे। खास बात यह कि इसमें भी पुलिस ने तीसरे दिन ही आरोपियों को गिरफ्तार कर मामले का खुलासा कर दिया था। इस बीच सितंबर 2015 में कुख्यात गुंडे शहजाद लाला की हत्या कर दी गई थी। मामले में पुलिस ने बब्बू, छब्बू सहित अन्य के खिलाफ केस दर्ज किया था। इसमें बब्बू व छब्बू पर इनाम घोषित किए गए थे जो बाद में पकड़े गए।
इन मामलों में तुरत-फुरत हुई कार्रवाई
इसके बाद संयोगितागंज थाना क्षेत्र में बहू द्वारा ससुर की हत्या का मामला हुआ जिसे पुलिस ने शीघ्र सुलझा लिया। फिर कुछेक हत्याओं के मामले हुए लेकिन आपसी लेन-देन व रंजिश के। फिर छोटे अपराधों जैसे चेन स्नेचिंग, चोरी की वारदातें रहीं, लेकिन अपेक्षाकृत कम।
पिछले दिनों लसूड़िया थाना क्षेत्र में बालक विनायक गुर्जर का अपहरण कर लिया गया। पुलिस की घेराबंदी के चलते स्थिति यह रही कि अपहर्ताओं ने उसे दूसरे दिन ही घर के पास छोड़ दिया। मामले में पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया।
दो दिन पहले भंडारी ब्रिज के पास रात में पुलिसकर्मी हरिओम यादव पर हुए जानलेवा हमले व लूट के आरोपियों को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
अपराध नियंत्रण को लेकर ये हैं कारण
डायल 100 से घेराबंदी का खतरा- पिछले साल शुरू हुई डायल 100 योजना ने अपराधियों में खौफ पैदा कर दिया है। जिले में 50 से ज्यादा डायल 100 गाडियां हैं जो 24 घंटे सक्रिय हैं। अधिकारियों का मानना है कि बड़े अपराधी वारदात का खाका तैयार करने के दौरान ही भांप जाते हैं कि अब लूट या डकैती इतनी आसान नहीं है। उन्हें हर पॉइंट पर पकड़े जाने का डर रहता है।
आरएलवीडी सिस्टम व कैमरे- वारदात के बाद पुलिस को सुराग के लिए प्रमुख चौराहों पर लगे आरएलवीडी सिस्टम व कैमरे हैं। कैमरों की क्वालिटी इतनी उच्च क्वालिटी की है कि वाहन नंबर ही नहीं बल्कि गुजरने वाले लोगों का हुलिया भी स्पष्ट दिखता है। इससे पुलिस को दिशा मिल जाती है।
क्राइम वॉच व सिटीजन कॉप- घटित अपराधों या अवैध गतिविधियों को लेकर पुलिस को गुप्त सूचना मिले। इसके मद्देनजर 24 नवंबर को क्राइम वॉच हेल्पलाइन शुरू की गई। इसमें सट्टा-जुआ, देह व्यापार सहित घटित अपराधों को लेकर पुलिस को लोगों ने सूचना दी जिससे कड़ी मिलती गई और पुलिस ने कार्रवाई की। हर हफ्ते लोग 200 से ज्यादा सूचनाएं हेल्पलाइन पर दे रहे हैं। सिटीजन कॉप एप भी शहरवासियों के लिए मददगार बनी है।
इनाम का फंडा- पहले अपराधियों पर इनाम काफी देर बाद घोषित होता था। अब वारदात के अगले दिन घोषित कर दिया जाता है। फिर जल्द ही इनाम की राशि भी बढ़ा दी जाती है। ऐसे में अपराधियों में खौफ रहता है कि कहीं वे पुलिस के हत्थे चढ़े तो फिर उनकी खैर नहीं और वे फरारी से बचने के लिए सरेंडर कर देते हैं। पिछले दिनों अपहरण के आरोपी व सूदखोर मनीष सूर्यवंशी का कोर्ट में पेश होना पुलिस के खौफ और इनामी फंडे का ही नतीजा है।
राजनीतिक दबाव व प्रश्रय पर भी खैर नहीं
एक खास कारण अपराधियों को लेकर राजनीतिक दबाव व प्रश्रय है। पुलिस ने कुख्यात गुंडे फौजा, बब्बू आदि को प्रश्रय देने वालों पर सख्त कार्रवाई की। जेल से पैरोल पर फरार कैदियों को भी जिन लोगों ने प्रश्रय दिया था, उन्हें आरोपी बनाया। ऐसे में स्थिति यह हो गई कि संबंधित आरोपी के रिश्तेदार व परिचित अब प्रश्रय देने से बचने लगे। दूसरी ओर राजनीतिक दबाव की भी स्थिति नहीं रही। कुछेक मामलों में पुलिस ने अपराधियों से सांठगांठ करने वालों पर ठोस कार्रवाई की।
जिलाबदर व रासुका
दूसरी ओर गैंगस्टर से डोजियर भरवाने की कार्रवाई, कुख्यात अपराधियों की मॉनिटरिंग के बाद उन पर जिलाबदर व रासुका की कार्रवाई भी खास कारण है। इसके अलावा रोजाना देर रात तक सभी थाना क्षेत्रों में बैरिकेड्स लगाकर चेकिंग से भी अपराधियों में खौफ है।
सुरक्षा के लिए पुलिस प्रतिबद्ध
पुलिस लोगों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। लोग क्राइम वॉच, सिटीजन कॉप आदि पर सूचना देकर पुलिस की मदद कर सकते हैं। पुलिस अपराधियों पर ठोस कार्रवाई कर रही है।
-संतोषकुमार सिंह, डीआईजी