23 Apr 2024, 16:05:06 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- कीर्ति राणा

उज्जैन। सिंहस्थ प्रभारी मंत्री भूपेंद्रसिंह ठाकुर को जिले का प्रभार संभाले ढाई महीने से अधिक समय हो गया है लेकिन न तो साधु संतों पर अपनी छाप छोड़ पाए हैं और न ही 2004 में सिंहस्थ प्रभारी रहे कैलाश विजयवर्गीय से बड़ी लाइन खींच पाए हैं। भूपेंद्र सिंह भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के उतने ही खास मंत्रियों में माने जाते हैं जितने उस वक्त विजयवर्गीय सीएम उमा भारती के विश्वस्त हुआ करते थे। यह बात भी गौर करने लायक है कि जब उमा भारती प्रदेश के राजनीतिक पटल से ओझल कर दी गई तब भी विजयवर्गीय ने अपनी कार्य शैली और हर चुनौती पर खरे साबित होकर मुख्यमंत्री चौहान की मंडली को यह स्वीकारने पर मजबूर कर दिया कि विजयवर्गीय के हाथ तो बांधे जा सकते हैं लेकिन उनके विशाल होते व्यक्तित्व को दबाने की कुचेष्टा नहीं की जा सकती।

केंद्रीय सिंहस्थ मेला समिति अध्यक्ष माखनसिंह चौहान को कार्यभार ग्रहण कराने 26 नवंबर 15 को जब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान उज्जैन आए थे तब सिंहस्थ प्रभारी मंत्री के रूप में भूपेंद्र सिंह ठाकुर भी साथ आए थे। सीएम ने कोठी पैलेस परिसर में हुई आमसभा में बड़े दावे किए थे कि भूपेंद्रसिंह को कमान सौंप दी है वे मेरे प्रतिनिधि के रूप में सारे काम संपन्न कराएंगे। माखनसिंहजी को केंद्रीय सिंहस्थ समिति का अध्यक्ष प्रदेश संगठन प्रभारी रहते उज्जैन संभाग से भाजपा को विधानसभा चुनाव में बढ़त के बदले यह दायित्व सौंपना माना गया था। कार्यभार संभालने के बाद सिंहस्थ निर्माण कार्यों के पहले अवलोकन में ही दोनों ने सारे कार्यों को गुणवत्ता प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया था।

सिंहस्थ प्रभारी मंत्री भूपेंद्रसिंह 26 नवंबर 15 से 11 फरवरी 16 इन 77 दिनों में सिर्फ पांच बार उज्जैन आए हैं। दिसंबर 15 में 2 और 26 तारीख को, जनवरी-16 में 13 तारीख को और फरवरी में 3 तारीख को। जिस दिन वे उज्जैन में कई वाहनों के साथ आते हैं तो बैठक शुरू होने से पहले ही उनकी इंदौर रवानगी का समय भी तय हो जाता है। सिंहस्थ निर्माण कार्यों और संत-महंतों से निरंतर संपर्क नहीं रखने का यही कारण है कि प्रभारी मंत्री को सीएम स्तर पर यह सलाह अब तक नहीं मिली है कि यह सिंहस्थ सरकार की साख के लिए कितना महत्वपूर्ण है।

सन् 2004 में उमा भारती ने सिंहस्थ से करीब चार महीने पहले सत्ता संभाली थी। वे खुद साध्वी हैं धर्म-कर्म के प्रति वर्तमान सीएम से उतनी ही अधिक आस्थावान हैं जितने कि भूपेंद्रसिंह से लाख गुना कैलाश विजयवर्गीय सिंहस्थ को लेकर समर्पित रहे। प्रभारी मंत्री का दायित्व मिलने के बाद करीब तीन महीने तो विजयवर्गीय ने उज्जैन को ही स्थायी निवास बना लिया था। अधिकारी वर्ग बैठकों में जो निर्माण कार्यों की जानकारी देता था उन पर भरोसा करने की अपेक्षा वे खुद भी असलियत जानने निकल जाते थे। यही नहीं उनका अपना भी तगड़ा नेटवर्क था। तब सिर्फ 262  करोड़ मिले थे सिंहस्थ के लिए। इस सरकार ने दस गुना से अधिक 3 हजार 92 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। केन्द्र सरकार से सिंहस्थ के लिए मांगा पैसा तो अभी मिलना बाकी है। सरकार का स्थायित्व (तीसरी बार शिवराज सरकार) होने और आवश्यकता से अधिक (3 हजार92 करोड़) धनराशि स्वीकृत करने, निर्माण कार्यों के लिए काफी समय मिलने जैसे कारण ही रहे कि पुल पुलिया, सड़कें आदि के काम कराने में कमिश्नर, कलेक्टर, मेला अधिकारी ने सारी ताकत झोंक दी। इन सारे अधिकारियों को यह बात देर से समझ आई कि सिर पर गठरी लेकर आने वाले ग्रामीण श्रद्धालु को सड़क, पुल नहीं महाकाल और शिप्रा के प्रति आस्था है। यही वजह रही कि महाकाल मंदिर विकास कार्य, शिप्रा शुद्धिकरण, नालों का गंदा पानी रोकने के लिए खान डायवर्शन जैसे मुख्य कार्य धीमी गति से चल रहे हैं।

प्रभारी मंत्री भूपेंद्रसिंह या तो सिंहस्थ का मूल मर्म समझ नहीं सके या कैलाश विजयवर्गीय से टिप्स लेने में कई तरह के डिवाइडर आ गए। भूपेंद्र सिंह को प्रभार दिए जाने से पहले शिवराज सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को ही सिंहस्थ का प्रभार दे जरूर रखा था लेकिन हाथी के दांत खाने के, दिखाने के जैसी स्थिति थी। तब भी कलेक्टर कवींद्र कियावत अपने मन मुताबिक निर्णय लेते थे और भाजपा के नेता, जनप्रतिनिधि दबे-छुपे कहने से नहीं चुकते हैं कि वही हालत आज भी है। शिवराज सरकार के इस तीसरे कार्यकाल में बाकी जिलों की तरह उज्जैन में भी यह देखा जा सकता है कि सरकार ने भागवतजी की पोथी की तरह प्रशासनिक अमले को सिर पर चढ़ा रखा है। दो साल पहले से शुरू हुए निर्माण कार्यों में कहां, क्या चल रहा है यह भी मुख्यमंत्री के खास होने का दावा करने वाले भाजपा नेताओं को अभी चार महीने पहले से पता  चला है। खान डायवर्शन जैसे कार्य की गति कैसी चल रही है यह दुर्गति स्थानीय भाजपा प्रतिनिधियों को तो पता है लेकिन प्रभारी मंत्री वही गीत दोहराते हैं जैसा अधिकारी गुनगुनाते हैंं।

मुख्यमंत्री ने बाकी जिलों को प्रभारी मंत्रियों को हिदायत दी होगी कि रात्रि विश्राम उन जिलों में ही करें। सिंहस्थ प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह को तमाम स्थानीय भाई साबों ने ज्ञान ही नहीं दिया कि यही टिक जाइए। उन्हें किसी ने न तो कैलाश विजयवर्गीय की वर्किंग स्टाइल बताई और न ही खुद उन्होंने यह जानने की कोशिश की है कि अखाड़ों, संतों-महंतों के बीच अप्रिय विवाद की स्थिति बनती थी तो कैसे हाथ-पैर जोड़कर, गुर्राकर कैलाश विजयवर्गीय गुस्से से उबलते संतों को ठंडा करते थे। अभी भी वक्त है कि सीएम सख्त हिदायत जारी करें कि प्रभारी मंत्री अखाड़ों, संतों-महंतों के बीच रोज आना-जाना करें, अखाड़ों में ही भोजन प्रसादी ग्रहण करें ताकि संतों के दिलों दिमाग से यह अमिट छाप मिट सके कि सिंहस्थ तो कैलाशजी ने कराया था।

गलती पर गलती
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के (कोर्ट द्वारा) अध्यक्ष महंत ज्ञानदासजी अधिकारियों के कथित रवैये से मेला बहिष्कार की चेतावनी देकर दो दिन इंदौर में रहे लेकिन सिंहस्थ प्रभारी मंत्री भूपेंद्रसिंह इतना वक्त नहीं निकाल पाए कि ज्ञानदासजी को मनाने चले जाएं। दूसरी तरफ इंदौर में ही ये उन कंप्यूटर बाबा को मनाने चले गए जो लगातार शिवराजसिंह और सरकार के खिलाफ चल रहे हैं। इससे पहले सैक्स स्केंडल से जुड़े नित्यानंद स्वामी का सिंहस्थ आमंत्रण देता विवादास्पद होर्डिंग्स भी उनके विधानसभा क्षेत्र खुरई (सागर) में लगा था।

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »