26 Apr 2024, 01:40:23 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मुंबई। लगभग तीन दशक से अपने गीतों से संगीत जगत को सराबोर करने वाले महान शायर एवं गीतकार जावेद अख्तर के रूमानी नज्में आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है जिन्हें सुनकर श्रोताओं के दिल से बस एक ही आवाज निकलती है "जब छाए तेरा जादू कोई बच ना पाए।"    
    
वर्ष 1981 में निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा अपनी नई फिल्म सिलसिला के लिए गीतकार की तलाश कर रहे थे। उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में जावेद अख्तर बतौर संवाद लेखक अपनी पहचान बना चुके थे। यश चोपड़ा ने जावेद अख्तर से फिल्म सिलसिला के गीत लिखने की पेशकश की। फिल्म "सिलसिला" में जावेद अख्तर के गीत "देखा एक ख्वाब तो सिलसिले हुये" और "ये कहां आ गये हम" श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए।
 
फिल्म सिलसिला में अपने गीत की सफलता से उत्साहित जावेद अख्तर ने गीतकार के रूप में भी काम करना शुरू किया। इसके बाद जावेद अख्तर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत लिखकर जन-जन के हृदय के तार झनझनाये। उन्हें भाव विभोर और फिल्मी गीत गंगा को समृद्ध किया।
 
17 जनवरी 1945 को शायर-गीतकार जां निसार अख्तर के घर जब एक लड़के ने जन्म लिया तो उसका नाम रखा गया "जादू"। यह नाम जां निसार अख्तर के ही एक शेर की एक पंक्ति "लंबा लंबा किसी जादू का फसाना होगा" से लिया गया है। बाद मे जां निसार के यही पुत्र जादू "जावेद अख्तर" के नाम से फिल्म इंडस्ट्री में विख्यात हुए।
 
बचपन से ही शायरी से जावेद अख्तर का गहरा रिश्ता था। उनके घर शेरो-शायरी की महफिलें सजा करती थी जिन्हें वह बड़े चाव से सुना करते थे। जावेद अख्तर ने जिंदगी के उतार-चढ़ाव को बहुत करीब से देखा था इसलिए उनकी शायरी मे जिंदगी के फसाने को बड़ी शिद्दत से महसूस किया जा सकता है।
 
जावेद अख्तर के गीतों की यह खूबी रही है कि वह अपनी बात बड़ी आसानी से दूसरो को समझाते हैं। उनके जन्म के कुछ समय के बाद उनका परिवार लखनऊ आ गया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ से पूरी की। कुछ समय तक लखनऊ रहने के बाद वह अलीगढ़  आ गये जहां वह अपनी खाला के साथ रहने लगे।
 
उन्होंने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अपनी स्रातक की शिक्षा भोपाल के साफिया कॉलेज से पूरी की लेकिन कुछ दिनों के बाद उनका मन वहां नहीं लगा और वह अपने सपनों को नया रूप देने के लिये वर्ष 1964 मे मुंबई आ गए।
 
मुंबई पहुंचने पर जावेद अख्तर को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मुंबई मे कुछ दिनों तक वह महज 100 रुपए के वेतन पर फिल्मों मे डॉयलाग लिखने का काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई फिल्मों के लिए डॉयलाग लिखे लेकिन इनमें से कोई फिल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हुई।
 
मुंबई में जावेद अख्तर की मुलाकात  सलीम खान से हुई जो फिल्म इंडस्ट्री में बतौर संवाद लेखक अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। इसके बाद वह और सलीम खान संयुक्त रूप से काम करने लगे। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म "अंदाज"  की कामयाबी के बाद वह कुछ हद तक बतौर डॉयलाग रायटर फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गए।
 
फिल्म "अंदाज"  की सफलता के बाद जावेद अख्तर और सलीम खान को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। इन फिल्मों में "हाथी मेरे साथी, सीता और गीता, जंजीर, यादों की बारात" जैसी फिल्में शामिल है। सीता और गीता के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात "हनी ईरानी" से हुई और जल्द ही जावेद अख्तर ने हनी ईरानी से निकाह कर लिया। अस्सी के दशक में उन्होंने हनी इरानी से तलाक लेने के बाद शबाना आजमी से शादी कर ली।
 
वर्ष 1987 में प्रदर्शित फिल्म मिस्टर इंडिया के बाद सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गई। इसके बाद भी जावेद अख्तर ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा। उनको मिले सम्मानों को देखा जाए तो उन्हें उनके गीतों के लिये आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
 
 वर्ष 1999 मे साहित्य के जगत में उनके  बहुमूल्य योगदान को देखते हुये उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। वर्ष 2007 में जावेद अख्तर को पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया। जावेद अख्तर को उनके गीत के लिए साज, बार्डर, गॉडमदर, रिफ्यूजी और लगान के लिए नेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। वह आज भी गीतकार के तौर पर फिल्म जगत को सुशोभित कर रहे है।
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