28 Mar 2024, 20:35:52 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मुंबई। बॉलीवुड में ओपी नैयर का नाम एक ऐसे संगीतकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने आशा भोंसले और गीता दत्त समेत कई गायक-गायिकाओं को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। 16 जनवरी 1926 को लाहौर के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में ओपी नैयर का रुझान बचपन से ही संगीत की ओर था और वह पार्श्वगायक बनना चाहते थे।
 
दस वर्ष की उम्र में सबसे पहले उन्हें पंडित गोविंदराम के संगीत निर्देशन में पंजाबी फिल्म 'दुल्हा भट्टी' में कोरस के रूप में गाने का अवसर मिला। उन्हें बतौर पारिश्रमिक दस रुपए मिले। इस बीच उन्होंने आकाशवाणी द्वारा प्रसारित कई कार्यक्रमों में भी अपना संगीत दिया। भारत विभाजन के पश्चात उनका पूरा परिवार लाहौर छोड़कर अमृतसर चला आया।
 
वर्ष 1949 में बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में पहचान बनाने के लिए ओपी नैयर मुंबई आ गए। मुंबई मे उनकी मुलाकात जाने-माने निर्माता निर्देशक कृष्ण केवल से हुई, जो उन दिनो फिल्म 'कनीज' का निर्माण कर रहे थे। कृष्ण केवल उनके संगीत बनाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने फिल्म के बैक ग्राउंड संगीत देने की पेशकश की।
 
वर्ष 1951 में अपने एक मित्र के कहने पर वह मुंबई से दिल्ली चले गए और बाद में उसी मित्र के कहने पर उन्होंने निर्माता पंचोली से मुलाकात की, जो उन दिनों फिल्म नगीना का निर्माण कर रहे थे। बतौर संगीतकार ओपी नैयर ने वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म आसमान से अपने सिने कैरियर की शुरुआत की। इस बीच ओपी नैयर की छमा छम छम और बाज जैसी फिल्में भी प्रदर्शित हुईं लेकिन इन फिल्मों के असफल होने से उन्हें गहरा सदमा लगा।
 
वर्ष 1953 पार्श्वगायिका गीता दत्त ने ओपी नैयर को गुरुदत्त से मिलने की सलाह दी। वर्ष 1954 में गुरुदत्त ने अपनी फिल्म आरपार के संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी नैयर को दी। आरपार के गीत सुपरहिट हुए। नैयर के पसंदीदा गायकों में मोहम्मद रफी का नाम सबसे पहले आता है। वह अक्सर कहा करते थे कि रफी नहीं होते तो ओपी नैयर भी नहीं होते।
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