लोनावला। अभिनेत्री सुष्मिता मुखर्जी पिछले तीन सालों से अब तक नाटक 'नारी बाई' में अपनी प्रस्तुति देती आ रही हैं। इस बीच महिला सशक्तीकरण, लैंगिक समानता, महिलाओं पर हिंसा पर सामूहिक चेतना के साथ कई चीजें बदल गई हैं और इस पर अभिनेत्री का कहना है कि उनका यह नाटक बेहद प्रासंगिक है क्योंकि इसका शीर्षक चरित्र परिवर्तन का बीज है।
हाल ही में सुष्मिता ने एलआईएफएफटी इंडिया फिल्मोत्सव 2019 में इस नाटक का मंचन किया। इस फिल्म महोत्सव की शुरुआत 12 दिसंबर से हुई और 16 दिसंबर तक यह जारी रहेगा। सुष्मिता ने आईएएनएस को बताया, "मैं उन नारीवादियों में से नहीं हूं जो अपनी किसी बात को साबित करने के लिए अपना अन्तर्वस्त्र जला दें। वर्तमान समय में इसे प्रासंगिक बनाने के लिए मैंने अपने नाटक में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है।
नाटक में मेरा केंद्रीय चरित्र 'नारी बाई' का है जो एक कि वेश्या है और परिवर्तन का बीजारोपण करती हैं और इसलिए यह हर समय में प्रासंगिक है। मैं निर्भया मामले या हाल ही में हुए प्रियंका रेड्डी की घटना का जिक्र नहीं करूंगी क्योंकि मेरा मानना है कि हम एक ही ग्रह पर रह रहे हैं। इसी दुनिया में किसी इंसान को ईश्वर के नाम पर मारा जाता है, लैंगिक आधार पर एक महिला को हिसा का सामना करना पड़ता है या जलवायु परिवर्तन के चलते कोई जंगल जल रहा है-ये सारी चीजें हम सभी को प्रभावित करती हैं। इनका एक दूरगामी प्रभाव है।"