नई दिल्ली। मौजूदा दौर में चौके छक्के की बारिश से नहा रहे क्रिकेट की केमिस्ट्री, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) की 'फिजिक्स' से बदल सकती है। इस नई केमिस्ट्री में गेंदबाज ज्यादा घातक होंगे। उन्हें खेलना सबके बस की बात नहीं होगी। आइआइटी की यह फिजिक्स गेंद की स्विंग से संबंधित है।
एयरोस्पेस विभाग के प्रोफेसर और उनके साथ दो छात्रों ने बॉल की स्विंग के कारण पर अध्ययन कर नई गेंद को रिवर्स स्विंग कराने का फामूर्ला खोज लिया है।एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. संजय मित्तल के साथ छात्र राहुल देशपांडे और रवि शाक्या ने स्विंग की फिजिक्स पर काम किया। बताया, बॉल को स्विंग कराने में सीम, स्पीड, सतह का खुरदरापन और मौसम की भूमिका रहती है।
गेंदबाज पुरानी गेंद से तो रिवर्स स्विंग करा सकते हैं लेकिन नई गेंद से नहीं। गेंद फेंकते समय सीम का एंगल और गति के साथ संबंध समझ लिया जाए तो यह बेहद आसान है। विशेषज्ञों के मुताबिक बॉल की सीम (बीच की सिलाई) को उसकी गति की दिशा में 20 डिग्री झुकाकर 30 से 119 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से फेंकने पर बॉल स्विंग करती है।
गति 125 किमी प्रति घंटा से ऊपर होने पर रिवर्स स्विंग करती है। अगर बॉल 119 से 125 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से फेंकी जाती है तो उसकी ट्रेजेक्टरी (गेंद के रास्ते) के पहले भाग में रिवर्स स्विंग और फिर स्वाभाविक स्विंग होती है। इसे लेट स्विंग भी कहा जा सकता है।