जगदलपुर। छत्तीसगढ के बस्तर जिले के अंदरूनी इलाके लोहण्डीगुंडा के एक छात्रावास के बच्चे बारिश के दिनों में मगरमरच्छों के भय से शाम ढलते ही अपने-अपने कमरों में दुबक जाते हैं। इस छात्रावास को करीब 11 साल पहले नक्सलियों ने ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद भी आदिवासी बच्चों में पढ़ने की ललक ऐसी है कि वे खण्डहरनुमा छात्रावास में पढ़ाई कर रहे हैं। लोहण्डीगुड़ा विकासखंड मुख्यालय से करीब सौ किलोमीटर दूर ग्राम पिज्जीकोडेर के उपसरंपच कुलमन ठाकुर ने बताया कि छात्रावास जंगल के बीच है
और हमेशा वन्य प्राणियों के हमले का खतरा बना रहता है। आश्रम के पास ही इंद्रावती नदी है, बारिश में कई बार वहां से निकल कर मगरमच्छ छात्रावास तक आ जाते हैं। इसलिए शाम ढलते ही सभी 65 बच्चे चार कमरों में दुबक जाते हैं। पिच्चीकोडेर बालक छात्रावास के 14 हॉल, दो शिक्षक आवास और तीन शौचालयों को दिसंबर 2007 में नक्सलियों ने ढहा दिया था। साल भर पहले ही यहां आश्रय लिए 65 बच्चों और शिक्षकों ने श्रमदान कर छह जर्जर कमरों को दुरुस्त कर रहने और पढ़ने लायक बनाया है।
छात्रावास के बच्चों ने बताया कि आए दिन भालू, जंगली सूअर, तेन्दुआ यहां तक आ जाते हैं। अधीक्षक रमेश बैज के मुताबिक यहां सदा जंगली जानवरों का डर रहता है। आश्रम से सौ मीटर दूर इंद्रावती नदी के मगरमच्छ नजदीक भी पहुंच जाते हैं। शाम ढलते ही बच्चे बाहर नहीं निकलते। अधिकारियों को समस्याओं से अवगत कराया गया है।