बिलासपुर। कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ने के लिए राज्य शासन ने महिला एवं बाल विकास विभाग के लिए वित्तीय वर्ष 2015-16 व 2016-17 में 9 अरब 3 करोड़ 12 लाख 57 हजार 211 रुपए का फंड जारी किया था। यह राशि साल भर पहले भी खत्म हो चुकी है। राशि खर्च करने में अव्वल विभाग के पास इस बात का जवाब नहीं है कि कुपोषण से बच्चों को मुक्ति क्यों नहीं दिला पाए। मुख्यमंत्री बाल संदर्भ योजना,वजन त्योहार,नवाजतन,पूरक पोषण आहार,महतारी जतन,मुख्यमंत्री अमृत दूध व सुपोषण चौपाल योजना।
ये कुछ ऐसी योजनाएं हैं जिसे राज्य शासन द्वारा कुपोषण की रोकथाम के लिए संचालित की जा रही है। इसके बावजूद कुपोषित बच्चों की संख्या कम होने के स्थान पर बढ़ गई है। यानी बीते साल जहां कुपोषित बच्चों की संख्या 12 लाख और अतिकुपोषित बच्चों की संख्या एक लाख 12 हजार थी, वो बढ़कर 13 लाख और एक लाख 62 हजार तक पहुंच गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुपोषण दूर करने के लिए खर्च किया जा रहा पैसा बच्चों के पेट में जा रहा है
या अफसरों की जेब गरम कर रहा है। बिगड़ी मप्र की स्थिति प्रदेश में कुपोषण का मुद्दा लगातार छाया हुआ है। कभी यूनिसेफ के आंकड़ों में कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक बताई जाती है, तो कभी विभिन्न एनजीओ द्वारा किए गए सर्वे में भी स्थिति बेहतर नहीं बताई गई। यहां तक कि सरकार के आंकड़े भी उलझे हुए पेश किए जा रहे हैं। बीते साल सरकार ने अतिकुपोषित बच्चों की संख्या एक लाख 52 हजार बताई थी और कम कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग 15 लाख।
शासन स्तर पर संचालित योजनाओं के अलावा राज्य शासन ने जनभागीदारी के जरिए कुपोषण मुक्ति का अभियान चलाया था। इसके तहत सुपोषण चौपाल योजना का संचालन किया जा रहा है। जनभागीदारी के साथ ही महिला एवं बाल विकास विभाग ने दो वर्षों के दौरान तकरीबन 17 करोड़ रुपए जारी किया था। यह योजना भी फेल साबित हो गई है। इस योजना में शासन ने आला अधिकारियों के अलावा नेताओं और मंत्रियों को भी जोड़ा था।