बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले का सीमावर्ती पामेड़ गांव, जो कि पिछले दो दशक से अलग थलग पड़ा था, अब वह धीरे-धीरे नई तकनीक की ओर बढ़ रहा है और यह सब संभव हो सका पामेड़ में पदस्थ जवानों के प्रयास से, जिसके चलते अब यहां जवानों के साथ ही गांव के लोग भी अपने परिजन से वीडियो कॉल के जरिए तस्वीर देखने के साथ ही बातें भी कर रहे हैं। पामेड़ थाना में पदस्थ जवान फोन पर परिजनों की आवाज सुनकर संतुष्ट रहने के बजाए उन्हें अपने मोबाइल डिस्पले पर देख रहे हैं और उनसे बातें भी हो रही हैं।
यह सुखद तस्वीर पामेड़ थाने से निकलकर आई है। वाई फाई राउटर डिवाइस के जरिए यहां इंटरनेट कनेक्टिविटी मुमकिन हुई है, वह भी बिना किसी सरकारी मदद के। दरअसल इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए थाना प्रभारी ह्दय शंकर पटेल और एसटीएफ प्रभारी यादराम बघेल की कोशिश रंग लाई है। जरूरत और मनोरंजन के मकसद से थाना प्रभारी और जवानों ने कुछ महीने पहले निश्चय किया कि वे जैसे भी हो थाने में इंटरनेट कनेक्टिविटी स्थापित करके रहेंगे।
पटेल व बघेल ने बताया कि सभी जवानों द्वारा करीब एक लाख रुपये जमा कर पामेड़ तिप्पापुर के मध्य स्थापित सीएएफ कैम्प के साथ समन्वय स्थापित कर इंटरनेट कनेक्टिविटी की पहल की गयी। इसके लिए सीमावर्ती तेलंगाना के एक इंटरनेट डिस्ट्रीब्यूटर से संपर्क किया गया। उसकी तरफ से कनेक्शन और वाई-फाई प्लान के तहत जितनी लागत बताई गई थी, भुगतान के लिए सीएएफ कैम्प के अलावा पामेड़ थाना के जवानों ने एक-एक हजार रूपए चंदा इकट्ठा कर एक लाख रुपये की राशि जुटाई।
इसके बाद से थाने में जवानों को इंटरनेट की सुविधा मिल रही है। टीआई के मुताबिक चूंकि यह इलाका नक्सलियों का इंटरस्टेट कॉरिडोर कहलाता है। तेलंगाना को जोड़ती सड़क बन जाने के बाद भी जवानों की हेलीकॉप्टर पर निर्भरता खत्म नहीं हुई है। ऐसे में खंदकनुमा परिस्थितियों में जहां कल तक जवानों के लिए फोन पर बात करना सपना हुआ करता था। आज वह सपना एक कदम आगे बढ़ गया है, क्योंकि जवान अब वाइस कॉल की बजाए सीधे वीडियो कॉल के जरिए परिजनों को देख रहे हैं, उनका हालचाल भी पूछ रहे हैं।
करीब दो दशक से अलग-थलग पड़े राज्य के सीमावर्ती गांव पामेड़ में मोबाइल की घंटी कुछ साल पहले बजनी शुरू हो गई थी, लेकिन चौथी पीढ़ी के दौर में डिजिटल कम्युनिकेशन से अब तक अछूते पामेड़ में वह सपना भी आकार लेता दिख रहा है। पामेड़ जुडूम की शुरूआत के साथ विकास से अलग-थलग पड़ गया था। विकास से कोसों दूर बीजापुर जिले का टापू कहलाता था। करीब 1376 की आबादी वाले इस गांव में कभी बिजली और सड़क सपना हुआ करता था, मगर सोलर सिस्टम से रोशन मकानों और 11 किलोमीटर नवनिर्मित पक्की सड़क को देखकर बदलती तस्वीर अब कुछ और बयां कर रही है। इसी पामेड़ में विकास को नया आयाम देती एक सुखद तस्वीर भी उभरकर सामने आई है।