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बस्तर में आज भी होली पुरानी परंपराओं से मनाई जाती है

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 18 2019 1:40PM | Updated Date: Mar 18 2019 1:40PM
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जगदलपुर। पूरे देश में जहां होली के अवसर पर रंग-गुलाल खेलकर अपनी खुशी का इजहार किया जाता है। वहीं बस्तर में होली के अवसर पर मेले का आयोजन कर सामूहिक रूप से हास्य-परिहास करने की प्रथा आज भी विद्यमान है। इतिहासकारों का कहना है कि बस्तर के काकतीय राजवंशियों ने इस परम्परा की शुरूआत माड़पाल ग्राम में आयोजित किये जाने वाले होलिका दहन कार्यक्रम से की थी। बस्तर के दशहरा उत्सव की तरह बस्तर का होलिका दहन कार्यक्रम भी अनूठा है। माड़पाल, नानगूर तथा ककनार में आयोजित किये जाने वाले होलिका दहन कार्यक्रम इसके जीते-जागते उदाहरण है। 
 
स्थानीय लोगों का कहना है कि काकतीय राजवंश के उत्तराधिकारियों द्वारा आज भी सर्वप्रथम ग्राम माड़पाल में सर्वप्रथम होलिका दहन किया जाता है, इसके बाद ही अन्य स्थानों पर होलिका दहन का कार्यक्रम प्रारंभ होता है। माढ़पाल में होलिका दहन की रात छोटे रथ पर सवार होकर राजपरिवार के सदस्य होलिका दहन की परिक्रमा भी करते है जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में वहां आदिवासी एकत्रित होते है। यह बात दीगर है कि बदलते परिवेश के साथ-साथ माढ़पाल होलिका दहन के कार्यक्रम में अब अनैतिकता का बोलबाला ज्यादा हो गया है।
 
स्थानीय पुलिस द्वारा अब माढ़पाल में आदिवासी युवतियों के साथ होने वाली छेड़-छाड़ को रोकने के लिए व्यापक व्यवस्था भी की जाने लगी है। इसी प्रकार नानगूर और ककनार में मेलों का आयोजन भी किया जाता है। होली की रात इन दोनों ग्रामों में रातभर नाट का आयोजन होता है। जिसके माध्यम से सामूहिक रूप से हास-परिहास का दौर चलता रहता है। मां दंतेश्वरी टेशू के रंगों से तैयार रंग से होली खेलेगी। इसके लिए बोरियों में टेशू के फूल एकत्र कर शक्तिपीठ लाया जा रहा है। इन फूलों को उबालकर रंग तैयार किया जाएगा।
 
चिकित्सकों द्वारा लगातार रासायनिक रंगों का उपयोग न करने की सलाह लोगों को दी जा रही है, बावजूद इसके बाजार से रासायनिक प्रक्रिया से तैयार रंग और गुलाल खरीदकर लोग होली खेल अपनी त्वचा खराब करते हैं, लेकिन बस्तर का आदिम समाज आज भी परंपरागत रंगों का उपयोग कर माईंजी के साथ होली खेलता है। 
 
बुधवार रात होलिका दहन किया जाएगा, वहीं गुरूवार को रंग-भंग के साथ होलिकोत्सव मनाया जाएगा। टेशू के फूलों को उबालकर रंग बनाने की प्रक्रिया वर्षों पुरानी है। इस रंग को पवित्र माना जाता है। दंतेवाड़ा में आयोजित फागुन मड़ई के बाद होली के दिन इस रंग का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। बुधवार की सुबह सेवादारों द्वारा तैयार रंग और सूखे टेशू फूलों से तैयार गुलाल मां दंतेश्वरी को अर्पित किया जाएगा। यही रंग और गुलाल विभिन्न गांवों से आए देवी-देवताओं पर छिड़का जाएगा। प्रधान पुजारी हरिहर नाथ के मुताबिक टेशू फूलों से रंग-गुलाल बनाने की पंरपरा आठ सौ वर्षों से यहां जीवित है और इतने ही वर्षों से इनका अर्पण होलिका उत्सव में माईंजी को किया जाता है।
 
वहीं इधर माड़पाल में बस्तर की पहली होली जलाने वालों को दंतेवाड़ा में सती शिला के सामने जलने वाली दंतेश्वरी होली का इंतजार करना पड़ता है इसके लिए समय और मुहूर्त का ध्यान रखा जाता है। यह प्रथा लंबे समय से जारी है और मध्य व दक्षिण बस्तर के रहवासियों के बीच आपसी तालमेल का बेहतर उदाहरण भी है।
 
आखेट नवरात्रि के रूप में दंतेवाड़ा में मनाए जाने वाले फागुन मड़ई के तहत पूर्णिमा की रात सती शिला के सामने संभाग की पहली होली सात प्रकार की लकडियÞों से जलाई जाती है। माड़पाल के महानंद सेठिया बताते हैं कि दंतेवाड़ा और माड़पाल की होली का संबंध सैकड़ों साल से है। वहां मां दंतेश्वरी को समर्पित मड़ई के बाद होली जलाई जाती है, और यहां बस्तर महाराजा पुरूषोत्तम देव को रथपति की उपाधि मिलने के बाद उनके प्रथम माड़पाल आगमन तथा उनके द्वारा पहली बार होली जलवाने की परंपरा को बरकरार रखने के लिए होलिकोत्सव मनाया जाता है।  
बताया गया कि जब संचार सुविधा मजबूत नहीं थी, तब दंतेवाड़ा में कितने बजे होली जलेगी, इसकी जानकारी दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी से पहले ही ले ली जाती थी, उसके हिसाब से माड़पाल में होलिका दहन किया जाता था। अब माड़पाल मेला समिति के लोग मोबाइल पर दंतेश्वरी मंदिर के पुजारियों के संपर्क में रहते हैं और मोबाइल से जानकारी लेने के बाद ही माड़पाल में होलिका दहन करते हैं।  
 
मावली माता मंदिर जगदलपुर के पुजारी बताते हैं कि दंतेवाड़ा और माड़पाल की होली ऐतिहासिक व पारंपरिक होली हैं पहले दंतेवाड़ा, दूसरे क्रम में माड़पाल और तीसरे क्रम के मावली मंदिर के सामने होलिका दहन किया जाता है। माता मावली और बस्तर महाराजा पुरूषोत्तम देव के सम्मान में अनुष्ठान के साथ एक साथ दो होली जलाने की परंपरा रही है।  बताया गया कि माड़पाल होली की आग लाकर ही सिरहासार के सामने उत्सव के साथ जोड़ा होलिका दहन किया जाता है। 
 
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