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Career

कॉमिक की रंग बिरंगी दुनिया

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 24 2015 5:56PM | Updated Date: Mar 24 2015 5:56PM
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फ्रीलांस आर्टिस्ट अभिजीत किनी कहते हैं कि उन्हें बचपन से ड्राइंग का शौक था। इस फील्ड में आने के लिए उन्होंने कोई ट्रेनिंग या कोर्स नहीं किया। वहीं कॉमिक आर्टिस्ट विवेक गोयल का कहना है कि, कोर्स से पॉलिशिंग हो जाती है। हमें उन टेक्निकल चीजों का पता चल जाता है, जिनकी जरूरत मार्केट में है। कोर्स के बाद आप अपनी बात अच्छे तरीके से क्लाइंट तक पहुंचा सकते हैं।
 
आगामी 7-9 फरवरी को दिल्ली का थ्यागराज स्टेडियम में हर तरफ दिखेंगे आपके पसंदीदा कॉमिक कैरेक्टर। इस मौके पर आप उनसे बात कर सकते हैं-हाथ मिला सकते हैं-। क्या कहा? ऐसा कैसे हो सकता है? अरे भाई, वहां कॉमिक कॉन फेस्टिवल जो होने जा रहा है। इस मौके पर तमाम कैरेक्टर्स आपके सामने होंगे-, बेशक मुखौटा लगाए।
 
कॉस्ट्यूम प्ले- इस बार एक कॉस्ट्यूम प्ले भी ऑर्गेनाइज किया जाएगा। इस प्ले में बच्चे और कॉमिक्स में दिलचस्पी रखने वाले लोग अपने फेवरेट कॉमिक कैरेक्टर्स की ड्रेस में नजर आएंगे। इसमें बेस्ट कॉस्ट्यूम अवार्ड भी दिया जाएगा। फेस्ट में देश-विदेश के करीब सौ से ज्यादा आर्टिस्ट्स के हिस्सा लेने की उम्मीद है। इस दौरान पांच नए टाइटल्स भी लॉन्च किए जाएंगे। फेस्ट में वर्कशॉप भी ऑर्गेनाइज की जाएगी, जिसमें पॉपुलर आर्टिस्ट, क्रिएटर और एक्सपर्ट हिस्सा लेंगे।
 
2011 में दिल्ली से शुरू हुआ इंडियन कॉमिक कन्वेंशन देश के अलग-अलग स्टेट्स में अब साल में चार बार आयोजित किया जाता है। आर्गेनाइजर जतिन वर्मा कहते हैं कि फेस्ट से नए आर्टिस्ट्स को प्लेटफॉर्म मिलता है। इससे 40 से 50 टाइटल हर साल निकलते हैं। इस बार कॉमिक कन्वेंशन में कैप्टन अमेरिका का कैरेक्टर बनाने वाले मार्क वेड, ब्रिटिश इलस्ट्रेटर डेविड लॉयड, अमेरिकन कॉमिक बुक राइटर जॉन स्टीले लेहमन के भी हिस्सा लेने की उम्मीद है।
 
हीरो बना आम आदमी
प्राण ने बताया कि 60-70 के दशक में इंडिया में सिर्फ सिंडिकेटेड विदेशी कॉमिक स्ट्रिप ही प्रकाशित होती थीं। फैंटम, मैनड्रेक, फ्लैश गॉर्डन जैसे कॉमिक बुक्स का क्रेज था। इनका हीरो कहने को तो एक आम जिंदगी जीता था, लेकिन कारनामे करते वक्त वह सुपर नेचुरल पावर से लैस हो जाता था। उसकी पोशाक और वेशभूषा सब बदल जाती थी। ऐसे में उनके मन में चाणक्य सरीखा किरदार गढने का हुआ, जो पूरी तरह भारतीय रंग में रंगा हो। इसके बाद उन्होंने लोटपोट मैगजीन के लिए चाचा चौधरी का किरदार रचा, जो लाल पगडी बांधता था और धोती पहनता था। जो शारीरिक रूप से स्ट्रॉन्ग नहीं, बल्कि बौद्धिक रूप से चतुर और तेज था।
समाज से प्रेरित किरदार
चाचा चौधरी कॉमिक की कामयाबी के सफर के बारे में प्राण कुमार शर्मा कहते हैं कि हर दौर में उन्होंने समाज के साथ चलने की कोशिश की। जैसे एक जमाने में चाचा चौधरी अकेले दम पर चोरों से निपट लिया करते थे। लेकिन जब समाज में अपराध का चेहरा बदलने लगा, तो उन्होंने सोचा कि क्यों न कोई ऐसा किरदार जोडा जाए जो ताकतवर और बलशाली हो। तभी साबू की एंट्री हुई और फिर दोनों की जोडी हिट हो गई। इसी तरह उनकी टीम में बिनी चाची और रॉकेट (स्ट्रीट डॉग) भी आए। प्राण ने बताया कि उनकी कॉमिक के किरदार और कहानियों में मौलिकता होती है। वह हमेशा से समाज में घटने वाली घटनाओं या व्यक्ति से प्रेरित रही हैं। फिर चाहे वह चाचा चौधरी, रमण, बिल्लू, चन्नी चाची या पिंकी का किरदार ही क्यों न हो।
बदला कॉमिक्स का मिजाज
बीते 30-40 सालों में कॉमिक्स इंडस्ट्री काफी बदल चुकी है। खासकर टेलीविजन और एनिमेशन के आने के बाद से इसका सर्कुलेशन कम हुआ है। बच्चों की पढने की रुचि भी कम हुई है। उनका मन टेक गेम्स में ज्यादा लगने लगा है। इसीलिए आज पब्लिशर्स ऑनलाइन और डिजिटल मीडियम में हाथ आजमा रहे हैं। चाचा चौधरी भी इसमें पीछे नहीं हैं। प्राण का कहना है कि अगर कॉमिक्स और टेलीविजन इंडस्ट्री मिलकर काम करें, तो दोनों को फायदा हो सकता है, यानी दोनों एक-दूसरे के पूरक बन सकते हैं।
पहचानो अंदर का ध्रुव
बैठे-बैठे मन किया कि जिंदगी का हिसाब-किताब लगाया जाए। एक मोटे अनुमान के अनुसार करीब 400 कॉमिक्स बना चुका हूं, जो औसतन 50 पृष्ठों की होंगी। कुल मिलाकर 20,000 पृष्ठ कम से कम ! इनमें कहानी लिखने का परिश्रम भी शामिल है, यानी अगर रोज एक पेज लिखा और बनाया जाए, बिना छुट्टी, तो हिसाब 55 साल आता है। ..उम्र से ज्यादा का काम? लोकप्रिय कॉमिक कैरेक्टर सुपर कमांडो ध्रुव के प्रणेता अनुपम सिन्हा ने फेसबुक वॉल पर 26 जून 2013 को ये पंक्तियां लिखी थीं। यही हकीकत है एक कॉमिक्स आर्टिस्ट की। यूं तो जब कॉमिक्स का नया इश्यू छपकर मार्केट में आता है, उसे मजा लेकर हर कोई पढता है। कल्पनाओं की दुनिया में खो जाता है, लेकिन उसके पीछे कितनी कडी मेहनत है, कितना दिमाग खपाना पडता है, चौबीसों घंटे किस तरह उन्हीं काल्पनिक पात्रों में खोना पडता है, इस बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो।
पढने की उम्र में लिखना शुरू
स्टार्रि्टग में अमर चित्र कथा और जो दूसरे कॉमिक्स आते थे, उनमें अनुपम को ढेर सारी खामियां नजर आती थीं। यहीं से अंदर का कॉमिक्स आर्टिस्ट सामने आने लगा। पढने की उम्र में अनुपम ने लिखना शुरू कर दिया। सिर्फ 13 साल की उम्र में दीवाना तेज नाम की पत्रिका में उनके बनाए कार्टून कैरेक्टर आने लगे। 1978 में डायमंड कॉमिक्स के साथ जुड गए।
हौसले और सूझ-बूझ का नाम ध्रुव
शुरुआत में भारतीय कॉमिक्स मार्केट में सुपरमैन, फैन्टम जैसे तमाम विदेशी सुपर हीरोज थे, ऐसे में अनुपम एक नया सुपर हीरो लेकर आए-सुपर कमांडो ध्रुव। ध्रुव बिल्कुल आम नौजवान है। उसमें कोई चमत्कारिक शक्ति नहीं है, जो हथियार भी वह इस्तेमाल करता है वह वैज्ञानिक तरीके से बने हुए हैं। खतरनाक से खतरनाक विलेन को वह बस अपनी सूझ-बूझ और साहस से हराता है। इस सुपर हीरो के जरिए बच्चों और नौजवानों को भी यही मैसेज जाता है कि सूझ-बूझ से काम लें, तो हर समस्या का समाधान हम खुद कर सकते हैं। अनुपम के मुताबिक, जितने भी कॉमिक विलेन उन्होंने गढे हैं, सब किसी न किसी मुश्किल के प्रतीक हैं, बस रूप बदल लेते हैं। सबका खात्मा एक आम इंसान की दृढ इच्छाशक्ति और सूझ-बूझ कर सकती है। हर कहानी के ताने-बाने में यही मैसेज छिपा होता है। वह बच्चों और नौजवानों में अपने क्रिएशन के जरिए यही पॉजिटिविटी भरते हैं।
पहचानी रीडर्स की नब्ज
एजुकेशन विद फन। जी हां, मस्ती के साथ ज्ञान देने के मोटो के साथ शुरू हुआ इंग्लिश कॉमिक टिंकल पिछले कई दशकों से बच्चों का फेवरेट कॉमिक ब्रांड रहा है। 1980 में अंकल पाई ने इसकी शुरुआत की थी और महज पांच साल के भीतर इसका नाम घर-घर में पॉपुलर हो चुका था। इसे बच्चों के साथ-साथ बडे भी बेहद चाव से पढा करते थे। इंग्लिश रीडर्स और कॉमिक मार्केट में अपनी पहचान पक्की करने के बाद, कुछ समय पहले टिंकल का हिंदी में भी प्रकाशन शुरू हुआ है, जिसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला है। टिंकल के हिंदी स्पेशल डाइजेस्ट की सफलता के बाद हाल ही में इसका हिंदी संग्रह भी लॉन्च किया गया है।
भाषा से परिचय
टिंकल (हिंदी संग्रह) की संपादक प्रियंवदा रस्तोगी ने बताया कि कॉमिक्स का कंटेंट रीडर्स की नब्ज को परखते हुए ही तैयार किया जाता है। भाषा सरल और उम्दा होती है। इससे बच्चे खेल-खेल में काफी कुछ सीख सकते हैं। खासकर हिंदी भाषा से उनका अच्छा परिचय हो जाता है। इसी तरह अगर टिंकल के किरदारों की बात करें, तो सुपंडी, शिकारी शंभू, बिल्ली, तंत्री द मंत्री, कालिया हर किसी के फेवरेट कैरेक्टर रहे हैं।
इंटरनेट का चैलेंज
प्रियंवदा कहती हैं कि पहले की तुलना में रीडर्स के टेस्ट में काफी बदलाव आए हैं। आज उनके सामने इंटरनेट का विशाल संसार है। ऑनलाइन प्लेटफॉ‌र्म्स पर उन्हें दुनिया भर के दिलचस्प कॉमिक स्ट्रिप पढने को मिल जाते हैं, यानी टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के आने से कॉमिक्स इंडस्ट्री को कई तरह के चैलेंजेज का सामना करना पड रहा है। इसी वजह से टीम की कोशिश होती है कि कहानियों में नयापन हो। ऐसे विषयों का चुनाव किया जाए, जो नए दौर के साथ मेल खाते हों। इसमें कॉमिक्स के अलावा साइंस, क्विज और कॉन्टेस्ट्स से संबंधित लेख का अनूठा मिश्रण होता है। इसके अलावा, यहां रीडर्स को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाता है।
मेहनत पर टिकी सफलता
कॉमिक्स इंडस्ट्री में टिंकल ने वैसे तो पिछले 33 सालों से अपनी जगह पक्की कर रखी है, लेकिन इस सफलता को बरकरार रखने के लिए आज भी टीम की मेहनत में किसी तरह की कोई कमी नहीं आई है। प्रियंवदा ने बताया कि सबसे पहले आइडियाज पर काम किए जाते हैं। स्क्रिप्ट तैयार होती है। कहानी के अनुसार विजुअल डिसाइड किए जाते हैं, उनकी ड्राइंग बनाई जाती है, कलर भरे जाते हैं, तब जाकर एक स्ट्रिप तैयार होती है, यानी इस काम को पूरा करने के लिए पैशन के साथ-साथ कुछ नया करने का जज्बा होना चाहिए।
मौलिकता से पहचान
माइथोलॉजी बनी यूएसपी
राइटर, एडिटर और पब्लिशर करणवीर अरोडा बोर्ड एग्जाम्स क्लियर करने से चूक गए थे, लेकिन कॉमिक्स से कुछ ऐसा लगाव था कि उन्होंने विमानिका नाम से पब्लिशिंग हाउस शुरू कर दिया। 2008 में लॉन्च हुई यह कंपनी आज एक ब्रांड बन गई है।
कॉमिक्स का यूथ कनेक्शन
करणवीर भारत और विदेश में बसे युवाओं को इंडियन कल्चर से कनेक्ट करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने माइथोलॉजी सब्जेक्ट चुना और आखिर में यही विमानिका कॉमिक्स की यूएसपी बन गया। लीजेंड ऑफ करणा इसका छठा फ्लैगशिप टाइटल है, जबकि शिवा-द लीजेंड्स ऑफ द इम्मॉर्टल वन बेस्ट सेलर। इसके अलावा दशावतार, मोक्ष और आइ एम कल्कि जैसे माइथोलॉजिकल कॉमिक्स रीडर्स की खास पसंद बने हैं।
ओरिजिनलिटी से सक्सेस
विमानिका कॉमिक्स के सीइओ करणवीर अरोडा कहते हैं कि उन्होंने हमेशा तीन बातों पर फोकस किया क्वालिटी, सिम्पि्लसिटी और एक्सक्लूसिवनेस। करणवीर का मानना है कि अगर इंडस्ट्री में अपनी पोजीशन मजबूत करनी है, तो काम में मौलिकता का होना जरूरी है। इसीलिए उनकी टीम में आर्कियोलॉजिस्ट, रिसर्चर और जर्नलिस्ट सभी मिलकर काम करते हैं, ताकि कॉमिक के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं की प्रामाणिकता पर कोई सवाल न उठे।
क्रिएटिविटी का कॉम्पिटिशन
करणवीर का कहना है कि छोटी सी इंडस्ट्री में कॉम्पिटिशन के बीच अपनी यूएसपी बनाने के अलावा ब्रांड क्रिएट करना काफी टफ है। बिजनेस का सही माहौल न होने से भी मुश्किलें आती हैं। बाजार के एक बडे हिस्से पर पहले से ही डायमंड और राज कॉमिक्स का कब्जा है। फिर भी नई थीम और अपने पैशन के लिए नए प्लेयर्स इंडस्ट्री में जगह बना रहे हैं।
मर्र्चेडाइज का सहारा
करणवीर की मानें, तो कॉमिक पढने की आदत पहले जैसी नहीं रही है। बच्चों के सामने एंटरटेनमेंट के कई दूसरे माध्यम आ गए हैं। उनमें पढने का शौक भी नहीं रहा है। कह सकते हैं कि यूएस या यूरोप की तरह इंडिया में कॉमिक का कल्चर डेवलप ही नहीं हो सका है। यही वजह है कि इंडस्ट्री ग्रो कर रही है, लेकिन रफ्तार धीमी है। मार्केट में सर्वाइव करने के लिए एंटरप्रेन्योर्स को अग्रेसिव होने के साथ-साथ मर्चेंडाइज का सहारा लेना पड रहा है।
विमानिका भी कॉमिक बुक स्टोर के अलावा मर्चेंडाइज ( ऐपरल, पोस्टर्स, डिजिटल पेंटिंग, स्टैचू आदि) के जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। करण का कहना है कि टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन और ऑनलाइन मीडिया के बढने के बावजूद ऑफलाइन मार्केट में खुद को स्टैब्लिश करना जरूरी है। इसीलिए पब्लिकेशन ने इंटरनेशनल रीडर्स के बीच विमानिका को ले जाने का फैसला किया।
यूरोपियन मार्केट में शिवा टाइटल को जर्मन और फ्रेंच लैंग्वेज में उतारा गया है। इसके अलावा टीवी, यू-ट्यूब, ऑनलाइन, मोबाइल के जरिए टारगेट रीडर्स तक पहुंचने की कोशिश हो रही है। करणवीर को अपने सभी प्रोडक्ट्स, आर्ट, कॉन्सेप्ट और सोच पर भरोसा है। इसलिए हर सिचुएशन में वह आगे बढने को तैयार हैं।
वाले देश भारत में आज तकरीबन हर क्षेत्र में होनहार युवाओं की प्रतिभा सामने आ रही है, चाहे वह देश की अर्थव्यवस्था को अपने योगदान से आगे बढाने की बात हो या फिर बहादुरी और जज्बे की मिसाल कायम करने में, स्टार्ट-अप के रूप में सेल्फ-मेड एंटरप्रेन्योर बनने का अनथक सफर हो या फिर आ‌र्म्ड फोर्सेज में शामिल होकर देश की आन-बान और शान पर मर मिट जाने का जुनून। हर फील्ड में लीडर सामने आ रहे हैं, जिनकी आंखों में सपना है एक बेहतर कल का।
सुनो दिल की आवाज
कम लोग ही अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते हैं और उसके मुताबिक फैसला लेते हैं। समय रहते जो लोग ऐसा कर लेते हैं, वह जीवन में काफी आगे निकल जाते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं विवेक गोयल।
मर्चेंट नेवी से आर्टिस्ट तक
विवेक ने अपना करियर मचर्ेंट नेवी से शुरू किया था। एक साल जॉब करने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि इसके लिए वह फिट नहीं हैं। उन्हें कुछ और करना चाहिए। विवेक को शुरू से ही आर्ट से लगाव था। जब भी मौका मिलता, वह जुट जाते थे ड्राइंग बनाने में। मचर्ेंट नेवी की जॉब छोडने के बाद वह एक साल तक यूं ही खाली रहे। एक दिन वह ड्राइंग बना रहे थे, तो उनके पडोस में रहने वाली एक महिला ने कहा, तुम फाइन आ‌र्ट्स का कोर्स क्यों नहीं कर लेते? तुम उसमें अच्छा कर सकते हो। बस यहीं से विवेक की लाइफ में यू टर्न आया। विवेक ने फाइन आ‌र्ट्स कोर्स में एडमिशन ले लिया। फैमिली ने भी सपोर्ट किया। नतीजा, आज वह कॉमिक इंडस्ट्री में एक सफल आर्टिस्ट हैं और उन्हें करीब आठ साल हो चुके हैं।
रावणायन और अघोरी
विवेक ने अलग-अलग कंपनियों के साथ काम किया। उन्होंने महसूस किया कि कंपनियां पैसा तो अच्छा देती हैं लेकिन उन्हें कंपनी के मुताबिक काम करना पडता है, जबकि वह खुद अपना क्रिएशन दिखाना चाहते थे। विवेक ने होली काउ एंटरटेनमेंट नाम से एक कंपनी शुरू की। इसके बैनर तले उन्होंने रावणायन और अघोरी नाम से दो कॉमिक कैरेक्टर्स इंट्रोड्यूस किए। दोनों ही काफी पॉपुलर हुए। रावणायन रावण के कैरेक्टर से इंस्पायर्ड है। इसमें रावण की सीता-हरण से पहले की लाइफ को दिखाया गया है, जबकि अघोरी साधुओं पर बेस्ड कैरेक्टर है।
नया आइडिया, नया काम
2012 के कॉमिक कन्वेंशन में विवेक का क्रिएशन एक कैटेगरी में नॉमिनेट हुआ, 2013 में तीन में और इस साल उन्हें छह नॉमिनेशन मिले हैं। उन्होंने कहा कि वह अब फ्री होकर अपने इनोवेटिव आइडियाज पर काम करते हैं। इससे उन्हें एक नई पहचान मिली है। आज कॉमिक आर्टिस्ट्स को व‌र्ल्ड वाइड शोहरत मिल रही है। उनकी कंपनी जल्द ही दो और नए कॉमिक कैरेक्टर्स लॉन्च करने की तैयारी में है, ताकि रीडर्स को कुछ नया मिल सके।
बचपन का पैशन
बचपन में ड्राइंग बनाना लगभग सभी बच्चों को पसंद होता है, लेकिन बडे होते-होते दूसरी चीजें इस शौक पर हावी हो जाती हैं और हम ड्राइंग बनाना छोड देते हैं, लेकिन कॉमिक आर्टिस्ट अभिजीत किनी ने अपने शौक को ही करियर बनाया। कभी दूसरी चीजों को ड्राइंग के बीच में नहीं आने दिया। आज फ्रीलांस आर्टिस्ट के रूप में अभिजीत कॉमिक व‌र्ल्ड में जाना पहचाना नाम हैं। अभिजीत कई बडी कॉमिक पब्लिकेशंस के लिए काम करते हैं। देश के कई बडे अखबारों में उनके कार्टून छपते रहते हैं। कॉमिक की दुनिया में अभिजीत ने एंग्री मॉशी जैसा नामी कैरेक्टर ईजाद किया। आज एंग्री मॉशी कॉमिक की दुनिया में एक ब्रांड बन चुका है।
शौक से हासिल किया मुकाम
अभिजीत को बचपन से ही आर्ट का शौक था। चार साल की उम्र से वह ड्राइंग बनाते आ रहे हैं। उन्होंने इसी फील्ड में करियर बनाने का फैसला किया। परिवार ने भी पूरा साथ दिया। खास बात यह है कि अभिजीत ने आर्ट के लिए किसी तरह की ट्रेनिंग नहीं ली और न ही कोई कोर्स किया। वह जो कुछ भी हैं अपने दम पर हैं। अभिजीत मानते हैं कि अगर आपको शौक है और आपके हाथों में जादू है, तो इसके लिए किसी ट्रेनिंग की अनिवार्यता नहीं है।
कॉमिक फेस्ट से मिली
अभिजीत कहते हैं कि कॉमिक कॉन फेस्ट से आर्टिस्ट्स को एक नई पहचान मिली है। उन्होंने बताया कि कॉमिक कॉन फेस्ट 2011 और 2013 में दो बार उन्हें बेस्ट आर्टिस्ट के लिए नॉमिनेट किया गया। फेस्ट में हर साल नए आर्टिस्ट पार्टिसिपेट करते हैं। इससे कॉमिक मार्केट भी तेजी से बढ रहा है। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी में पब्लिश उनकी दोनों कॉमिक्स काफी पॉपुलर हैं।
फ्रीलांस आर्टिस्ट के रूप में स्कोप
अभिजीत फ्रीलांस आर्टिस्ट के तौर पर अमर चित्र कथा और मुंबई बेस्ड डेली न्यूज पेपर के लिए फ्रीलांसर के रूप में काम करते हैं। आज का यूथ उनका मेन टार्गेट है। उन्होंने मिल्क ऐंड कूकीज, एंग्री मॉशी पार्ट 1 और एंग्री मॉशी पार्ट -2 नाम से एक बुक भी पब्लिश की है। लोकल और नेशनल अखबारों में भी उनकी आर्ट काफी लोकप्रिय हैं।
फास्ट ग्रोथ
अभिजीत कहते हैं कि कॉमिक इंडस्ट्री में तेजी से ग्रोथ हो रही है। कॉमिक कनवेंशन का सक्सेस होना इस बात का सबूत है कि इंडिया में कॉमिक इंडस्ट्री तेजी से बढ रही है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में कई इंडिपेंडेंट कंपनीज ने इंडस्ट्री में कदम रखा है। उम्मीद है कि आने वाले वक्त में मार्केट में तेजी से ग्रोथ होगी।
पडती है पढने का आदत
पढने की आदत डालती है कॉमिक्स
कॉमिक्स का नाम सुनते ही बचपन याद आने लगता है। सिलेबस की किताबों के बीच कॉमिक्स छुपाकर पढना और पकडे जाने पर मम्मी की डांट सुनना, लेकिन इतना होने के बावजूद भी पढते ही जाना। यह बचपन का जुडाव ही है जिसने इसका क्रेज बना रखा है। बच्चों में पढने की आदत डालने वाले कॉमिक कैरेक्टर्स के फैन्स की भरमार है। ऐसे ही एक सुपर फैन हैं दिल्ली के अमिताभ मिश्रा। फिलहाल कॉल सेंटर की जॉब कर रहे अमिताभ ने करीब 5000 से ज्यादा कॉमिक्स पढ डाली हैं। अमिताभ बताते हैं, पहली बार 1989 में शोलों की बारिश पढी थी। तब से कॉमिक्स पढने का उन्हें ऐसा शौक लगा कि पढते ही गए। कॉमिक्स पढकर कुछ देर के लिए आप दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं। अमिताभ बताते हैं, कॉमिक्स पढने से ही किताबें पढने की आदत पडी। कॉमिक्स शब्द भंडार तो बढाता ही है, दूसरे हमें क्रिएटिव और इनोवेटिव भी बनाता है।
बच्चों को क्रिएटिव बनाती है
हममें से शायद ही ऐसा कोई है जिसके जेहन में बचपन और उससे जुडी कॉमिक्स की कहानियां न हों। कॉमिक्स के किरदारों को अपना दोस्त-दुश्मन मानते हुए पूरी पीढी बडी हुई, लेकिन सवाल यह कि बच्चों को इन्हें पढने से रोका क्यों जाता है ? क्या ये बच्चों के मन पर बुरा असर डालती हैं ? क्या ये बच्चों का टाइम खराब करती हैं ? जानी-मानी साइकोलॉजिस्ट अंजू सक्सेना के मुताबिक बच्चों के लिए कॉमिक्स पढना एक तरह से जरूरी है, बस उन पर गार्जियंस की निगरानी होनी चाहिए। बच्चों का मन काफी कोमल होता है। उनकी निजी जिंदगी में उन्हें जो देखने को मिलता है, उसका असर उनके आगे की लाइफ पर भी पडता है। आजकल के बच्चे टीवी पर एक्शन फिल्में देखते हैं और साथ ही ऐसी किताबें पढना पसंद करते हैं जिनमें एक्शन हो। ऐसे में कॉमिक्स और कॉर्टून उनकी पहली पसंद होते हैं, लेकिन सवाल यह है कि वे कैसे कॉमिक्स पढते हैैं??आजकल के कॉमिक्स में हिंसा है, लेकिन उसका रूप क्या है? जिंदगी में हम सबको संघर्ष करना पडता है। मुश्किलों से या मुश्किलें पैदा करने वाले लोगों से हमें लडना पडता है। सुपर हीरो टाइप कॉमिक कैरेक्टर्स के जरिए बच्चों में लडने का जज्बा पैदा होता है।
हाइटेक हुआ कॉमिक व‌र्ल्ड
जब ब्लैकबरी और एपल सिर्फ फलों के नाम हुआ करते थे, तब कॉमिक्स पढना बच्चों का सबसे पसंदीदा टाइमपास हुआ करता था। वक्त बदला, ब्लैकबेरी और एपल के मतलब बदले तो फिर बचपन भी बदला और साथ में बदल गई कॉमिक्स की दुनिया। बच्चों की रीडिंग हैबिट ऑफलाइन से ऑनलाइन हो गई। कॉमिक्स की दुनिया ने वक्त के साथ खुद को बदला। बच्चों की बदली जरूरत और पसंद को समझा और आ गया नए कलेवर में, नए तेवर में बिल्कुल हाइटेक और मॉडर्न अंदाज में।
कॉमिक्स में करियर
इंडियन कॉमिक्स बुक इंडस्ट्री की ग्रोथ को देखते हुए इसमें इससे रिलेटेड फील्ड्स में काम करने वाले ऐसे लोगों की जरूरत है, जिनके पास प्रोफेशनल नॉलेज तो हो ही साथ ही वे टेक्निकली भी स्ट्रॉन्ग हों। इस तरह की काबिलियत जिन लोगों के पास है, वे कॉमिक्स बुक इंडस्ट्री के साथ ही एनिमेशन और गेम्स इंडस्ट्री में भी अपने करियर को आगे बढा सकते हैं।
चार गुना ग्रोथ का अनुमान
इस समय इंडियन कॉमिक्स बुक इंडस्ट्री तकरीबन 100 करोड रुपये की है और अगले एक दशक में इसका लगभग चार गुना बढकर 400 करोड रुपये होने का अनुमान है। चार गुना की यह ग्रोथ दिखाती है कि आने वाले दिनों में यहां प्रोफेशनल्स के लिए जॉब के काफी चांस मौजूद रहेंगे।
आप्शंस की भरमार
एक कॉमिक्स डिजाइनर के लिए इंडियन और फॉरेन कॉमिक्स कंपनियों और एडवरटाइजिंग एजेंसियों में तो जॉब के अच्छे आप्शन हैं ही, साथ ही अगर वह चाहे, तो अपनी टेक्निकल क्वॉलिटी और वर्क को इंप्रूव करके गेम्स और एनिमेशन सेक्टर से साथ भी जुड सकता है। इन इंडस्ट्रीज के साथ जुडने के लिए कॉमिक्स डिजाइनर को डिजाइनिंग से रिलेटेड हर तरह के नए-पुराने सॉफ्टवेयर्स की जानकारी हासिल करनी होगी।
डिजाइनर्स की डिमांड
किसी भी कॉमिक्स की सफलता में उसकी डिजाइनिंग का मेन रोल रहता है। इसलिए इंडस्ट्री को अच्छे डिजाइनर्स की हमेशा जरूरत रहती है। कॉमिक्स इंडस्ट्री में एक प्रोफेशनल मुख्य रूप से कैरेक्टर डिजाइनर, बैकग्राउंड आर्टिस्ट, कलर बैलेंसिंग आर्टिस्ट और लेआउट डिजाइनर के रूप में काम कर सकता है।
कैरेक्टर डिजाइनर
कॉमिक कैरेक्टर के फेस और बॉडी में आने वाले एक्सप्रेशंस स्टोरी और डायलॉग के हिसाब से हर अगली तस्वीर में बदल जाते हैं। कैरेक्टर डिजाइनर द्वारा स्टेप बाई स्टेप बनाई गई ये तस्वीरें रीडर को बुक में एक एक्शन फील कराती हैं। कैरेक्टर डिजाइनर कॉमिक्स के लिए नए कैरेक्टर बनाने का काम भी करता है।
बैकग्राउंड आर्टिस्ट
कॉमिक कैरेक्टर्स के पीछे के सीन जैसे गार्डेन, बिल्डिंग, मार्केट, ट्रेन आदि बनाने का काम बैकग्राउंड आर्टिस्ट का है। इसका फोकस इस बात पर रहता है कि किस तरह की डिजाइन और कलर थीम से कैरेक्टर को निखारकर रीडर्स केसामने लाया जाए। ये अपना सारा काम कैरेक्टर डिजाइनर के साथ डिस्कस करके ही करते हैं।
कलर बैलेंसिंग आर्टिस्ट
प्रिंटिंग पैटर्न के बदलने और कॉमिक्स के डिजिटल फार्म में आने से कलर बैलेंसिंग आर्टिस्ट की डिमांड इस इंडस्ट्री में काफी बढ गई है। एक कलर बैलेंसिंग आर्टिस्ट को आजकल के हिसाब से प्रिंटिंग और डिजिटल फॉर्म के लिए यूज की जा रही लेटेस्ट टेक्नोलॉजी पर काम करना होता है। कलर बैलेंसिंग आर्टिस्ट लाइट की पोजीशन, स्टोरी की थीम, बैकग्राउंड आदि को ध्यान में रखते हुए तस्वीरों को इस तरह से डेवलप करते हैं कि वे प्रिंट या डिजिटल फॉर्म में जब हमारे सामने आएं तो उनमें पूरी तरह वास्तविकता का आभास हो।
लेआउट डिजाइनर
किसी भी दूसरी किताबों की तरह कॉमिक्स के डिजाइन को भी फाइनल टच देने का काम लेआउट डिजाइनर का है। एक लेआउट डिजाइनर पहले टोटल पेज और मैटर की जानकारी लेता है। इसके बाद डिजाइनिंग के हर सेगमेंट से जुडे लोगों से डिस्कस करने के बाद टेक्स्ट, इमेज और वाइट स्पेस के बैलेंस से पेज बनाता है। अट्रैक्टिव पेज बनाने के साथ ही इसका काम कॉमिक्स के मेन कैरेक्टर को हाईलाइट करना भी है।
स्टोरी राइटर
कॉमिक्स की स्टोरी तो सामान्य होती है, लेकिन इसके जरिए दिया जाने वाला संदेश बच्चों को ही नहीं बडों को भी अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करता है। आसान शब्दों में ऐसे संदेश लोगों तक पहुंचाने का काम स्टोरी राइटर का है। जिन लोगों की भाषा पर कमांड है, वे इस काम को कर सकते हैं।
डायलॉग राइटर
डायलॉग राइटर अपने लिखे डायलॉग से स्टोरी को और भी रोचक बना देते हैं। चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है। जैसे डायलॉग से कॉमिक्स कैरेक्टर को पॉपुलर करने का काम डायलॉग राइटर का ही है।
क्वॉलिटी मैनेजर
कॉमिक्स इंडस्ट्री में प्लानिंग से लेकर मार्केटिंग तक हर जगह पर क्वॉलिटी मैनेजर लोगों की मदद करते हैं। प्रोडक्ट डिजाइनिंग, स्क्रिप्टिंग, मार्केटिंग आदि हर लिहाज से बेहतर हो और कंपनी अपने कॉम्पिटिटर से आगे बढे, यह सुनिश्चित करना इनका ही काम है।
 
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