नई दिल्ली। देश में पेट्रोलियम उत्पादों विशेषकर पेट्रोल और डीजल की खपत के आधार पर यह अनुमान जताया गया है कि यदि कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़त होती है तो देश के आयात बिल में आठ अरब डॉलर की बढ़ोतरी होती है।
भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक शोध विभाग द्वारा सोमवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार यदि पिछले वित्त वर्ष की बात की जाए तो तेल आयात बिल में 22 अरब डॉलर की बढोतरी हुई थी क्योंकि मार्च 2017 तक तेल 53 डॉलर प्रति बैरल पर था जो इस वर्ष मार्च में बढ़कर 70 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। उसने कहा कि तेल की कीमतों में 17 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी होने पर तेल आयात बिल 22 अरब डॉलर बढ़ा है।
इस दौरान तेल खपत में भी बढ़ोतरी हुई है। स्टेट बैंक के ग्रुप मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने इस रिपोर्ट में लिखा है कि प्रति बैरल तेल की कीमतों में 10 डॉलर की बढ़ोतरी होने पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 16 आधार अंकों की कमी आती है, जबकि महंगाई 20 आधार अंक बढ़ जाता है। यदि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बाद उत्पाद शुल्क में एक रुपए की कमी की जाती है तो उससे वित्तीय घाटा भी बढ़ेगा।
मार्च 2019 तक तेल की कीमतों के 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने का अनुमान
रिपोर्ट में मार्च 2019 तक तेल की कीमतों के 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने का अनुमान जताते हुए कहा गया है कि वर्ष 2018-19 के लिए औसत कीमत 83.9 डॉलर प्रति बैरल होगी जबकि वर्ष 2017-18 में यह 73.6 डॉलर प्रति बैरल रहा है। यदि इस वर्ष जून में इसकी कीमत 90 बैरल प्रति बैरल को पार कर जाएगी तो मार्च 2019 तक यह 100 बैरल प्रति डॉलर पर पहुंच सकती है।
इस तरह से मार्च 2019 में समाप्त होने वाले वित्त वर्ष में तेल की औसत कीमत 93 डॉलर प्रति बैरल हो सकती है और इससे जीडीपी में 31 आधार अंक की कमी आएगी, जबकि महंगाई 58 आधार अंक और वित्तीय घाटा 40 आधार अंक बढ़ जाएगा। इसमें कहा गया है कि यदि चालू खाता घाटा एक अरब डॉलर बढ़ता है तो इससे रुपए का करीब 30 पैसे अवमूल्यन होता है तथा यदि एक अरब डॉलर पोर्टफोलियो निवेश आता है तो इससे रुपया 26 पैसे मजबूत होता है।