मुंबई। हिंदी सिनेमा के गोल्डन एरा में कई फिल्में ऐसी आयी हैं, जो कहानी, कॉन्सेप्ट, संगीत, अभिनय और निर्देशन के लिहाज से आज भी फिल्मकारों और कलाकारों के लिए पाठशाला की तरह हैं। दशकों पहले आयीं ये फिल्में सिनेमाई उत्कृष्टता की मिसाल तो हैं ही, बॉक्स आॅफिस पर भी इनकी कामयाबी एक नजीर हैं।
ऐसी ही एक फिल्म 'मधुमती' है, जो 60 साल पहले 12 सितम्बर 1958 को रिलीज हुई थी। 'मधुमती' अपने दौर से आगे की फिल्म कही जा सकती है, क्योंकि इसने बाद के दशकों में तमाम फिल्मों को प्रेरित किया है। भारतीय सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में शुमार बिमल रॉय ने इसका निर्देशन किया था। दिलीप कुमार, वैजयंती माला और प्राण ने मुख्य किरदार निभाये थे। 'मधुमती' से जुड़े कई पहलू ऐसे हैं, जो इसे भारतीय सिनेमा की फ्लैगबेयरर फिल्म बनाते हैं। इसका प्रीमियर मुंबई के ओपेरा हाउस में हुआ था। फिल्म की शूटिंग रानीखेत, घोड़ाखाल, वैतरणा डैम और मुंबई की आरे मिल्क कॉलोनी में हुई थी।
शुरू हुआ पुनर्जन्म का कॉन्सेप्ट
हिंदी सिनेमा में पुनर्जन्म पर आधारित कई फिल्में बनायी जा चुकी हैं। ऐसी तमाम फिल्में दर्शकों ने देखी होंगी और पसंद भी की जाती हैं। इन सभी फिल्मों की जड़ें मधुमती तक जाती हैं, क्योंकि पुनर्जन्म या रीइनकार्नेशन पर बनी यह पहली फिल्म मानी जाती है। फिल्म की कहानी और संवाद रित्विक घटक और राजिंदर सिंह बेदी ने लिखे थे। मधुमती में दिलीप कुमार ने दो किरदार निभाये थे। पहले जन्म में उनके किरदार का नाम आनंद था, जबकि दूसरे जन्म में देविंदर। वैजयंतीमाला के किरदारों के नाम मधुमती और माधवी थे। शाह रुख खान की फिल्म 'ओम शांति ओम' सुभाष घई की फिल्म 'कर्ज़' से प्रेरित है, लेकिन इसका क्लाइमैक्स मधुमती से लिया गया है।
बिमल राय का 'पुनर्जन्म'
मधुमती से पहले बिमल रॉय ने दिलीप कुमार और वैजयंती माला के साथ 'देवदास' बनायी थी, जो 1955 में रिलीज हुई थी। शराब में बर्बाद आशिक देवदास की इस कहानी ने बिमल दा को भी बर्बाद कर दिया था। 'देवदास' भले ही आज भारतीय सिनेमा की क्लासिक फिल्म मानी जाती है, मगर बॉक्स आॅफिस पर फ्लॉप रही थी और बिमल दा की प्रोडक्शन कंपनी सड़क पर आ गयी थी। फिल्म इंडस्ट्री में बने रहने के लिए बिमल रॉय को एक सफलता की बेहद जरूरत थी।
रित्विक घटक ने जब यह कहानी बिमल दा को सुनाई तो उन्हें यह खूब पसंद आयी और इस पर काम शुरू कर दिया गया। राजिंदर सिंह बेदी ने फिल्म के डायलॉग उर्दू लिपि में लिखे थे। दिलीप कुमार पहले ही फिल्म में काम करने को राजी थी। प्राण के आने के बाद वैजयंतीमाला भी तैयार हो गयीं और इस तरह मधुमती का सफर शुरू हुआ। फिल्म की बेतहाशा कामयाबी ने बिमल रॉय के लिए आॅक्सीजन का काम किया। यह कहना गलत नहीं होगा कि मधुमती की वजह से हिंदी सिनेमा के एक दिग्गज निर्देशक का पुनर्जन्म हुआ।