24 Apr 2024, 06:56:35 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मुबंई। बॉलीवुड में बलराज साहनी को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपने संजीदा और भावात्मक अभिनय से लगभग चार दशक तक सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया। बलराज साहनी के उत्कृष्ठ अभिनय से सजी दो बीघा जमीन, वक्त, काबुलीवाला, एक फूल दो माली और गर्म हवा जैसे दिल को छू लेने वाली कला फिल्में आज भी सिने प्रेमियों के दिलों में बसी हुई है।
 
रावलपिंडी शहर (अब पाकिस्तान) में एक मध्यम वर्गीय व्यवसायी परिवार में एक मई 1913 को जन्मे बलराज साहनी (मूल नाम युधिष्ठर साहनी) का बचपन से ही झुकाव अपने पिता के पेशे की ओर न होकर अभिनय की ओर था । उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्राकोत्तर की शिक्षा लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की।
 
स्राकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद बलराज साहनी रावलपिंडी लौट गये और पिता के व्यापार में उनका हाथ बटाने लगे । वर्ष 1930 के अंत मे बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोड़ गुरुदेव  रवीन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन पहुंचे जहां बलराज साहनी अंग्रेजी के शिक्षक के रूप मे नियुक्त हुए। वर्ष 1938 मे बलराज साहनी ने महात्मा गांधी के साथ भी काम किया। इसके एक वर्ष के पश्चात महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बी.बी.सी के हिन्दी के उदघोषक के रूप में इग्लैंड में नियुक्त किया गया । लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद वह 1943 में भारत लौट आये।
 
इसके बाद  बलराज शाहनी अपने बचपन के शौक को पूरा करने के लिये इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर ऐशोसियेशन (इप्टा) में शामिल हो गये। इप्टा में वर्ष 1946 में उन्हें सबसे पहले फणी मजमूदार के नाटक ..इंसाफ .. में अभिनय करने का मौका मिला। इसके साथ ही ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा की ही निर्मित फिल्म ..धरती के लाल.. में भी बलराज साहनी को बतौर अभिनेता काम करने का भी मौका मिला । इप्टा से जुडे रहने के कारण बलराज साहनी को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़। उन्हें  अपने क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट विचार के कारण जेल भी जाना पड़ा।
 
अपनी पहचान को तलाशते बलराज साहनी को लगभग पांच वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा । वर्ष 1951 में जिया सरहदी की फिल्म ..हमलोग .. के जरिये बतौर अभिनेता वह अपनी पहचान बनाने में सफल हुए। वर्ष 1953 में बिमल राय के निर्देशन में बनी फिल्म ...दो बीघा जमीन .. बलराज साहनी के करियर मे अहम पड़ाव साबित हुई।
 
फिल्म दो बीघा जमीन की कामयाबी के बाद बलराज साहनी शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे । इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने एक रिक्शा वाले के किरदार को जीवंत कर दिया था। रिक्शा वाले को फिल्मी पर्दे पर साकार करने के लिये बलराज साहनी ने कोलकाता की सड़कों पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चलाया और रिक्शे वालों की जिंदगी के बारे में उनसे बातचीत की।
 
दो बीघा जमीन फिल्म की शुरुआत के समय निर्देशक बिमल राय सोचते थे कि बलराज साहनी शायद ही फिल्म में रिक्शा वाले के किरदार को अच्छी तरह से निभा सकें। इसका कारण यह था कि वास्तविक जिंदगी मे बलराज साहनी बहुत पढ़े लिखे इंसान थे लेकिन उन्होंने बिमल राय की सोच को गलत साबित करते हुये फिल्म में अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया। इस फिल्म को आज भी भारतीय फिल्म इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कलात्मक फिल्मों में शुमार किया जाता है। फिल्म को अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी सराहा गया तथा कांस फिल्म महोत्सव के दौरान इसे अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
 
वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म ..काबुलीवाला.. में भी बलराज साहनी ने अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को भावविभोर किया। बलराज साहनी का मानना था कि पर्दे पर किसी किरदार को साकार करने के पहले उस किरदार के बारे में पूरी तरह से जानकारी हासिल की जानी चाहिये।  इसीलिये वह मुंबई में एक काबुलीवाले के घर में लगभग एक महीना तक रहे।
 
बहुमुखी प्रतिभा के धनी बलराज साहनी अभिनय के साथ-साथ लिखने में भी काफी रूचि रखा करते थे । वर्ष 1960 में अपने पाकिस्तानी दौरे के बाद उन्होंने .. मेरा पाकिस्तानी सफरनामा.. और वर्ष 1969 में तत्कालीन सोवियत संघ के दौरे के बाद ..मेरा रूसी सफरनामा..किताब लिखी।
 
इसके अलावा बलराज साहनी ने ..मेरी फिल्मी आत्मकथा.. किताब के माध्यम से लोगों को अपने बारे में बताया। देवानंद  निर्मित फिल्म..बाजी ..की पटकथा भी बलराज साहनी ने लिखी।  वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म ..लाल बत्ती..का निर्देशन भी बलराज साहनी ने किया ।
अभिनय में आयी एकरूपता से बचने और स्वंय को चरित्र  अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिये बलराज साहनी ने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया।
 
इनमें हकीकत, वक्त, दो रास्ते, एक फूल दो माली, मेरे हमसफर जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल है। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म ..वक्त.. में बलराज साहनी के अभिनय के नये आयाम दर्शकों को देखने को मिले । इस फिल्म में उन्होंने लाला केदार नाथ के किरदार को जीवंत कर दिया ।इस फिल्म में उनपर फिल्माया गाना ..ऐ मेरी जोहरा जबीं तुझे मालूम नहीं ..सिने दर्शक आज भी नहीं भूल पाये हैं।
 
निर्देशक एम.एस.सथ्यू की वर्ष 1973 मे प्रदर्शित ..गर्म हवा..बलराज साहनी की मौत से पहले उनकी सबसे अधिक सफल फिल्म थी । उत्तर भारत के मुसलमानों के पाकिस्तान पलायन की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में बलराज साहनी केन्द्रीय भूमिका में रहे। इस फिल्म में उन्होंने जूता बनाने बनाने वाले एक बूढे मुस्लिम कारीगर की भूमिका अदा की।
 
उस कारीगर को यह फैसला लेना था कि वह हिन्दुस्तान में रहे अथवा नवनिर्मित पकिस्तान में पलायन कर जाये। यदि दो बीघा जमीन को छोड दे तो बलराज साहनी के फिल्मी करियर की सबसे अधिक बेहतरीन अदाकारी वाली फिल्म गर्म हवा ही थी। अपने संजीदा अभिनय से दर्शको को भावविभोर करने वाले महान कलाकार बलराज साहनी 13 अप्रैल 1973 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।
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