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पुण्यतिथि: जन्म के समय पिता मीना को अनाथालय छोड़ आये थे

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 31 2018 9:41AM | Updated Date: Mar 31 2018 9:41AM
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मुंबई। अपने दमदार और संजीदा अभिनय से सिने प्रेमियों के दिलों पर छा जाने वाली ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी को उनके पिता अनाथालय छोड़ आए थे। एक अगस्त 1932 का दिन था। मुंबई में एक क्लीनिक के बाहर मास्टर अली बक्श नाम के शख्स बड़ी बेसब्री से अपनी तीसरी औलाद के जन्म का इंतजार कर रहे थे। दो बेटियों के जन्म लेने के बाद वह इस बात की दुआ कर रहे थे कि अल्लाह इस बार बेटे का मुंह दिखा दे। तभी अंदर से बेटी होने की खबर आयी तो वह माथा पकड़ कर बैठ गये। 

मास्टर अली बख्श ने तय किया कि वह बच्ची को घर नहीं ले जायेंगे और वह बच्ची को अनाथालय छोड़ आये लेकिन बाद में उनकी पत्नी के आंसुओं ने बच्ची को अनाथालय से घर लाने के लिये उन्हें मजबूर कर दिया। बच्ची का चांद सा माथा देखकर उसकी मां ने उसका नाम रखा 'माहजबीं'। बाद में यही माहजबीं फिल्म इंडस्ट्री में मीना कुमारी के नाम से मशहूर हुयीं। 
 
वर्ष 1939 मे बतौर बाल कलाकार मीना कुमारी को  विजय भटृ की 'लेदरफेस' में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1952 मे मीना कुमारी को विजय भटृ के निर्देशन मे ही बैजू बावरा मे काम करने का मौका मिला। फिल्म की  सफलता के बाद मीना कुमारी बतौर अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गयीं।
 
वर्ष 1952 मे मीना कुमारी ने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के साथ शादी कर ली।  वर्ष 1962 मीना कुमारी के सिने कैरियर का अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी आरती, मै चुप रहूंगी तथा साहिब बीबी और गुलाम जैसी फिल्में प्रदर्शित हुयीं। इसके साथ हीं इन फिल्मों के लिये वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिये नामित की गयी। यह फिल्म फेयर के इतिहास मे पहला ऐसा मौका था जहां एक अभिनेत्री को फिल्म फेयर के तीन नोमिनेशन मिले थे।
 
वर्ष 1964 मे मीना कुमारी और कमाल अमरोही की विवाहित जिंदगी मे दरार आ गयी। इसके बाद मीना कुमारी और कमाल अमरोही अलग-अलग रहने लगे। कमाल अमरोही की फिल्म 'पाकीजा' के निर्माण मे लगभग चौदह वर्ष लग गये। कमाल अमरोही से अलग होने के बावजूद मीना कुमारी ने शूटिंग जारी रखी क्योंकि  उनका मानना था कि पाकीजा जैसी फिल्मों मे काम करने का मौका बार-बार नहीं मिल पाता है।
 
मीना कुमारी के करियर में उनकी जोड़ी अशोक कुमार के साथ काफी पसंद की गयी। मीना कुमारी को उनके बेहतरीन अभिनय के लिये चार बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया है। इनमें बैजू बावरा, परिणीता, साहिब बीबी और गुलाम तथा काजल शामिल है।
 
मीना कुमारी यदि अभिनेत्री नहीं होती तो शायर के रूप में अपनी पहचान बनातीं। हिंदी फिल्मों के जाने माने  गीतकार और शायर गुलजार से एक बार मीना कुमारी ने कहा,"ये जो एक्टिंग मैं करती हूं उसमें एक कमी है। ये फन, ये आर्ट मुझसे नहीं जन्मा है। ख्याल दूसरे का, किरदार किसी का और निर्देशन किसी का। मेरे अंदर से जो जन्मा है, वह लिखती हूं जो मैं कहना चाहती हूं वह लिखती हूं।"  मीना कुमारी ने अपनी वसीयत में अपनी कविताएं छपवाने का जिम्मा गुलजार को दिया जिसे उन्होंने 'नाज' उपनाम से छपवाया।
 
सदा तन्हा रहने वाली मीना कुमारी ने अपनी रचित एक गजल के जरिये अपनी जिंदगी का नजरिया पेश किया है- 
चांद तन्हा है आसमां तन्हा    
दिल मिला है कहां कहां तन्हा          
राह देखा करेगा सदियों तक          
छोड़ जायेगें ये जहां तन्हा ..          
 
लगभग तीन दशक तक अपने संजीदा अभिनय से दर्शको के दिल पर राज करने वाली हिन्दी सिने जगत की महान अभिनेत्री मीना कुमारी 31 मार्च 1972 को सदा के लिये अलविदा कह गयीं। मीना कुमारी के करियर की अन्य उल्लेखनीय फिल्में हैं..आजाद, एक हीं रास्ता, यहूदी, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहीनूर, दिल एक मंदिर, चित्रलेखा, फूल और पत्थर, बहू बेगम, शारदा, बंदिश, भींगी रात, जवाब,दुश्मन आदि। 
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