19 Apr 2024, 19:22:13 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मुंबई। लगभग तीन दशक से अपने रचित गीतो से हिन्दी फिल्म जगत को सराबोर करने वाले गीतकार अंजान के रूमानी नज्म आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते है । 28 अक्टूबर 1930 को बनारस मे जन्में अंजान को बचपन के दिनों से हीं उन्हें शेरो शायरी के प्रति गहरा लगाव था। अपने इसी शौक को पूरा करने के लिये वह बनारस मे आयोजित सभी कवि सम्मेलन और मुशायरों के कार्यक्रम में हिस्सा लिया करते थे। हांलाकि मुशायरो के कार्यक्रम मे भी वह उर्दू का इस्तेमाल कम हीं किया करते थे। जहां हिन्दी फिल्मों में उर्दू का इस्तेमाल एक पैशन की तरह किया जाता था। वही अंजान अपने रचित गीतों मे हिन्दी पर ही ज्यादा जोर दिया करते थे। गीतकार के रूप मे उन्होने अपने कैरियर की शुरूआत वर्ष 1953 मे अभिनेता प्रेमनाथ की फिल्म ..गोलकुंडा का कैदी ..से की। इस फिल्म के लिये सबसे पहले उन्होंने ..लहर ये डोले कोयल बोले ..और शहीदो अमर है तुम्हारी कहानी गीत लिखा लेकिन इस फिल्म के जरिये वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाये।
 
अंजान ने अपना संघर्ष जारी रखा। इस बीच उन्होंने कई छोटे बजट फिल्में भी की जिनसे उन्हे कुछ खास फायदा नहीं हुआ। अचानक हीं उनकी मुलाकात जी. एस. कोहली से हुयी जिनमे संगीत निर्देशन मे उन्होंने फिल्म लंबे हाथ के लिये ..मत पूछ मेरा है मेरा कौन ..गीत लिखा। इस गीत के  जरिये वह काफी हद तक बनाने मे सफल हो गये। लगभग दस वर्ष तक मायानगरी मुंबई मे संघर्ष करने के बाद वर्ष 1963 में पंडित रविशंकर के संगीत से सजी प्रेमचंद के उपन्यास गोदान पर आधारित फिल्म ..गोदान.. मे उनके रचित गीत ..चली आज गोरी पिया की नगरिया .. की सफलता के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गीतकार अंजान को इसके बाद कई अच्छी फिल्मो के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये। जिनमे बहारे फिर भी आयेगी, बंधन, कब क्यों और कहां, उमंग, रिवाज ,एक नारी एक बह्चारी और हंगामा जैसी कई फिल्में शामिल है ।
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