13 जुलाई को आषाढ़ मास की अमावस्या के साथ ही सर्वार्थ सिद्धी योग के पुनर्वसु नक्षत्र में गुप्त नवरात्र का आरंभ होगा। इसी दिन खण्डग्रास सूर्यग्रहण का भी आरंभ होगा। भारतीय समय अनुसार ग्रहण का प्रारंभ सुबह 7 बजे से होगा हालांकि यह भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए माना जा रहा है कि इसका यहां पर प्रभाव नहीं होगा।
ज्योतिषाचार्य पं. कामता प्रसाद तिवारी के अनुसार साल में 2 बार गुप्त नवरात्रि आती हैं, आषाढ़ और माघ मास में आने वाली नवरात्रि का विशेष महत्व साधकों के लिए है। साधक इन नवरात्रियों में सिद्धी पाने के लिए साधना करते हैं। हालांकि आमजन भी गुप्त नवरात्रियों में माता की आराधना करते हैं। वहीं इस वर्ष पंचाग मतभेद के कारण कुछ विद्वान गुप्त नवरात्रियों की शुरूआत 14 जुलाई से मान रहे हैं। क्योंकि 13 को प्रतिपदा तिथि क्षय हुआ है, लेकिन द्वितीय तिथि में कभी भी नवरात्रि का प्रांरभ नहीं किया जाता है इसलिए 13 जुलाई को ही नवरात्रि का प्रारंभ माना जा रहा है।
10 महाविद्याओं की साधना के लिए मनाते हैं गुप्त नवरात्र
माता ने राक्षसों का संहार करने के लिए अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बंगलामुखी, धूमावती, त्रिपुरासुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट किया था। इन दसों महाविद्याओं की साधना के लिए गुप्त नवरात्रि मनाई जाने लगी। इन गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति से उपासना की जाती है। इस समय शैव धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी, क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है। इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महादेव और महाकाली की पूजा की जाती है। साथ ही यदि कोई साधक इन दस महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना करता है तो उसे सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं।