नवरात्र में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है। इस दिन छोटी बच्चियों को देवी का रूप मान कर पूजा जाता है। साथ ही इनके चरण छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। माना जाता है की उनका आशीर्वाद मां की कृपा लेकर आता है। इसलिए जो लोग नवरात्र में व्रत नहीं भी रखते, वे भी कन्या पूजन जरूर करते हैं।
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बडा महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिविंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को उनका मनचाहा वरदान देती हैं।
इस की पूरी विधि
कन्या पूजन के साथ ही जरूरी है कि इसे पूरी विधि से किया जाए और इसके लिए बनाए गए नियमों का ध्यान रखा जाए। ऐसा न करने पर मां रुष्ट हो सकती हैं। कन्या पूजन की शुरुआत कन्याओं के चरण धोने से होती है। इसके बाद उनको भोजन भी पूरी श्रद्धा से कराना चाहिए। साथ ही उनसे आशीर्वाद भी झुककर लेना चाहिए। सत्य और समर्पण भाव से उनको माता ही मानकर उनके आशीर्वाद को स्वीकार करने की परंपरा चली आ रही है।