बुधवार का दिन ओर विशाखा नक्षत्र प्रकृति व वनस्पति को संबोधित है। इस योगायोग के कारण वनस्पति की देवी शाकंभरी की आराधना करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा। देवी भागवतम में वर्णित मूर्ति रहस्य में शाकंभरी स्वरूप का वर्णन है। देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही ये विराजती हैं। इनकी एक मुट्ठी में कमल है और दूसरी मुट्ठी में बाण। पौराणिक वृतांत के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति अवतारों में से एक हैं। कालांतर में भूलोक पर दुर्गम नामक दैत्य के प्रकोप से लगातार सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण प्रजा त्राहिमाम करने लगी। ब्रह्मदेव के वरदान के बल पर दुर्गमासुर ने देवताओं से चारों वेद चुरा लिए थे। देवी शाकंभरी ने दुर्गमासुर का अंत कर देवगणो को पुनः वेद लौटाए। देवी शाकंभरी की संपूर्ण देह में सौ नेत्र समाए हैं इसी कारण शास्त्रों ने इन्हें शताक्षी भी कहा हैं। शताक्षी ने जब नजर उठाई तो धरती हरी-भरी हो गई, नदियों में जल धारा बह चली, वृक्ष औषधियों से परिपूर्ण हो गए। देवी अपने शरीर से उत्पन्न शाक से संसार का पालन करती हैं इसी कारण इनका नाम शाकंभरी पड़ा। इनके विशेष पूजन व उपाय से रोगों से छुटकारा मिलता है, शारीरिक विकारों से मुक्ति मिलती है, सांसरिक खुशहाली आती है व जीवन से गरीबी दूर होती है।