हमारी परंपरा में धर्म का स्थान अहम है और धर्म में देवताओं का। इनके साथ इनके प्रतीक चिह्नों का भी महत्व है। सृष्टि के रचियेता ब्रह्मा,विष्णु और शिव के बिना सबकुछ अधूरा है। हम अक्सर भगवान के साथ उनके प्रतीक चिह्न को भी देखते है। इसी क्रम में सृष्टि के संहारकर्ता भगवान शिव के साथ भी हम कुछ चोजों को देखते है।
जैसे जब हम शिव की कल्पना करते है तो उनके माथे पर तीसरी आंख, उनका वाहन नंदी, और त्रिशूल को साथ में देखते हैं। क्या सच में शिव के माथे पर एक और आंख है? और क्या वे हमेशा नंदी और त्रिशूल को अपने साथ रखते हैं? या फिर इन्हें चिन्हों की तरह इस्तेमाल करके हमें कुछ और समझाने की कोशिश की गई है? आइए आज इन्हीं के बारे में जानते है।
भोले की तीसरी आंख
शिव को त्रयंबक कहते है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब ये नहीं है कि उनके माथे पर कुछ निकल आया! इसका मतलब सिर्फ ये है कि ज्ञान और अनुभव का एक तीसरा आयाम भी है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि ज्ञान का आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। तो आप वह देख सकते हैं जिसका सामने आना अभी बाकी है और जो सामने आ सकता है। ज्ञान का मतलब जीवन को एक नई दृष्टि से देखना है।