ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्म के समय मनुष्य की ग्रह-दशा से उसकी आयु व स्वास्थ्य का गहरा सबंध है। भारतीय मनीषियों के अनुसार जन्मांतर में किए गए कार्यों या कर्मों के अनुरूप मनुष्य को आयु प्राप्त होती है। आयु प्रारब्ध आदि कर्म के प्रभाव से दीर्घ, मध्यम या अल्प होती है। आयु कितनी होगी, उसका निर्णय विविध योग, ग्रहों की युति, दृष्टि, निसर्गादि भेद व दशा द्वारा जानी जाती है। योग मुख्य रूप से ग्रह, राशि और भाव से बनते हैं। आयु से जुड़े योगों को ह्ययोगायुह्ण कहते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार योगायु छह प्रकार की होती। सद्योरिष्ट योग में एक वर्ष की आयु होती है।
अरिष्ट योग होने पर दो वर्ष से 12 वर्ष की आयु होती है। अल्पायु योग में अधिकतम 23 वर्ष की आयु होती है। मध्यम आयु योग में 70 वर्ष की आयु होती है। दीघार्यु योग में अधिकतम 100 की आयु होती है और अमितायु योग वाला जातक 100 वर्षों से अधिक जीवित रहता है। किंतु आयु का निर्णय 12 वर्षों के बाद ही करना चाहिए। अरिष्ट योग : अरिष्ट योग तीन प्रकार के होते हैं- नियत, अनियत और योगज। इस योग में आयु एक वर्ष होती है। योगारिष्ट में आयु आठ से 20 वर्ष तक होती है। अल्पायु योग : जब मारकेश ग्रह की दशा-अंतर्दशा आती है, तब यह योग ूबनता है। जैसे, जब लग्नेश, अष्टमेश दोनों स्थिर राशि में हो, लग्नेश अष्टम में हो और वृश्चिक जब सूर्य व गुरु के साथ लग्न में हो अष्टमेश केंद्र में हो तो 22 वर्ष की आयु मानी जाती है। मध्यमायु योग : दिन में अगर जन्म हो और चंद्रमा से आठवें स्थान में पाप ग्रह हो तो मध्यमायु योग होता है।
सभी शुभ ग्रह दूसरे, पांचवें, आठवें और 11वें स्थान में हों या तीसरे, चौथे भाव में हों, तब भी मध्यमायु योग होता है। दीघार्यु योग : जब अष्टमेश अपनी ही राशि में हों, शनि अष्टम में हो और अष्टमेश, लग्नेश व दशमेश पहले, चौथे, पांचवें, सातवें, नवें, 10वें भाव में हों तो व्यक्ति दीघार्यु होता है। अमितायु : जन्म समय में कर्क लग्न में चंद्र और गुरु विद्यमान हों, बुध व शुक्र केंद्र (पहले, चौथे, सातवें व दसवें स्थान) में हों और शेष ग्रह (सूर्य, मंगल, शनि) तीसरे, छठे और 11वें भाव में हों तो अमितायु योग होता है। लेकिन इन सभी योगों में बताई गई आयु को मनुष्य के इस जन्म के कर्म बढ़ा या घटा भी सकते हैं।