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Astrology

तीन दशक बाद मकर संक्रांति पर दुर्लभ निराला संयोग

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 13 2017 7:16PM | Updated Date: Jan 13 2017 7:16PM
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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शब्द संक्रांति सूर्य के संक्रामण से बना है अर्थात सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। ज्योतिष के पंचांग खंड अनुसार इस दिन सूर्य, शनि की राशि मकर में प्रवेश करके दो माह तक शनि की दो राशियों मकर व कुंभ में रहते हैं। सूर्य के मकर राशि में आने पर इसे मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू होता है व सूर्य के परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। इसी दिन से धनुमास व दक्षिणायन समाप्त होता है तथा शुभ माह एवं उत्तरायण के प्रारंभ होने के कारण इस दिन पर लोग दान-पुण्य कर शुभ कार्य करते हैं। शास्त्रों में दक्षिणायण को देवों की रात्रि अर्थात नकारात्मकता व उत्तरायण को देवों का दिवस अर्थात सकारात्मकता मानते है। अतः इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि का विशेष महत्व है। शास्त्रनुसार मकर संक्रांति पर दिया गए दान से सहस्त्र गुणा फल प्राप्त होता है। इस दिन तीर्थ स्नान व दान को अत्यधिक शुभ माना गया है।

शनिवार दिनांक 14.01.17 को मकर संक्रांति पुण्यकाल मुहूर्त प्रातः 07:50 से प्रारंभ होकर सांय 17:41 तक रहेगा। पुण्यकाल मुहूर्त की अवधि 9 घंटे 51 मि॰ तक रहेगी। संक्रांति पुण्यकाल प्रातः 07 बजकर 50 मि॰ पर होगा। महापुण्य काल मुहूर्त प्रातः 07:50 से प्रातः 08:14 तक रहेगा जिसकी अवधि 23 मिनट रहेगी। साल 2017 में मकर संक्रांति पर प्रीति योग और आयुष्मान योग रहेगा। इस के साथ-साथ चंद्रमा अपनी ही राशि कर्क राशि में और बुध के नक्षत्र अश्लेषा नक्षत्र में रहेगा। इस दिन सूर्योदय प्रातः 07:19 से लेकर दोपहर 12:49 बजे तक गजकरण (गजराज) व रात 12:08 तक वणिज-करण (वृष) रहने से यह मकर संक्रांति कुछ विशेष हो जाती है। इस दिन सूर्य प्रातः 7:50 पर मकर राशि में प्रवेश करेगा। नक्षत्र अनुसार पर इस संक्रांति का नाम राजसी व “मिश्रता” भी है। यह संक्रांति जीवों के लिए लाभकारी होगी। यह संक्रांति लाल वस्त्र धारण की हुई आएगी। उसका शस्त्र धनुष है। हाथ में लोहे का पात्र है और वे दूध का सेवन कर रही हैं।

 

वर्ष 2017 में लगभग 3 दशकों बाद मकर संक्रांति पर अति दुर्लभ निराला संयोग बना है। ज्योतिष कालगणना अनुसार इस मकर संक्रांति पर गज-करण होने से इसकी सवारी “हाथी” पर चढ़कर आएगी व वणिज-करण रहने से यह बैल पर बैठकर विदाई लेगी। हाथी की सवारी राहू का प्रतीक है तथा बैल की सवारी सूर्य का प्रतीक है। हाथी प्रवर्तन व शक्ति का प्रतीक है और बैल दमन व निष्ठुरता का प्रतीक है। दोनों ही करण चलायमान हैं। संक्रांति "राजसी" और आगमन हाथी पर रहने से राजा को जल्दी क्रोध आएगा। राजा किसी का कहना नहीं मानेगा। पुरुष महिलाएं एक दूसरे की तरफ़ अधिक आकर्षित होंगे। लोग अपने स्थान को बार-बार बदलेंगे। लोग दूसरे की संपत्ति को हड़पने हेतु जी जान लगा देंगे। राजा विरोधियों का डट कर सामना करेगा व शत्रुओं को परास्त कर विजय प्राप्त करेगा। विदाई बैल पर होने से विरोधी पक्ष में राज्य की चाहत बरकरार रहेगी। जनता काम कम व आराम अधिक करेगी। जनता कोल्हू के बैल की भांति भी पिसेगी।

 
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