भारत में जिन देवी देवताओं की पूजा- अर्चना, सात्विक व तामसी दोनों विधियों से की जाती है, उनमें कलियुग के जाग्रत देव भैरवनाथ प्रथम गण्य हैं। शिवभक्त और देवी भक्त दोनों के मध्य पवित्र स्थान धारण करने वाले भैरव देव भगवान शंकर के पूर्णावतारों में अंतिम हैं, जिन्हें रुद्रावतार भी कहा जाता है। धर्म-साहित्य में इन्हें सप्तमातृका देवी के भ्राता और सदाशिव का जाग्रत रूप बताया गया है।
क्या है भैरव सिद्ध साधना?
भैरवनाथ को तंत्राचार्य, मंत्राचार्य व यंत्राचार्य के उपनाम से भी जाना जाता है। तंत्र जगत की शक्तिशाली सिद्धियों में भैरव सिद्ध साधनासर्वोपरि व अति महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस सिद्धि का साधक अतुलित बल संपन्न हो, समस्त कार्य पूर्ण कर लेता है। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वाशित्व में अष्ट सिद्धियां हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि श्री भैरव कृपा से साधक अष्ट सिद्धि व नौ निधि प्राप्त कर लेता है।
भैरव जी को क्यों कहा जाता है नृत्याचार्य?
श्री भैरव जी को नृत्याचार्य भी कहा गया है। देवी मां की सर्वप्रचारित आरती में भी इस पंक्ति का उल्लेख है- चौंसठ योगिनी गावत नृत्य करे भैरू...। सचमुच भैरव अति प्रसन्न मुद्रा में आने पर नृत्य करते हैं और संपूर्ण जगत में अपनी लीला रचते रहते हैं। शिव जी भी जब तांडव करते हैं, उनमें मुख्य सहायक के रूप में भैरव जी ही रहते हैं। भारतीय देवों में श्री विष्णु जी को जगत नियंता और संसार का पालनहार बताया गया है। उसी प्रकार भैरवनाथ तंत्र जगत के कृपालु देव व जगत के खेवनहार हैं। श्री बटुक भैरव जी के 108 नामों की माला का प्रथम तत्व है ऊं श्री विष्णवै नम:। यही कारण है कि पुरातन धर्म साहित्य में गया के गजाधर जी को भैरव रूप स्वीकारा गया है।