सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु नानक देव जी के जन्म के उपलक्ष्य में गुरु पर्व मनाया जाता है। सिख गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव की बेहद खुशी और उत्साह से मनाते हैं। गुरु पर्व को गुरु नानक जयंती या गुरु नानक प्रकाशोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। गुरु नानक जी का जन्म 547 साल पहले 15 अप्रैल, 1469 को तलवंडी में हुआ, जिसे अब ननकाना साहिब नाम से जाना जाता है।
इस समय ननकाना साहिब पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में है। गुरु पर्व कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। इस दिन को सिख धर्म के अनुयायी गुरु पर्व के रूप में मनाते हैं। गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु – सभी के गुण समेटे हुए थे।
गुरु नानक जी की शिक्षा
गुरु नानक देव जन्म से ही ज्ञानशील थे होने के कारण जनता की सेवा कर सदाचार अपनाने के लिए प्रेरित किया। नानकदेव जी सर्वेश्वरवादी थे। मूर्तिपूजा को उन्होंने निरर्थक माना।
रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में वे सदैव तीखे रहे। उनका मानना था कि ईश्वर का साक्षात्कार, उनके मतानुसार, बाह्य साधनों से नहीं वरन् आंतरिक साधना से संभव है।
उनके दर्शन में वैराग्य तो है ही साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नजर डाली है। संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं, जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।
इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिए है। मूर्तिपुजा, बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था।
जानिए गुरु नानक के बारे में
इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। बचपन में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी, जिन्हें देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे।
नानक जब कुछ बड़े हुए तो उन्हें पढने के लिए पाठशाला भेजा गया। उनकी सहज बुद्धि बहुत तेज थी. वे कभी-कभी अपने शिक्षको से विचित्र सवाल पूछ लेते जिनका जवाब उनके शिक्षको के पास भी नहीं होता।
गुरु नानक का सोच-विचार में डूबे रहते थे। तब उनके पिता ने उन्हें व्यापार में लगाया। उनके लिए गांव में एक छोटी सी दूकान खुलवा दी। एक दिन पिता ने उन्हें 20 रूपए देकर बाजार से खरा सौदा कर लाने को कहा। नानक ने उन रूपयों से रास्ते में मिले कुछ भूखे साधुओ को भोजन करा दिया और आकर पिता से कहा की वे 'खरा सौदा' कर लाए है।
1507 में गुरु नानक मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पड़े। 1521 तक इन्होंने तीन यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। जीवन के अंतिम दिनों में दान पुण्य, भंडारा आदि करने लगे। 22 सितंबर 1539 को को इनका परलोकवास हुआ।