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Astrology

रत्न के साथ एक उपचार भी है लहसुनिया

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 9 2016 12:43PM | Updated Date: Nov 9 2016 12:43PM
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केतु से संबंधित जन्मदोष -निवृत्ति के लिए लहसुनिया पहनना परम श्रेयस्कर होता है। यदि जन्मकुंडली में केतु शुभ अथवा सौम्य ग्रहों के साथ स्थित हो तो लहसुनिया यानी वैदूर्य धारण करने से लाभ होता है। इसके अलावा अगर किसी को भूतप्रेत बाधा अथवा इनका भय हो तो उसे लहसुनिया जरूर पहनना चाहिए। 
 
नई धारणा : कुछ लब्धप्रतिष्ठ ज्योतिषियों की धारणा है कि केतु एक छाया ग्रह है। उसकी अपनी कोई राशि नहीं है। अत: जब केतु लग्न त्रिकोण अथवा तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में स्थित हो तो उसकी महादशा में लहसुनिया धारण करने से लाभ होता है। यदि जन्मकुंडली में केतु द्वितीय, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तो इसे नहीं धारण करना चाहिए। 
 
प्रयोग : शनिवार को चांदी की अंगूठी में लहसुनिया जड़वाकर विधिपूर्वक उसकी उपासना-जपादि करें। फिर श्रद्धा सहित इसको अर्द्धरात्रि के समय मध्यमा या कनिष्ठा उंगली में धारण करें। इसका वजन तीन रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। इसे धारण करने से पहले ऊं कें केतवे नम: मंत्र का 17 हजार बार जप करना चाहिए।
 
लहसुनिया से रोगोपचार- यदि गर्मी या सूजाक का रोग है तो लहसुनिया की भस्म दूध के साथ सुबह-शाम लें, यह कष्ट दूर हो जाएगा।
 लहसुनिया धारण करने से अजीर्ण, मधुमेह और आमवात आदि का रोग दूर हो जाता है। पीतल और लहसुनिया के भस्म का मिलाकर खाने से नेत्र के लगभग सभी रोग दूर हो जाते हैं।  यदि खूनी दस्त आ रहा हो तो लहसुनिया का भस्म शहद के साथ लें, तुरंत लाभ पहुंचाएगा।
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