19 Apr 2024, 11:18:33 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
Astrology

गीतों में गूंजते लोक संस्कृति के स्वर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 5 2016 11:55PM | Updated Date: Nov 5 2016 11:55PM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

भगवान सूर्य के मानवीय स्वरूप का इतनी सहजता से और इतने कम शब्दों में सटीक चित्रण मगध की लोक संस्कृति की अपनी विशिष्टता है जो छठ के गीतों में घुल कर उभर रही है। दीपावली खत्म होते ही पूरे इलाके में छठ के गीत गूंजने लगे हैं और देव में तो छठ के रंग ही कुछ निराले होते हैं। छठ के गीतों में मगध की स्थानीय संस्कृति कुछ इस कदर रची बसी है कि ये गीत अपने आप में विशिष्ट हो उठे हैं। सबसे आश्चर्य की बात तो ये हैं कि तमाम आधुनिकताओं के बाद भी छठ पूजा के गीतों में अभी भी मौलिकता बची है। इसकी वजह ये है कि लोक भाषा में बुने गए ये गीत लोक मानस में वैदिक मंत्रों जैसी जगह बना चुके हैं जिनमें छेड़छाड़ का साहस कोई न कर सका। छठ पूजा की तैयारियों को लेकर गाए जाने वाले एक अन्य गीत में भी ये तत्व साफ नजर आता है जिसमें आंचल से आंगन बुहारने के प्रतीक के सहारे व्रत की महिमा को रेखांकित किया गया है

अंचरा से अंगना बहारब, छठी मइया अयतन आज
इतना ही नहीं, घाट तक अर्घ्य के लिए ले जाए जाने वाले टोकरे-बहंगी की लचक में भी लोक संस्कृति ने अपने सुर-लय ढूंढ लिए हैं - कांचे ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए पूरे इलाके में जिन घरों में छठ पूजा होनी होती है वहां अहले सुबह से ही छठ के गीत गूंजने लगते हैं। देव में भी आसपास के गांवों की महिलाएं गीत गाती देव पहुंचती हैं और वहां मंदिर की सफाई करती हैं। यह परंपरा कई पीढ़ियों से निभाई जा रही है।
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »