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Astrology

अखंड सौभाग्य प्राप्ति का व्रत ‘करवा चौथ’

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 18 2016 12:26AM | Updated Date: Oct 18 2016 12:26AM
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मुंबई। भारत एक धर्म प्रधान और आस्थावान देश है। यहां साल के सभी दिनों का महत्व होता है तथा साल का हर दिन पवित्र माना जाता है। भारत  में करवा चौथ हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के कई राज्यों में यह पर्व मनाया जाता है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 19 अक्टूबर 2016 को रखा जाएगा। यह पर्व सुहागिन स्त्रियां मनाती हैं। यह व्रत सुबह  सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं  तक सभी नारियां करवा चौथ का व्रत बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ रखती हैं।

निराहार चंद्रोदय की प्रतीक्षा

शास्त्रों के अनुसार पति की दीघार्यु एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचंद्र गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। करवाचौथ में दिन भर उपवास रखकर रात में चंद्रमा को अर्ध्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं, लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चंद्रोदय की प्रतीक्षा कर ती हैं।

सौभाग्यवती स्त्रियों का व्रत

इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय  की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सुहागिन स्त्रियां अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह  व्रत रखती हैं। बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें।

कैसे करें पूजा-अर्चना

देवी-देवताओं की मूर्तियों के अभाव में सुपारी पर नाल बांधकर ईश्वर का स्मरण कर स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।  करवों में लड्डू का नैवेध्य रखकर नैवेध्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन  करें। दिन में करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।

सास से लें आशीर्वाद

सायं काल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्ध्य प्रदान करें। इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को  भोजन कराएं। भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दें। अपनी सासूजी को वस्त्र व विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि वे  जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें। इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।

कब तक रखा जाता है व्रत

यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन किया जाता है। जो  सुहागिन स्त्रियां आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है।  अत: सुहागिन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करती हैं।

सौभाग्य का लें संकल्प

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रात: स्नान करके  अपने पति की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें। उस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं  चंद्रमा का पूजन करें। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त वर्णित सभी देवों को स्थापित करें।

आटे का बनाएं लड्डू

शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर नैवेध्य हेतु लड्डू बनाएं। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस  मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के अथवा तांबे के बने हुए अपनी सामर्थ्य अनुसार 10 अथवा 13 करवे रखें।

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