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Astrology

श्राद्ध पर्व- पूर्वजों के योगदान को श्रद्धांजलि

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 21 2016 10:29AM | Updated Date: Sep 21 2016 10:29AM
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महालया अमावस्या को भारतीय संस्कृति के ‘पूर्वज दिवस’ के रूप में समझा जा सकता है। इस दिन हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं, उनके प्रति अपनी श्रद्धा और आभार व्यक्त करते हैं। अश्विन मास की अमावस्या, जिसके अगले दिन से नवरात्रि की शुरूआत होती है, को महालया अमावस्या (सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या) के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा खास दिन है, जब हम अपने उन तमाम पूर्वजों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं, जिनका हमारे जीवन में किसी न किसी रूप में योगदान रहा है।
 
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस धरती पर इनसान का अस्तित्व करीब दो करोड़ सालों से है। यह एक लंबा समय है। हमसे पहले जो भी हजारों पीढ़ियां इस धरती पर रही हैं, उन्होंने हमें कुछ न कुछ दिया ही है। आज हम जो भी भाषा बोलते हैं, जैसे उठते-बैठते हैं, जैसा हमारा पहनावा है और जिस तरह की हमारी इमारतें हैं- कुल मिला कर आज हम जो कुछ भी जानते हैं, वह सब कुछ हमें हमारी पिछली पीढ़ियों से ही मिला है। जिस वक्त इस धरती पर केवल जानवरों का अस्तित्व था, उस दौर में यहां केवल जीवित रहने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था।  
 
आज हम जो भी हैं, उन तमाम चीजों की बदौलत ही हैं, जो हमारे पूर्वजों ने हमें दी हैं। अब इनसान ने अपने जीवन को सुव्यवस्थित करना शुरू कर दिया, ताकि वह जानवरों की तुलना में थोड़ा बेहतर तरीके से जीवन बिता सके। इनसान ने अपने लिए रहने की जगहें बनानी शुरू कर दीं, इमारतें बनने लगीं, कपड़ों की शुरूआत हो गई। इसी तरह की बहुत सारी नई घटनाएं इस धरती पर हुईं। आग और पहिए की खोज के साथ-साथ अनगिनत नई-नई चीजें होती रहीं और यह विरासत एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को सौंपी जाती रही। हम आज जो भी हैं, वह उन तमाम चीजों की वजह से ही हैं, जो हमें विरासत में मिली हैं।
 
श्राद्ध का महत्व
आज हमारे पास जो कुछ भी है, उसकी हम कद्र नहीं करते, हम उसे बहुत मामूली समझते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि हमसे पहले जो पीढ़ियां इस धरती पर आई हैं, उनके योगदान के बिना कुछ भी संभव न था। पहली बात तो उनके बिना हमारा यहां वजूद ही न होता, दूसरे उनके योगदान के बिना हमारे पास वे सभी चीजें न होतीं, जो आज हैं, इसलिए अपने पूर्वजों के योगदान को नजरअंदाज करने की बजाय इस दिन हमें उन्हें याद करना चाहिए और उनके प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। वैसे तो अपने स्वर्गवासी माता-पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए यह सब एक रस्म के तौर पर किया जाता है।
 
श्राद्ध में क्या दान करें ...
पितृ पक्ष के सोलह दिनों में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म कर पितरों को प्रसन्न किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में दान का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि दान से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और पितृ दोष भी खत्म हो जाते हैं। श्राद्ध में गाय, तिल, भूमि, नमक, घी आदि दान करने की परंपरा है। इन सभी वस्तुओं को दान करने से अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं। दान करते समय भगवान विष्णु से श्राद्धकर्म की शुभ फल की प्रार्थना करना चाहिए।
 
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