रत्न धारण करना एक विज्ञान सम्मत भी है। पहना हुआ रत्न संबंधित ग्रहों की प्रसारित किरणों को ग्रहण करके मनुष्य के शरीर में पहुंचाता है। जन्म पत्रिका में शुभ एवं योगकारक ग्रहों के रत्न पहनने से हमें लाभ होता हे, इसके विपरीत अशुभ एवं अयोगकारक ग्रहों जैसे चौथे, 8वें ,12वें भाव के स्वामी ग्रहों के रत्न पहनने से व्यक्ति को हानि भी पहुंच सकती है।
रत्न धारण करने के आधार हर ज्योतिषी का अपना-अपना होता है। कुछ ज्योतिषी केवल महादशा देखकर महादशा स्वामी का रत्न धारण करने की सलाह देते है, इसे ज्योतिषियों का बड़ा वर्ग स्वीकार नहीं करता, क्योंकि ऐसे में महादशा मारक भाव का स्वामी होगा। यह हानि भी पहुंचा सकता है।
सभी रत्न अपने आप में प्रभावशाली होते हैं। हीरा शुक्र को अनुकूल बनाने के लिए होता है, तो नीलम शनि को। इसी प्रकार माणिक रत्न सूर्य के प्रभाव को कई गुना बड़ा कर उत्तम फलदायी होता है। मोती जहां मन को शांति प्रदान करता ह,ै तो मूंगा उष्णता को प्रदान करता है। इसके पहनने से साहस में वृद्धि होती है।
रत्नों में मुख्यत: नौ ही रत्न ज्यादा पहने जाते हैं। सूर्य के लिए माणिक, चंद्र के लिए मोती, मंगल के लिए मूंगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद, केतु के लिए लहसुनियां।
जन्मपत्रिका के आधार पर व ग्रहों की स्थितिनुसार संयुक्त रत्न पहन कर उत्तम लाभ पाया जा सकता है। संयुक्त रत्न में माणिक-पन्ना, पुखराज-माणिक, मोती-पुखराज, मोती-मूंगा, मूंगा-माणिक, मूंगा-पुखराज, पन्ना-नीलम, नीलम-हीरा, हीरा-पन्ना, माणिक-पुखराज-मूंगा, माणिक-पन्ना, मूंगा भी पहना जा सकता है।