किसी ने पूछा, ध्यान में जब मैं श्वास को देखने लगता हूं, तो श्वास को देखते-देखते मंत्रजप शुरू हो जाता है। तो मंत्रजप करूं कि न करूं? देखिए, मंत्रजप करना एक अलग विधि है, एक अलग साधना है। मंत्रजप को ध्यान के साथ मत जोड़िए। आप कहते हो कि मंत्र जप अपने आप से चलने लग जाता है। असल में ऐसा नहीं होता। आपका मन चलाता है तो ही मंत्रजप चलता है। आप अगर संकल्प करें कि मंत्रजप नहीं करना तो वह होगा ही नहीं। यहीं पर होश काम आता है।
एक अन्य ने प्रश्न पूछा, ह्यमन और मस्तिष्क का आपस में क्या संबंध है? क्या मस्तिष्क ही मन है? यूं समझिए , आपके सिर में इस खोपड़ी के भीतर आपका जो ब्रेन या मस्तिष्क है, वह एक मोबाइल फोन की तरह है। अब आपका मोबाइल फोन अगर चार्ज नहीं है या बिगड़ गया है तो सेटेलाइट की कवरेज तो मिल रही है, लेकिन चूंकि फोन ठीक से काम नहीं कर रहा, इसलिए आप उस फोन के जरिये किसी से संपर्क नहीं कर पाएंगे। मस्तिष्क भी एक मोबाइल फोन की तरह है और मन है सेटेलाइट नेटवर्क की तरह। यूं भी कह सकते हैं कि मन आपके मस्तिष्क की ऊर्जा है, शक्ति है। मस्तिष्क एक यंत्र है।
हमारे मस्तिष्क का स्वस्थ होना, ठीक होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि मन अपना कार्य इसी मस्तिष्क के द्वारा करता है। जिसका मस्तिष्क बिगड़ गया हो, ऐसे आदमी को सत्संग सुनने या ध्यान करने के लिए कहो तो वह नहीं कर पाएगा। बहरे आदमी के भी बाहरी कान तो होते ही हैं, लेकिन अगर कर्ण-इंद्रिय में सुनने की शक्ति ही न हो तो बाहर से कान सही होकर भी सुनाई नहीं पड़ेगा। इसी तरह हमारे मस्तिष्क का सूक्ष्म रूप है मन। मन के साथ जुड़ी हुई है बुद्धि। मन वह है, जो मनन करता है, विचारों को स्वीकार करता है।
इस बुद्धि के द्वारा मन, शरीर और श्वासों को आदेश देता है। तो यह सच है कि बुद्धि के बगैर ध्यान होगा नहीं। फिर यह भी सच है कि खाली बुद्धि से भी ध्यान नहीं होगा। ध्यान करते-करते ऐसे क्षण आ जाते हैं, जब मन भी विचारों से मुक्त होकर ठहर जाता है और बुद्धि भी ठहर जाती है। तब बुद्धि भी कुछ निश्चय या अनिश्चय नहीं करती और मन भी रुक जाता है, पर आप तो जगे हुए हो। आप अपने शुद्ध चैतन्य स्वरूप में जगमगाने लगते हो।