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Astrology

महाशिव रात्रि पर जानिए भगवान से जुड़ीं विशेष मान्यताए

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 4 2016 12:27PM | Updated Date: Mar 6 2016 3:09PM
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सोमवार को महाशिव रात्रि है...यानी भगवान शिव की आराधना का सबसे खास दिन। भगवान शिव को सर्वशक्तिमान भी माना गया है। भगवान शिव को प्रकृति से परे साक्षात अद्वितीय पुरुष के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि वह चराचर जगत है गुरु हैं। शिव रूप रहित जरूर हैं, मगर वे ही वह शक्ति हैं, जो सृष्टि रचना के समय ब्रह्मा का रूप धारण कर लेते हैं और प्रलय के समय साक्षात शिव के रूप में विराजमान हो जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि शिवरात्रि के दिन ही पर ही माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था, इसलिए यह दिन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

शिवरात्रि 7 मार्च
जानिए भगवान से जुड़ीं विशेष मान्यताएं और उनके जवाब

क्यों कहते श्मशान का निवासी?
भगवान शिव को श्मशान का निवासी भी कहा जाता है। भगवान शिव कहते हैं कि संसार में रहते हुए भी किसी से मोह मत रखो और अपने कर्तव्य पूरे करते हुए वैरागी की तरह आचरण करो। मोह-माया से दूर रहो, क्योंकि ये संसार तो नश्वर है।

क्यों है भूत-प्रेत शिव के गण?
भगवान शिव संहार के देवता हैं। इसलिए मर्यादा तोड़ने वालों को दंड भी वे ही देते हैं। जिन्हें अपने पाप कर्मों का फल भोगना बचा रहता है, वे प्रेतयोनि को प्राप्त होते हैं। इसलिए शिव को भूत-प्रेतों का देवता भी कहा जाता है।

शरीर पर भस्म क्यों रमाते हैं?
हमारे धर्म शास्त्रों में जहां सभी देवी-देवताओं को वस्त्र-आभूषणों से सुसज्जित बताया गया है, वहीं भगवान शंकर को भस्म लगाए बताया गया है। भस्म (राख) शिव का प्रमुख वस्त्र भी है। वे पूरे शरीर पर इसे लगाते हैं और साधना में लीन रहते हैं।

क्यों चढ़ाते हैं भांग-धतूरा?
ऐसा मामना जाता है कि भगवान शिव को भांग-धतूरा मुख्य चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं। भांग व धतूरा नशीले पदार्थ हैं। आमजन इनका सेवन नशे के लिए करते हैं। भगवान शिव को भांग-धतूरा चढ़ाने का अर्थ है अपनी बुराइयों को भगवान को समर्पित करना।

क्यों चढ़ाते हैं बिल्व पत्र?
ग्रंथों में बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व बताया है। तीन पत्तों वाला पत्र ही उपयुक्त माना गया है। ये तीन पत्ते चार पुरुषार्थों में से तीन का प्रतीक हैं- धर्म, अर्थ व काम। जब तीनों निस्वार्थ भाव से अर्पित कर देते हैं तो चौथा पुरुषार्थ यानी मोक्ष अपने आप प्राप्त हो जाता है।

जानिए कहां स्थित हैं प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंग
सोमनाथ : सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है।

मल्लिकार्जुन : यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है।

ओंकारेश्वर : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है। जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है।

केदारनाथ : केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है।

भीमाशंकर: भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है।
काशी विश्वनाथ: विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर स्थित है। काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है।

त्र्यंबकेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है।

वैद्यनाथ: यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुर नामक स्थान में स्थित है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद के समीप दौलताबाद के पास स्थित है।

बहुत खास है इस बार की महाशिवरात्रि
महादेव की आराधना का महापर्व शिवरात्रि इस बार सोमवार के दिन शिवयोग धनिष्ठा नक्षत्र में 7 मार्च को है। इस साल महाशिवरात्रि का पर्व भोले बाबा के प्रिय वार यानी सोमवार को मनाया जाएगा। ऐसा योग 4 साल बाद बना है। साथ ही इस दिन यह पर्व पंचग्रही, शिव योग और चांडाल योग में मनाया जाएगा। इस दिन कुंभ राशि में सूर्य, चंद्रमा, बुध, शुक्र व केतु का मिलन होगा। जिससे इसकी मान्यता और भी बढ़ जाती है। इस बारे में ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि कुंभ राशि में पांच ग्रहों का यह योग महाशिवरात्रि पर चारों प्रहर की पूजा करने वाले शिव भक्तों को स्थिर लक्ष्मी व अरोग्यता प्रदान करेगा।

शिव शब्द की उत्पत्ति
शिव शब्द की उत्पत्ति वंश कांतौ धातु से हुई है। इसका अर्थ होता है- सबको चाहने वाला और जिसे सब चाहते हैं।

इसलिए कहलाए नीलकंठ
देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

ये हैं भगवान शिव के मंत्र
भगवान शिव की उपासना में पंचाक्षर नम: शिवाय और महामृत्युंज विशेष प्रसिद्ध है। भगवान शिव की पार्थिव पूजा का विशेष महत्व है। वेद में शिव का नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अंतर्यामी हैं। शिव योगी के रूप में जाने जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में होती है। भक्त पूजन में शिवजी की आरती की जाती है।

महाशिवरात्रि को अवतरण
सृष्टि के आदिकाल में महाशिवरात्रि को मध्यरात्रि में शिव का ब्रह्म से रुद्र रूप में अवतरण हुआ। इसी दिन प्रलय के समय प्रदोष स्थिति में शिव ने तांडव करते हुए संपूर्ण ब्रह्मांड अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर दिया। इसलिए महाशिवरात्रि या काल रात्रि पर्व के रूप में मनाने की प्रथा का प्रचलन है। महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है।

ये हैं शिव के 19 अवतार
वीरभद्र अवतार: भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था।
पिप्पलाद अवतार: मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका।

नंदी अवतार: भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है।

भैरव अवतार: शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।

अश्वत्थामा: महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे।

शरभावतार: भगवान शंकर के शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था।

गृहपति अवतार: भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। कथानुसार नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्मा ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था। 

ऋषि दुवार्सा: भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुवार्सा का अवतार भी प्रमुख है।
हनुमान: भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था।

वृषभ अवतार: भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था।

यतिनाथ अवतार: भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े।

कृष्णदर्शन अवतार: भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है। इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है।

अवधूत अवतार: भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था।

भिक्षुवर्य अवतार: भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर का भिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है।

सुरेश्वर अवतार: भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है।

किरात अवतार: किरात अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी।

सुनटनर्तक अवतार: पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था।

ब्रह्मचारी अवतार: दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे।

यक्ष अवतार: यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था।

आभूषण और उनका अर्थ
भस्म: भगवान शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से करते हैं। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है और शरीर नश्वरता का प्रतीक है।

वृषभ: भगवान का वाहन वृषभ है। वह हमेशा साथ रहता है। वृषभ का अर्थ है धर्म। महादेव इस चार पैर वाले बैल की सवारी करते हैं, अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनके अधीन हैं।

त्रिशूल: शिव के हाथ में त्रिशूल एक मारक शस्त्र के रूप में है। त्रिशूल सृष्टि में मानव भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।

डमरू: शिव के हाथ में एक डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्म रूप है।

जटाएं: भगवान शिव को अंतरिक्ष का देवता भी कहा जाता है। अंत: आकाश उनकी जटा का स्वरूप है और जटाएं वायुमंडल का प्रतीक हैं।

चंद्रमा: चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन भोला, निर्मल, पवित्र और सशक्त है। उनका विवेक सदा जाग्रत रहता है। शिव का चंद्रमा उज्ज्वल है।

सर्पों का हार: सर्प जैसा कू्रर और हिंसक जीव महाकाल के अधीन है। सर्प तमोगुणी और संहारक वृत्ति का जीव है, जिसे शिव ने अपने अधीन कर रखा है।

मुंडमाला: शिव के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि उन्होंने मृत्यु को अपने वश में कर रखा है।

त्रिनेत्र: शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव के ये तीन नेत्र तीन गुणों- सत्व, रज और तम...तीन कालों- भूत, वर्तमान और भविष्य...और तीन लोकों- स्वर्ग, मृत्यु और पाताल के प्रतीक हैं।

इस तरह होगी चार प्रहर में पूजा
निशीथ काल: आधी रात 12 बजकर 13 मिनट से लेकर 1 बजकर 02 मिनट तक
पहला प्रहर: शाम 6 बजकर 27 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 32 मिनट तक।
दूसरा प्रहर: रात 9 बजकर 33 मिनट से लेकर 12 बजकर 37 मिनट तक
तीसरा प्रहर: आधी रात 12 बजकर 38 मिनट से 3 बजकर 42 मिनट तक।
चौथा प्रहर: आधी रात के बाद 3 बजकर 43 मिनट से लेकर सुबह 6 बजकर 47 तक।

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