सूर्य से निरन्तर निकलने वाली विकिरणों को मुख्यतया तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
> पराबैंगनी किरणें
> वर्णक्रम प्रकाश
> रक्ताभ किरणें
इनमें से पराबैंगनी किरणें शीतल होती है और इन में विषाणुओं को नष्ट करने की रासायनिक क्षमता होती है। वर्णक्रम प्रकाश में इन्द्रधनुष के सात रंगो की रश्मियां होती हैं, जिनका वर्ण क्रमश: बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल होता है। इन सात रंगो की रश्मियों का प्रभाव अलग-अलग होता है। मुख्य रुप से बैंगनी, नीले और आसमानी रंग की रश्मियों में मृदुता या शीतलता होती है और ज्यों-ज्यों ये लाल रश्मियों की ओर बढ़ते हैं, त्यों-त्यों शीतलता घटती और उष्णता बढ़ती चली जाती है। नारंगी और लाल किरणों में उष्णता अधिक होती है। इसी प्रकार रक्ताभ किरणों में उष्णता सर्वाधिक होती है। प्रात: काल सूर्य की किरणों में पराबैंगनी किरणें अधिक और रक्ताभ किरणें कम होती है। इसलिए प्रात: सूर्य की किरणों में गर्मी कम होती है। इस समय सूर्य की किरणों से शरीर को पौष्टिक विटामिन जैसे तत्व मिलते हैं और पराबैंगनी किरणें वातावरण में विद्यमान विषाणुओं का नाश कर देती है। तात्पर्य यह है कि जैसे हम प्रात:काल झाडू-पोंछा कर अपने घर को साफ करते हैं उसी प्रकार प्रात:काल सूर्य की पराबैंगनी किरणें रात्रि के प्रदूषण एवं विषाणुओं को नष्ट कर भू-मण्डल के वातावरण को शुद्ध एवं साफ बना देती है। इसके बाद धीरे-धीरे दिन चढ़ता है, धूप में रक्ताभ (इनफ्रारेड) किरणों की मात्रा बढ़ती जाती है, जिससे धूप में गरमी और तेजी बढ़ जाती है। दिन के तीसरे प्रहर में सूर्य की धूप में स्थित रक्ताभ किरणें इतनी गर्मी छोड़ती है, जो अवांछित और असहनीय होती है। इसलिए उससे बचाव करना आवश्यक हो जाता है। पृथ्वी और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का मूल कारण सूर्य है। यह न केवल पृथ्वी को अपनी कक्षा में घूमाता है अपितु यह हमारे जीवन की गतिविधियों का सूभी सूत्रधार है। प्राणिमात्र की दिनचर्या का प्रारम्भ सूर्योदय से और उपसंहार सूर्यास्त के साथ होता है।
यदि सूर्य न होता तो न पृथ्वी होती और न ही जीवन होता। इसीलिए सूर्य इस जगत की आत्मा है। सूर्य का व्यास 8,65,680 मील है। इसकी पृष्ठीय परिधि से इसकी ज्वालाएं 200 से 300 मील प्रति सेकेण्ड की गति से लगातार ऊपर की ओर लपकती है। इसका बिम्ब प्रति सैकेण्ड 3.61026 वाॅट शक्ति विश्व को देता है, जिसका दो सौ करोड़वां भाग पृथ्वी ग्रहण करती है। इससे आप सौर ऊर्जा की शक्ति का अनुमान कर सकते हैं। सूर्य की ऊर्जा, जिसमें ऊष्मा एवं प्रकाश अतर्निहित है हमारे तन, मन एवं जीवन के न केवल शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करती है अपितु यह हमारी दिनचर्या को संचलित और नियंत्रित भी करती है। इसलिए वास्तुशास्त्र के आचार्यो ने भवन में सौर ऊर्जा के उपयोग के लिए अनेक महत्वपूर्ण नियमें का प्रतिपादन किया है।
डॉ. सुभाष चन्द्र मिश्र, ज्योतिष विभागाध्यक्ष
सोमैया संस्कृत विद्यापीठ