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Astrology

परंपरा और विश्वास का त्योहार करवा चौथ

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 29 2015 1:09AM | Updated Date: Oct 29 2015 1:09AM
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करवा चौथ की तैयारी में महिलाएं जुटी हुई हैं। 30 अक्टूबर को दिन भर निर्जला व्रत रखकर महिलाएं अखण्ड सौभाग्य व पति के साथ सदैव मधुर संबंध की कामना करेंगी।

करवा चौथ के लिए बाजार सज चुके हैं और खरीदारी के लिए महिलाएं पहुंच रही हैं जिसके कारण बाजार में रौनक नजर आ रही है। सुहाग की सामग्री के साथ ही पूजन सामग्री की जमकर खरीदारी कर रही हैं।

करवा चौथ का इंतजार महिलाओं को साल भर रहता है और इस व्रत के माध्यम से पति के दीर्घायु के साथ ही सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। सोलह शृंगार कर सुहागिन महिलाएं पति की आरती करते हुए उन्हीं के हाथों से व्रत का पारण करती हैं।

ज्योतिषाचार्य पंडित महेश्वर प्रसाद उपाध्याय ने बताया कि इस व्रत पर पूजन की विशेष विधि है। दिन भर महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। शाम के वक्त चंद्रमा की पूजा कर पति की आरती का भी विधान शास्त्रों में है।

कहते हैं कि चंद्रमा की रोशनी में मौजूद अमृत से पति को लंबी उम्र मिलती है। गणेश, भगवान शिव व गौरी की पूजा से सुखमय जीवन, सुखद परिवार व पति के कष्ट का विनाश होता है।

ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद डॉ.उद्धव श्याम केसरी ने बताया कि पुराणों के अनुसार कार्तिक माह के चौथ को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है।

मिट्टी के करवे से अटूट धार छोड़ सुहागिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा करती हैं। पूरे दिन निर्जला व्रती पत्नी को जल पिला कर पति व्रत का पारण कराते हैं।

करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है। एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे।

यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अघ्र्य देकर ही खा सकती है।

चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढिय़ों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है।

दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ।

करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है।

उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से \'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अत: उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।

इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोडऩा। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है।

इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है।

पूजा का सामान भी खरीद रहीं
करवा चौथ के व्रत में मिट्टी के करवा व छलनी का विशेष महत्व होता है। इसलिए महिलाएं करवा के साथ ही पूजन में अर्पित करने के लिए शृंगार सामग्री खरीद रही हैं।16 शृंगार की सामग्री के साथ ही मोवा व मिष्ठान की खरीदारी भी की जा रही है।


साडि़यों की कर रही हैं खरीदारी
करवा चौथ के व्रत के लिए बाजार में तरह-तरह की डिजाइनर साडि़यां सुहागिन महिलाएं खरीद रही हैं। कपड़ा बाजार, शनिचरी, बुधवारी सहित शहर के बाजारों व शॉपिंग कॉम्पलेक्स में जमकर साडि़यों की खरीदारी कर रही है।

व्यापारी रमेश पंजवानी ने बताया कि करवा चौथ के लिए महिलाएं खास तौर पर गहरे रंग की साडि़या खरीद रही है। इसमें लाल, गुलाबी, नारंगी जैसे रंगों की डिमांड अधिक है।

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