24 Apr 2024, 23:57:55 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
Astrology

वास्तुशास्त्र में प्राकृतिक शक्तियों का उपयोग

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 10 2015 2:42PM | Updated Date: Apr 10 2015 2:42PM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

प्रकृति शक्तियों का अक्षुण्ण भंडार है। इसकी शक्तियां अनन्त हैं, जिनके माध्यम से सृष्टि, विकास एवं प्रलय की प्रक्रिया चलती रहती है। इन अनन्त शक्तियों में से वास्तुशास्त्र मुख्य रुप से प्रकृति की तीन शक्तियों का उपयोग करता है 
 
1. गुरुत्व शक्ति 
2. चुम्बकीय शक्ति 
3. सौर ऊर्जा 
 
यह शास्त्र प्रकृति की अनेक शक्तियों को नकारता नहीं है, किन्तु इसकी दृष्टि भवन निर्माण और उनमें रहने वाले प्राणियों तक ही सीमित है। अत: यह भूमि एवं उसके आसपास में विद्यमान उक्त तीन शक्तियों पर ही विचार करता है। गुरुत्व शक्तिजिस प्रकार पृथ्वी में शब्द, स्पर्श, रुप, रस एवं गन्ध ये पांच गुण हैं, और इसका विशेष गुण गन्ध है। उसी प्रकार पृथ्वी में दो प्रकार की शक्तियां हैं, चुम्बकीय शक्ति और गुरुत्व शक्ति।
 
गुरुत्व शक्ति या गुरुत्वाकर्षण का अर्थ है कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है, जिससे वह अपने ऊपर आकाश में स्थित वजनी चीजों को अपनी ओर खींच लेती है। इस सिद्धान्त का सार एक शब्द द्वारा अभिव्यक्त वास्तुशास्त्र में प्राकृतिक शक्तियों का उपयोग होता है, जिसका नाम है गुरुत्व। आवास के प्रकार आचार्यों ने आवास के लिए पांच प्रकार के मकानों का वर्णन किया है। 
> घासफूस से बनी झोपड़ी या पर्णकुटी।
> लकड़ी से बने छोटे घर।
> मिट्टी, छप्पर या खपरैल से बने कच्चे घर।
> ईट, चूना या सीमेन्ट से बने पक्के घर।
>पत्थर से बने भवन। 
 
 
चुम्बकीय शक्ति-
पूरा ब्रह्माण्ड एक चुम्बकीय क्षेत्र है, और ब्रह्माण्ड के सभी ग्रह, नक्षत्र और तारों का आपस में चुम्बकीय तरंगो से पारस्परिक सम्बन्ध बना हुआ है। चुम्बकीय शक्ति प्रकृति की वह शक्ति है, जिससे वह पूरे ब्रह्माण्ड को संचालित और नियंत्रित करती है। सौर परिवार के अन्य ग्रहों के समान पृथ्वी भी एक बहुत बड़ी चुम्बक है। पिछले 460 करोड़ वर्षों से अपनी कक्षा और मुख्य रुप से अपने अक्ष पर लगातार घूमने से पृथ्वी ने अपनी चुम्बकीय शक्ति को उन्नत और विकसित किया है। 
 
 
चुम्बक के दो ध्रुव होते हैं। 
1. उत्तर-ध्रुव 
2. दक्षिण-ध्रुव
 
इसी प्रकार पृथ्वी के भी दो ध्रुव होते हैं, उत्तरी-ध्रुव और दक्षिणी-ध्रुव। चुम्बक का जो सिरा उत्तर की ओर होता है, वह उसका उत्तर-ध्रुव और उसका जो सिरा दक्षिण की ओर होता है वह दक्षिण-ध्रुव कहलाता है, किन्तु पृथ्वी का चुम्बकीय उत्तर-ध्रुव दक्षिण गोल में और चुम्बकीय दक्षिण-ध्रुव उत्तर गोल में होता है। इसीलिए चुम्बक के टुकड़े को किसी चीज से बांधकर लटका दिया जाय तो, वह याम्योत्तर रेखा में रहता है और उसके सिरे उत्तर-दक्षिण दिशाओं को दिखलाते हैं।
 

 

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »