आज शारदीय नवरात्र का चौथा दिन है। इस दिन दुर्गा के नौ रुपों में से चतुर्थ रुप देवी कूष्मांडा की पूजा होती है। देवी कुष्मांडा को देवी भागवत् पुराण में आदिशक्ति के रुप में बताया गया है। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है। यहां निवास करने की शक्ति और क्षमता सिर्फ देवी कूष्मांडा में ही है।
दरअसल मां कुष्मांडा देवी दुर्गा का ही स्वरूप हैं। सूर्य लोक में माता का निवास माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार कूष्मांडा की दीव्य हंसी से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ती हुई है। मां अंधकार में प्रकाशस्वरूप उनका यह केंद्र है। माता सिंह वाहिनी और अष्टभुजा वाली हैं। देवी अपने हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल - पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा आदि विराजित हैं। ऊं ह्लीं कुष्मांडायै जगत्प्रसूत्यै मंत्र से माता प्रसन्न होती हैं।
माता को भी गाय के गोबर के उपले, घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंक का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा से हवन कर प्रसन्न किया जाता है। माता का स्वरूप बेहद दीव्य है। इनके अर्चन से शोकों का नाश होता है। माता की आराधना से आयु, यश, बल और आरोग्य मिलता है।
देवी अपनी आराधना से जल्द प्रसन्न होती हैं। माता को भगवान विष्णु की शकितयां भी प्राप्त हैं। माना जाता है कि माता की हंसी से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ती हुई है। माना जाता है कि माता की हंसी बेहद दीव्य है। कूष्मांड शब्द का अर्थ ही ब्रह्मांड की शक्ति है। उन्हें सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री देवी कहते हैं।
दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की अच्छी करह से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को अनहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए। अगर इनकी पूजा सच्चें मन से की जाए, तो आपको मां जरुर हर क्षेत्र में सफलता देगी।
माता कूष्माण्डा की पूजा उसी तरह की जाती है जैसे कि देवी ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें विराजमान देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं।