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Astrology

नवरात्र का दूसरा दिन- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा आज

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 14 2015 11:33AM | Updated Date: Oct 14 2015 11:33AM
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माँ ब्रह्मचारिणी उपासना मंत्र: दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।


आज शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन है। दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के उपासक और भक्त को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाली मां ब्रहचारिणी मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप है।

माता ब्रह्मचारिणी का स्वरुप बहुत ही सात्विक और भव्य है। यहां ब्रम्ह का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।

मां के नाम में समाविष्ट ब्रह्म शब्द के पीछे भी गूढ़ संदेश है। वे त्याग और तपस्या की देवी हैं, इसलिए उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, वे सभी वेद-शास्त्रों और ज्ञान की ज्ञाता हैं। उनका स्वरूप अत्यंत भव्य और तेजयुक्त है। तेज व आभा चाहने वाले लोगों को इस दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए।

मां ब्रह्मचारिणी के धवल वस्त्र हैं। उनके दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला एवं बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित हैं।   माता के इस स्वरूप के बारे में शास्त्रों की मान्यता है कि भगवती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ।
 

मां ब्रहचारिणी की कथा:-
ब्रम्हचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।

पूर्व जन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रम्हचारिणी नाम से अभिहित किया गया।

एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए।

कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रघ्चारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी।

तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।  इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रहचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।

ध्यान - वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्घकृत शेखराम्। जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥ गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम। धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥ परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन। पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

 

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