शारदीय नवरात्रि का आज चौथा दिन है। नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। मां कुष्मांडा संसार को अनेक कष्टों और विपदाओं से मुक्ति प्रदान करती हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जब इस संसार में सिर्फ अंधकार था तब देवी कूष्मांडा ने अपने ईश्वरीय हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी।
यही वजह है कि देवी को सृष्टि के रचनाकार के रूप में भी जाना जाता है। इसी के चलते इन्हें 'आदिस्वरूपा' या 'आदिशक्ति' कहा जाता है। नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा के पूजन का विशेष महत्व है। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त सच्चे मन से नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा करता है उसे आयु, यश और बल की प्राप्ति होती है।
सृष्टि की रचना के बाद उसमें प्रकाश भी इन्ही के कारण आया है। इसलिए ही ये सूर्यलोक में निवास करती हैं। माता कुष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुए का भोग लगाकर किसी भी दुर्गा मंदिर में ब्राह्मणों को इसका प्रसाद देना चाहिए।
इससे माता की कृपा स्वरूप उनके भक्तों को ज्ञान की प्राप्ति होती है, बुद्धि और कौशल का विकास होता है। देवी को लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चूड़ी भी अर्पित करना चाहिए। देवी योग-ध्यान की देवी भी हैं। देवी का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का भी है। उदराग्नि को शांत करती हैं। पूजन के बाद देवी के मंत्र का जाप करें।
कूष्माडा देवी मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे ॥
अर्थ - जो कलश मदिरा से भरा हुआ है, रुधिर अर्थात् रक्त से लथपथ है। ऐसे कलश को मां भगवती ने अपने दोनों कर कमलों में धारण किया है। ऐसी मां कूष्माण्डा मुझे शुभता अर्थात् कल्याण प्रदान करें।
मां कूष्मांडा की पूजा विधि
- नवरात्रि के चौथे दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान कर हरे रंग के वस्त्र धारण करें।
- मां की फोटो या मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और उन्हें तिलक लगाएं।
- अब देवी को हरी इलायची, सौंफ और कुम्हड़े का भोग लगाएं।
- अब ‘ऊं कूष्मांडा देव्यै नम:' मंत्र का 108 बार जाप करें।
- मां कूष्मांडा की आरती उतारें और किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें।
- इसके बाद स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।
मां कूष्मांडा का भोग
मान्यता है कि श्रद्धा भाव से मां कूष्मांडा को जो भी अर्पित किया जाए उसे वो प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेती हैं। लेकिन मां कूष्मांडा को मालपुए का भोग अतिप्रिय है।