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Astrology

ग्रहण के साये में इस वर्ष गुरु पूर्णिमा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 16 2019 1:54AM | Updated Date: Jul 16 2019 1:54AM
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इस वर्ष  आषाढ़  पूर्णिमा  अर्थात गुरु पूर्णिमा  की मध्यरात्रि जुलाई 16 तथा  17 के मध्य  खगोल विज्ञान की ऐतिहासिक घटना चंद्रग्रहण के रूप में घटने जा रही है। वर्ष 2019 का यह पहला चन्द्र ग्रहण होगा। वर्ष 2018 में भी 17 वर्षों के पश्चात गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण की स्थिति बनी थी। 149 वर्ष पूर्व 12 जुलाई 1870 को गुरु पूर्णिमा के दिन ही इस वर्ष जैसी ग्रह स्थितियों में ग्रहण पड़ा था। शनि एवं केतु की युति तथा चंद्रमा का संचरण इनके साथ था। वर्ष 2019 में कुल 3 ग्रहण का योग बन रहा है जिसमें से एक ग्रहण भारत में दृश्य नहीं था, दूसरा ग्रहण खंडग्रास चंद्रग्रहण के रूप में गुरु पूर्णिमा के दिन तथा तीसरा ग्रहण कंकण सूर्यग्रहण के रूप में 26 दिसंबर को भारत में दिखाई देगा। गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण होने से आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इस पर्व का महत्व कई गुना अधिक हो गया है।
खण्डग्रास होगा चन्द्रग्रहण
आषाढ़ी पूर्णिमा दिन मंगलवार को 16 एवं 17 जुलाई 2019 की मध्यरात्रि को लगभग समस्त भारत में आरंभ से लेकर समाप्ति तक चंद्र ग्रहण खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 की गुरु पूर्णिमा भी चंद्र ग्रहण से ग्रसित थी तथा उस दिन शताब्दी का सर्वाधिक बड़ा चंद्र ग्रहण पड़ा था। तात्कालिक एवं वर्तमान ग्रह स्थितियों के साथ गुरु पूर्णिमा का चंद्र ग्रहण इसके पूर्व 1870 में देखा गया था।
ग्रहण का पर्व काल
ग्रहण प्रारंभ होने से लेकर ग्रहण समाप्ति तक के समय को ग्रहण का पर्व काल कहते हैं। विंध्य सहित समूचे भारत क्षेत्र मैं जब 16 जुलाई 2019 की रात्रि 1:31 पर चंद्र ग्रहण का प्रारंभ होगा उस समय तक संपूर्ण भारतवर्ष में चंद्र उदय हो चुका होगा। विंध्याचल सहित भारत के सभी क्षेत्रों में 16 जुलाई को सायंकाल 6:00 बजे से लेकर 7:45 के मध्य चंद्र उदय हो जाएगा। भारत के सभी नगरों में इस खंडग्रास चंद्रग्रहण का प्रारंभ मध्य तथा मोक्ष देखा जा सकेगा। 
इस ग्रहण का स्पर्श एवं मोक्ष समय भारतीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार निम्न प्रकार से होगा-
 ग्रहण स्पर्श 16 17 जुलाई की मध्यरात्रि 1:31 पर।
 ग्रहण का मध्य 17 जुलाई प्रातः काल 3:01 मिनट पर।
 ग्रहण का मोक्ष या समाप्ति 17 जुलाई प्रातः काल 4:30 पर।
 ग्रहण की कुल अवधि 2 घंटे 59 मिनट।(पर्व काल)।
 ग्रहण का परम ग्रास मान 0। 658 अर्थात 65%
 चंद्र मालीण्य प्रारंभ 16 जुलाई की रात्रि 12:12 मिनट।
 चंद्रकांति निर्मल 17 जुलाई प्रातः 5:49 मिनट।
 ग्रहण का संपूर्ण पर्व काल 16 जुलाई की रात्रि 1:31 से 04:30 तक रहेगा।
 चंद्र ग्रहण का सूतक 16 जुलाई को (भारतीय स्टैंडर्ड टाइम ) 04:31 बजे,सायंकाल से प्रारंभ हो जाएगा।
ग्रहण काल में क्या करें?
ग्रहण के सूतक और ग्रहण काल में स्नान दान जप पाठ मंत्र सिद्धि तीर्थ स्थान एवं हवन आदि करना शास्त्रों के अनुसार शुभ माना गया है। सूतक एवं ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श करना, खाना पीना, निद्रा, मैथुन आदि वर्जित कहे गए हैं। धर्म सिंधु की मान्यता के अनुसार ग्रहण के प्रारंभ में स्नान मध्य में देव पूजन तथा ग्रहण मोक्ष के समय पुनः स्नान तथा दान किया जाना चाहिए।
ग्रहण का सूतक लगने से पूर्व ही घर की खाद्य सामग्री में तुलसी दल अथवा कुशा रख देना श्रेयस्कर होता है। ग्रहण की किरणों का विकिरण इस प्रकार से खाद्य सामग्री को प्रभावित नहीं करता है। सूखे खाद्य पदार्थों में कुशा आदि डालने की आवश्यकता नहीं है।
ग्रहण के राशिगत प्रभाव
16-17  जुलाई की मध्यरात्रि को पड़ने वाला चंद्रग्रहण उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के प्रथम चरण में स्पर्श करते हुए उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के दिव्तीय चरण में समाप्त होगा। यह ग्रहण धनु व मकर राशि को वेधित करेगा। इसलिए इस खग्रास चंद्रग्रहण की अवधि में उत्तराषाढ़ा  नक्षत्र वाले तथा धनु एवम मकर राशि के लोग विशेष सावधानी बरतें तथा ग्रहण को कदापि ना देखें।
यह ग्रहण मेष राशि के लिए कष्टदायक ,वृषभ राशि के लिए चिंता दाई, मिथुन राशि के लिए सामान्य ,कर्क राशि के लिए शुभाशुभ फल दाई , सिंह राशि के लिए चिंता कारक, कन्या राशि के लिए व्यय कारक, तुला राशि के लिए शुभ फलदाई, वृश्चिक राशि के लिए धन लाभ, मकर राशि के लिए कष्टप्रद, कुंभ राशि के लिए धन हानि एवं मीन राशि के लिए उन्नति कारक होगा। ग्रहण के अनिष्ट प्रभाव से बचने के लिए विशेष रूप से चंद्र राहु अथवा अपने राशि स्वामी के मंत्रों का जाप एवं दान करना चाहिए।
ग्रहण काल मे सावधानियां
ग्रहण के अनिष्ट निवारण हेतु ग्रहण के स्पर्श काल में स्नान ग्रहण में मंत्र जाप अथवा देव पूजन तथा ग्रहण समाप्ति पर पुनः स्नान करने का विधान है। ग्रहण काल की अवधि में बाल धोने एवं हजामत करने से बचना चाहिए।
ग्रहण के बाद का दान अमोघ फलदाई माना गया है। मुद्रा वस्त्र अनाज बर्तन तथा धातुओं आदि के यथासंभव दान से ग्रहण के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
ग्रहण काल में अल्ट्रावायलेट किरणों से भोजन के तत्व विषाक्त हो जाते हैं अतः भोजन एवं जल में कुशा अथवा तुलसी डाल कर रखना चाहिए।
आंखों के रेटिना पर अल्ट्रावायलेट किरणें घातक असर डाल सकती हैं अतः ग्रहण को नंगी आंखों से ना देखें। 
ग्रहण वाले दिन शुभ कार्यों का निषेध माना गया है विशेषता है विद्या अध्ययन प्रारंभ करना सर्वाधिक दोषपूर्ण है।
ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर शुभ नहीं होता अतः गर्भवती महिलाओं को ग्रहण काल की अवधि में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। गर्भवती महिलाएं पेट पर गाय के गोबर का पतला लेप लगा कर रहे।
समस्त प्रकार की समस्याओं के समाधान एवं रोग निवृत्ति हेतु ग्रहण की अवधि में महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाना उचित होता है।
ज्योतिर्विद राजेश साहनी
 
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