मां दुर्गा की पूजा के नौ दिन यानी नवरात्र आगाज हो चुका है। 6 अप्रैल को पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा होती है। लोग विधि विधान से घर में पूजा करते हैं, कलश स्थापना करते हैं और नौ दिन व्रत रखते है। व्रत के दौरान अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। मां दुर्गा की पूजा के तरह नवरात्र व्रत का काफी महत्व है। ऐसे माना जाता है कि मां अपने बच्चों की हर मनोकामना पूरी करती हैं, हर दुख हर लेती हैं और भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं। नवरात्र मां दुर्गा की पूजा-अर्चना और आराधना के दिन होते हैं।
जो लोग मां के व्रत रखते हैं, वह वाकई भाग्यशाली हैं। लेकिन अगर आप किसी परिस्थितिवश मां दुर्गा के व्रत नहीं रह पा रहे हैं तो एक मंत्र है जो आप पर मां की कृपा बरसाने में मददगार हो सकता है। इस व्रत का रोजाना जाप आपके लिए फलदायक होगा। ज्योतिष के जानकारों का मानना है कि मां का ये मंत्र आपकी झोली खुशियों से भर देगा।
ये हैं मंत्र-
मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ- जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ- जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभि-धीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ- जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
मंत्र- या देवी सर्वभूतेषू कान्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ- जो देवी सभी प्राणियों में तेज, दिव्यज्योति, उर्जा रूप में विद्यमान हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।
मंत्र- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
मंत्र- हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली हो। शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे नारायणी, तुम्हें नमस्कार है।
मनोकामना पूर्ति के लिए पढ़ें ये मंत्र
अंत में माता से क्षमा याचना करना चाहिए। साथ ही एक मंत्र सभी मनोकामनाएं पूर्ति हेतु अवश्य पढ़ें -
देहि सौभाग्य मारोग्यम देहीमें परमम सुखम
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।