लंदन में एक निर्धन बालक रहता था। उसे पेट भरने के लिए कई तरह के काम करने पड़ते थे। इसलिए वह नियमित स्कूल नहीं जा पाता था। उसकी स्कूली शिक्षा टुकड़ों में होती रही। लेकिन समय मिलने पर वह किताबें लेकर बैठ जाता और उन्हें पढ़ने की कोशिश करता।
कुछ न समझ आने पर भी वह पढ़ता रहता। वह अपने जैसे दो लड़कों के साथ एक दड़बेनुमा कमरे में रहता था, जहां वे दोनों बालक काम से फुर्सत पाकर मनोरंजन में लग जाते, वहीं वह किताबों में लगा रहता। कई बार वे उसे छेड़ते हुए कहते, 'अरे काम से थक हार कर व्यक्ति का मन करता है कि वह घूमे-फिरे, अच्छा खाना खाए लेकिन तुम तो किताब उठाकर बैठ जाते हो।' एक दिन उनमें से एक लड़का व्यंग्य करते हुए बोला, 'लगता है यह इन किताबों के माध्यम से ही इतिहास रचेगा।'
दोनों की बातें सुनकर वह बालक मुस्करा कर चुप हो जाता और फिर पढ़ने में लग जाता। धीरे-धीरे उसने लिखना भी शुरू कर दिया। उसे अपने लिखने पर बिल्कुल भरोसा न था।
वह इन्हीं दोनों लड़कों को अपनी रचनाएं दिखाता। वे लड़के कभी उसकी रचना की तारीफ करते तो कभी मजाक उड़ाते। उसने अपनी कहानियों को छपने के लिए भेजना शुरू किया। उसकी कहानियां अस्वीकृत होती रहीं, लेकिन उसने हिम्मत न हारी और एक दिन वह हुआ जो उसकी कल्पना से परे था। उसकी एक कहानी अखबार में छप गई। इससे उसका आत्मविश्वास मजबूत हुआ। फिर उसकी कहानियां छपती रहीं और उसे संपादकों और पाठकों से प्रशंसा व सम्मान मिलता रहा। आज उसी बालक को दुनिया चार्ल्स डिकेंस के नाम से जानती है।