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Astrology

कलश स्थापना से बढ़ती है सुख-समृद्धि

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 22 2016 8:55PM | Updated Date: Sep 22 2016 8:55PM
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किसी भी पूजन या शुभ कार्य में कलश की स्थापना को बड़ा ही शुभ माना जाता है। कलश पूजन सुख, समृद्धि व सफलता की संभावना को बढ़ाता है। इसका कारण यह होता है कि कलश स्थापना विशेष मंत्रों एवं विधियों से किया जाता है।

हिंदू रीति-रिवाज से कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों एवं तीर्थों का वास हो जाता है। देवताओं एवं ग्रह नक्षत्रों के शुभ प्रभाव से अनुष्ठान संपन्न होता है और अनुष्ठान कर्ता को पूजन एवं शुभ कार्य का पूर्ण लाभ मिलता है।

जाने कलश स्थापना विधि-
कलश
देव पूजन में लिया जाने वाला कलश तांबे या पीतल धातु से बना हुआ होना शुभ कहा गया है। मिट्टी का कलश भी श्रेष्ठ कहा गया है। कलश में डाली जाने वाली वस्तुएं इसे अधिक पवित्र बना देती हैं।
पंच पल्लव
पीपल, आम, गूलर, जामुन, बड़ के पत्ते पांचों पंचपल्लव कहे जाते है। कलश के मुख को पंचपल्लव से सजाया जाता है। जिसके पीछे कारण है ये पत्तें वंश को बढ़ाते हैं।
पंचरत्न
सोना, चांदी, पन्ना, मूंगा और मोती ये पंचरत्न कहे गए हैं। वेदों में कहा गया है पंचपल्लवों से कलश सुशोभित होता है और पंचरत्नों से श्रीमंत बनता है।
जल
जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। जल शुद्ध तत्व है। जिसे देव पूजन कार्य में शामिल किए जाने से देवता आकर्षित होकर पूजन स्थल की ओर चले आते हैं। जल से भरे कलश पर वरुण देव आकर विराजमान होते हैं।
नारियल
नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। नारियल को कलश पर स्थापित करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि नारियल का मुख हमारी ओर हो।
सात नदियों का पानी
गंगा, गोदावरी, यमुना, सिंधु, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा नदी का पानी पूजा के कलश में डाला जाता है। अगर सात नदियों के जल की व्यवस्था नहीं हो तो केवल गंगा का जल का ही उपयोग करें।
सुपारी
यदि हम जल में सुपारी डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देती हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है।
पान
पान की बेल को नागबेल भी कहते हैं। नागबेल को भूलोक और ब्रह्मलोक को जोड़ने वाली कड़ी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही इसे सात्विक भी कहा गया है।
 

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