ग्वालियर। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के रूप में पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है। भारतवर्ष में कई विद्वान गुरू हुए हैं किन्तु महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी। सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरूओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है।
गुरू पूर्णिमा महत्व-
हिन्दू धर्म में गुरू पूर्णिमा पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन गुरू के प्रति विशेष सम्मान प्रकट किया जाता है। यही कारण है आज के दिन मंदिरों और साधू-संतों के आश्रमों में विशेष पूजा-अनुष्ठान किए जाते हैं। गुरू को ब्रह्मा कहा गया है। क्योंकि गुरू ही अपने शिष्य को नया जन्म देता है। गुरू ही साक्षात महादेव है क्योकि वह अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करता है। इसलिए इस दिन प्रातः काल स्नानादि करके शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए। उन्हें ऊंचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर तथा धन भेंट करना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरू का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गुरू के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है।
गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
उल्लेखनीय है कि गुरू पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्म हुआ था। मान्यता है कि उन्होंने चारों वेदों को लिपिबद्ध किया था। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उनके सम्मान में गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। गुरू पूर्णिमा के अवसर दिन मथुरा के ब्रज स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने की परंपरा भी है, जिसमें भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं।