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Astrology

वास्तुदोष है तो संकट ही संकट

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 22 2015 12:42PM | Updated Date: Apr 22 2015 12:42PM
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जैसा कि हम जानते हैं, सौरमण्डल में यह पृथ्वी एक छोटा-सा पिण्ड है। सौरमण्डल में सभी ग्रह परस्पर एक-दूसरे से प्रभावित हैं। पृथ्वी तो सूर्य और चन्द्र के बिना अंधकार युक्त हो जाती है। पृथ्वी, सूर्य और चन्द्र के प्रकाश के प्रभाव के बिना अपूर्ण सी लगती है। पृथ्वी पर निवास करने वाले मनुष्य और पशु-पक्षी इनके प्रभाव से कैसे वंचित रह सकते हैं।
 
इस प्रकार अन्य ग्रहों एवं आकाश, वायु, अग्नि, जल का प्रभाव तो नियमित रुप से पड़ता ही है। वास्तुशास्त्र के सिद्धान्त के परिपालन से चुम्बकीय प्रवाह, दिशाजन्य प्रभाव, वायु-प्रभाव एवं गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से मनुष्य के जीवन में सुख-शान्ति आती है। साथ ही आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी इन पांचो तत्वों के समानुपातिक सम्मिश्रण से उत्पन्न शक्ति के प्रभाव से मनुष्य को उत्तम स्वास्थ्य, धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होति है।
 
स्वर-विज्ञान में प्राणवायु को आत्मा कहा गया है। यही प्राणवायु जब शरीर से निकल जाती है तो, शरीर निष्प्राण हो जाती है। सूर्य को भूलोक के सभी जीवजन्तुओं और पेड़-पौधों के जीवन का आधार माना जाता है। सूर्य पूर्व में उदित होता है और पश्चिम में अस्त हो जाता है। इसलिए भवन निर्माण में दिशाओं का प्रभाव सर्वप्रमुख माना जाता है। मनुष्य भवन इस प्रकार बनाए कि वह प्रकृति के अनुरूप हो तो प्राकृतिक प्रदूषण की समस्या नहीं के बराबर रहती है और मनुष्य प्राकृतिक ऊर्जा स्त्रोतों को भवन के माध्यम से अपने कल्याण के लिए उपयोग कर पाता है। उपरिलिखित पांचो तत्वों के प्रबन्धन को ध्यान में रखते हुए गृहनिर्माण कर जीवन को सुखी एवं सम्पन्न बनाया जा सकता है।
 
इन पांचो तत्वों का विवेचन पृथक-पृथक निम्नलिखित है-
 
आकाश - आकाश पांच महाभूतों में से एक तत्व है। इसका विषय शब्द (ध्वनि) को माना जाता है। आकाश असीम और अनन्त है। आकाश द्वारा उपहारस्वरुप प्रदत्त ध्वनि ने मनुष्य के जीवन को अत्यन्त समृद्ध बना दिया है। जिस भवन की दीवार की ऊंचाई अधिक होती है, उस भवन के अन्दर आकाश का भाग यथेष्ठ मिलता है। दीवार यदि कम ऊंची होगी तो व्यक्ति को घुटन महसूस होगी। इस तरह से व्यक्ति के शरीर में आकाश तत्व का अभाव हो जाएगा। इसलिए वास्तुशास्त्र में आकाश के अनुपात को अधिक महत्व दिया गया है।
 
अत: भवननिर्माण में एकशाला, द्विशाला, त्रिशाला, चतु:शाला, भवन की ऊंचाई, बहुमंजिला भवन, खुली जगह, बरामदा, द्वार, खिड़की, झरोखे, ब्रह्मस्थान एवं आंगन का विचार किया जाता है। जिससे आकाश तत्व का भवन में सही-सही उपयोग किया जा सके।
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