25 Apr 2024, 22:10:57 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

गुस्सा भी भावना का एक प्रकार है। लेकिन जब यह भावना व्यवहार और आदत में बदल जाती है, तो आप के साथ-साथ दूसरों पर इसका गंभीर असर पड़ने लगता है। इसके लिए जरूरी यह है कि अपने गुस्से की सही वजह को पहचाना जाए और उन पर नियंत्रण रखा जाए। गुस्सा एक नेचुरल इमोशन है, जो चिड़चिड़ाहट, निराशा और मनमाफिक काम न होने की स्थितियों में सामने आता है।
 
किसी हल्की झुंझलाहट से लेकर किसी स्थिति पर होने आने वाले तेज रिएक्शन को गुस्से के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है। चूंकि यह एक नेचुरल इमोशन है इसलिए इससे पूरी तरह निजात पाना संभव नहीं है। गुस्सा आना बिल्कुल नॉर्मल है, लेकिन अगर इसकी वजह से कोई शख्स खुद को या किसी और को नुकसान पहुंचाने लगे, तो इसके नुकसान से बचने के लिए इसे काबू में करना बेहतर है।
 
 गुस्से की मैकेनिजम
जब किसी शख्स को गुस्सा आने वाला होता है, तो उसके हाथ-पैरों में खून का बहाव तेज हो जाता है, दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं, एड्रनिलिन हार्मोन तेजी से रिलीज होता है और बॉडी को इस बात के लिए तैयार कर देता है कि वह कोई ताकत से भरा एक्शन ले। इसके बाद गुस्सा व्यक्ति को धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में लेने लगता है, जिसकी वजह से शरीर में कुछ और केमिकल रिलीज होते हैं, जो कुछ पलों के लिए बॉडी को एनर्जी से भर देते हैं।
 
दूसरी तरफ नर्वस सिस्टम में कॉर्टिसोल समेत कुछ और केमिकल निकलते हैं। ये केमिकल शरीर और दिमाग को कुछ पलों के लिए नहीं, बल्कि लंबे समय तक प्रभावित करते हैं। ये दिमाग को उत्तेजित अवस्था में रखते हैं, जिससे दिमाग में विचारों का प्रवाह बेचैनी के साथ और बेहद तेज स्पीड से होने लगता है।
 
विज्ञानी राय के मुताबिक
आंकड़ों के मुताबिक 2010 में 37 फीसदी हत्याओं के मामलों में लोग ऐसे ही चंद क्षणों के गुस्से का शिकार हो गए। जबकि 2009 में अचानक भड़के गुस्से से मरने वालों की संख्या 35 थी। क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि देश में लोगों का पारा बहुत तेजी से गर्म हो रहा है। हर साल 30 से 32 फीसदी हत्याएं अचानक भड़के गुस्से का नतीजा होती हैं। अगर गुस्से को विज्ञान की नजर से देखें तो किसी व्यक्ति के खुश रहने या नाराज होने की स्थिति के लिए उसके दिमाग में मौजूद सेरोटोनिन का स्तर जिम्मेदार होता है।
 
लंबे समय तक अगर कोई तनाव में रहता है, खुश रहने की उसे वजह ढूंढे नहीं मिलतीं तो ऐसे लोगों के दिमाग में सेरोटोनिन का स्तर 50 फीसदी तक घट जाता है यानी कुदरती तौर पर एक सामान्य इंसान के दिमाग में सेरोटोनिन का जो स्तर मौजूद रहना चाहिए, उससे यह 50 फीसदी कम हो जाता है।
 
खुद का बस नहीं
मनोचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश कहते हैं, तुरंत गुस्से का अधिक स्तर आमतौर पर उन लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है, जो सामान्य स्थिति में खुश नहीं रहते, जिन्हें खुश रहने की आदत नहीं होती, जिनमें खुश रहने की प्रवृत्ति नहीं होती। ऐसे लोग गुस्सा होने के लिए बस बहाने की तलाश में रहते हैं।
 
जरा-सी बात कोई उन्हें मिली नहीं कि दहक उठते हैं। दरअसल जो लोग ज्यादा समय तक तनाव में रहते हैं या जिन लोगों की जिंदगी में खुश रहने के अवसर कम होते हैं, ऐसे लोगों की मस्तिष्क की कोशकिाएं गुस्से के लिए अनुकूल स्थिति में ढली होती हैं। ये जरा-सी बात पर इतनी जल्दी और इतने बड़े स्तर पर सक्रिय हो जाती हैं कि सामान्य व्यक्ति अंदाजा ही नहीं लगा पाता कि आखिर सामने वाले को इस तरह गुस्सा क्यों आ रहा है? जब गुस्से का नशा दिलोदिमाग पर हावी हो जाता है तो आदमी वहशी दरिंदा हो जाता है।
 
उस पल वह चाहकर भी ऐसा कुछ नहीं सोच पाता, जिसमें तर्क  हो, जो सकारात्मक बात हो। वह उस समय परिणाम की कतई परवाह नहीं करता। गुस्से की किसी भी हद को पार कर जाना चाहता है।
 
तनाव की पराकाष्ठा
सवाल है, इसका कारण क्या है? आखिर हम इस कदर क्यों उबल रहे हैं? इस तमाम गुस्से का कारण है हमारी लाइफस्टाइल में बढ़ती व्यस्तता, तनाव, निराशा, उम्मीदों से कम होती सफलता की दर और क्षमताओं से कहीं ज्यादा तय किए गए टारगेट। ये सब मिलकर हमें तोड़ रहे हैं। शहरी लोग दिन-ब-दिन तनाव की पराकाष्ठा की तरफ बढ़ रहे हैं। उस पर सड़कों पर लगने वाला जाम और मौसम की अनियमितता आग में घी का काम करती है।
 
लोग उबल पड़ते हैं। जरा-सी बात में कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं। हर गुजरते साल रोष में होश खोने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। यह इजाफा बताता है कि किस तरह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे कामकाज हावी हो गए हैं।
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