-रवीश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
आचार संहिता के लागू हुए कितने दिन हो गए हैं, मगर अभी तक गैर भाजपा दलों के नेताओं का एक भी स्टिंग नहीं आया है। दिल्ली विधानसभा चुनाव, बिहार विधानसभा चुनाव, बंगाल विधान सभा चुनावों के दौरान कितने स्टिंग आते थे। पूरा चुनाव सूखा-सूखा सा लग रहा है। किसी स्टिंग में कोई पैसा लेकर टिकट मांग रहा होता, टिकट दिला रहा होता या फिर रैलियां करा रहा होता है। स्टिंग होते हैं तो लगता है कि गैर भाजपा दल के नेता कितने भ्रष्ट हैं। बदले जाने की जरूरत है। समां बंधता है। पिछले तीन चुनावों, दिल्ली, बिहार और बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान हुए स्टिंग का अध्ययन करना चाहिए। पता चलेगा कि ज्यादातर स्टिंग गैर भाजपा दलों के खिलाफ हुए। ज्यादातर स्टिंग में भाजपा ही सबसे आक्रामक और मुखर रही, यह बताने में कि विरोधी दल के लोग पैसे की राजनीति करते हैं। भाजपा की रैलियों में तो लोग अपने खर्चे पर जाते हैं। आप देखेंगे कि कहीं से ज्ञात-अज्ञात वेबसाइट, चैनल या पत्रकार उभर आते हैं और सीडी लेकर छा जाते हैं। सारे एंकर उन्हें लपकते हुए खुद को बीजेपी की तरफ कर लेते हैं और फिर हमला शुरू कर देते हैं।
रोज इंतजार रहता है कि पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, स्टिंग कब आएगा। कम से कम आम आदमी पार्टी के नेता या वालेंटियर का स्टिंग तो हो ही जाना चाहिए था। बहुजन समाज पार्टी के नेता या कार्यकर्ताओं के खिलाफ भी स्टिंग नहीं हुआ। आखिर चैनल कर क्या रहे हैं। कहीं स्टिंग की एडिटिंग तो नहीं चल रही है। 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान तो लगा कि स्टिंग ही चुनाव लड़ रहा है। उस स्टिंग में कथित रूप से कैश में चंदा लेने की बात करने वाली मोहतरमा तो बीजेपी में ही चली गईं। कहीं वहीं से कैशलेस का आइडिया न आया हो! कुमार विश्वास, मनोज कुमार, दिनेश मोहनिया, इरफान उल्लाह खान, मुकेश हूडा, प्रकाश और भावना गौड़ के खिलाफ भी स्टिंग हुए। चैनलों पर खूब उत्तेजक बहस हुई। कुमार विश्वास का लंबा-लंबा इंटरव्यू हुआ। उन पर हमले हुए। बाद में उन्हीं चैनलों पर कुमार विश्वास कवियों की कविता पेश करने लगे। ये कुमार विश्वास की अब तक की सबसे बड़ी जीत है। इसे कहते हैं प्यार और जुबान से जीत हासिल करना। स्टिंग करने वाला भी कितना शर्मिंदा होगा। कुमार के साथ-साथ इस स्टिंग में आए मनोज कुमार और दिनेश मोहंगिया भी चुनाव जीत गए।
लगता है कि चुनाव के दौरान स्टिंग कुछ दलों के लिए शगुन का काम करते हैं। अभी पता चला है कि मनीष सिसौदिया के खिलाफ सीबीआई ने प्राथमिक जांच शुरू कर दी है। व्यापमं नाम का घोटाला भी मनीष सिसोदिया ने किया था। व्यापमं के आरोप में सिसोदिया को अब तक जेल क्यों नहीं भेजा गया है, इस बात पर शिवराज सिंह चौहान को इस्तीफा दे देना चाहिए था। हमारी राजनीति अजीब दौर से गुजर रही है। इन स्टिंग को लेकर बहस के नाम पर कितना समय बर्बाद हुआ। यही प्रवक्ता अगर किसी उम्मीदवार के लिए पोस्टर लगा रहे होते तो पार्टी को ज्यादा लाभ होता। काम न धाम शाल ओढ़कर टीवी में बैठ गए। पार्टी को महान बनाने। हर दल के प्रवक्ताओं का यही हाल है। दिनभर सोते रहो। शाम को सज कर टीवी पर बैठ जाओ। अक्टूबर 2015 में बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान स्टिंग की भी यही प्रवृत्ति थी। हर स्टिंग में खलनायक गैर भाजपा दल था और उसमें न होने के कारण स्टूडियो में भाजपा के प्रवक्ता नायक बनकर प्रवचन कर रहे थे। बिहार में पहले चरण के कुछ घंटे पहले एक स्टिंग आया। नीतीश कुमार मंत्रिमंडल के मंत्री अवधेश कुमार कुशवाहा पैसे लेते हुए दिखे। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और नीतीश कुमार ने उनका टिकट भी काट दिया। उस दौरान टीवी चैनलों ने बहस का मजमा लगा दिया। अवधेश कुमार कुशवाह मामले की क्या स्थिति है इसे लेकर बीजेपी भी भूल गई होगी। 12 अक्टूबर को अवधेश कुमार कुशवाह का स्टिंग आता है। 15 अक्टूबर 2015 को तीसरे चरण के दो दिन पहले बीजेपी एक वीडियो जारी करती है। जिसमें जनता दल यूनाइटेड का कोई विधायक दो लाख रुपए लेता हुआ दिखाई देता है। स्टिंग वीडियो में सत्यदेव कुशवाहा पैसे ले रहे हैं और बिजनेस मैन को सरकार बनने पर मदद का आश्वासन दे रहे हैं। याद कीजिए बीजेपी ने खूब बयान दिए होंगे। एंकरों ने तो प्रवक्ता विहीन जदयू जैसी पार्टी की तो धज्जी उड़ा कर रख दी होगी। क्या आपको मालूम है कि इस स्टिंग में मामले में क्या हुआ। इन दिनों बीजेपी और जदयू के करीब आने की चर्चा उठती रहती है, कभी बीजेपी का कोई नेता मिले तो सीडी की याद दिला दीजिएगा।
बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सदस्यों के खिलाफ स्टिंग आता है। जहानाबाद से उम्मीदवार मुंद्रिका सिंह यादव, मखदूमपुर से सूबेदार दास और घोसी से राजद उम्मीदवार कृष्णा नंदन वर्मा के भाई को कथित रूप से रिश्वत लेते दिखाया जाता है। जाहिर है इस स्टिंग को लेकर भी खूब हंगामा हुआ। डिबेट भी जमकर हुआ।
बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान दो साल पुराना स्टिंग कहीं से ऊपर हो जाता है। तृणमूल के छह सांसद, तीन मंत्री और दो विधायक किसी कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए कथित रूप से रिश्वत लेते दिखाए जाते हैं। बीजेपी ने ममता बनर्जी से इस्तीफे की मांग की थी। तृणमूल ने नारद स्टिंग को फर्जी बताया था। आज तक पता नहीं चला कि उस वीडियो का क्या हुआ। मगर रातों को चैनलों पर एंकरों के नथुने कितने फूले होंगे, जब वे इस रत्तीभर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त न करने के किसी अज्ञात प्रोपेगंडा को दर्शकों के दिलोदिमाग में उतार रहे होंगे। दर्शक भी कमाल के होते हैं। एंकरों की करतूत को चुपचाप शीशे में उतारते रहते हैं।
चुनावी स्टिंग एक हथियार है। इन तीन चुनावों के स्टिंग यह भी बताते हैं कि जनता इस खेल को समझ जाती है। एंकरों और प्रवक्ताओं की नैतिकताएं जब एक दल के प्रवक्ताओं की जुबान से मेल खाने लगती हैं तो जनता समझ जाती है। तीनों राज्यों में गैर भाजपा दलों की जीत होती है। इसलिए हैरानी हो रही है कि अभी तक किसी ने भाजपा विरोधी दलों के खिलाफ स्टिंग नहीं किया? उत्तराखंड तो स्टिंग के लिए सबसे बेहतर राज्य है। अभी तक हरीश रावत पैसे लेते या देते क्यों नहीं दिखे हैं। चुनाव आयोग को एक राय देना चाहता हूं कि चुनाव के दौरान वे किसी भी प्रकार के स्टिंग पर रोक लगा दें। फालतू बहस में समय बर्बाद होता है और जनता के असली मुद्दों को कम जगह मिलती है। बहस का नतीजा कुछ नहीं निकलता मगर प्रवक्ताओं के घटिया शॉल की डिजाइन देखकर लोग लोकल मार्केट से खरीद लाते हैं। इससे राजनीति का पहनावा बिगड़ रहा है।