-वीना नागपाल
महाराष्ट्र का बीड़ जिला बहुत बदनाम रहा है। वहां कन्या शिशु भ्रूण हत्या का एक लंबा समय मौजूद है। बीड़ के बारे में कहा जाता रहा है कि यहां कन्या शिशु भ्रूण हत्याएं इतनी हुर्इं कि लड़कों व लड़कियों के बीच लिंग अनुपात इतना असंतुलित हो गया कि सभी को जिनमें प्रशासन और सामाजिक संस्थाएं भी शामिल थीं बहुत चिंता होने लगी। आखिर प्रकृति के भी अपने नियम व कायदे होते हैं। उसमें बहुत अधिक हस्तक्षेप करने से गंभीर दुष्परिणाम निकलते ही हैं। पर्यावरण के साथ भी हमने यही किया और अब कन्याओं के अस्तित्व के पीछे हम अपने क्षुद्र स्वार्थ के कारण पड़ गए। यह कितना अनुचित है इसका पता अब उस सर्वेक्षण से लगता है जिसमें यह सामने आया है कि अब कई कुंआरे युवक गांवों और कस्बों में हैं जिनका विवाह नहीं हो रहा और वह आगे अपना परिवार नहीं बना पा रहे हैं।
इस स्थिति को कुछ कम करने के लिए बीड़ जिले के एक हेअर कटिंग सेलून चलाने वाले महोदय अशोक पवार ने अपना सहयोग देने का दृढ़ निश्चय किया। यह परिवर्तन उसमें तब आया जब उसके घर में बेटी ने जन्म लिया। अशोक पहले दूसरों के कटिंग सेलून में काम करता था, पर, बेटी के घर में आने के बाद उसके भाग्य ने ऐसी करवट ली कि उसका अपना छोटा सा सेलून हो गया और उसके व्यवहार के कारण उसके सेलून पर भीड़ बढ़ने लगी, वह बहुत व्यस्त हो गया। उसे अपने भाग्य पर बहुत आश्चर्य होने लगा। उसने अपनी बेटी का प्यारा सा नाम रखा-श्रावणी! उसे महसूस हो रहा था और उसके अंतर्मन से भी आवाज गूंजती थी कि श्रावणी के आने से ही उसका भाग्य चमक उठा है और तब उसने यह निश्चय किया कि वह अन्यों को भी बताएगा कि बेटियां अभिशाप नहीं बल्कि ईश्वरीय वरदान होती हैं। तब उसने अपने ‘‘ईश्वरी जेंट्स पार्लर के बाहर यह बोर्ड लगाया कि जिनके घर में बेटियां जन्म लेंगी वह उस परिवार के पुरुषों के छह महीने तक मुफ्त में बाल काटेगा और शेव बनाएगा। यह परिवारों के लिए बड़ी बात थी। अशोक कहता है कि लोग बेटी का जन्म इस क्षेत्र में इसलिए नहीं चाहते हैं, क्योंकि वह उसे आर्थिक बोझ मानते हैं। उनके व्यय को इस प्रकार कम करके शायद मैं यह संदेश दे सकूं कि बेटी का जन्म होने दें, क्योंकि वह भी आपका भाग्य बदल सकती हैं। हो सकता है कि बेटी बचाओ के इस अभियान में अपना यह साधारण सा योगदान दे पाऊं, क्योंकि मैं पुरुषों के बाल काटते समय और शेव बनाते समय निरंतर उनसे बेटी के जन्म का स्वागत करने की बात करता रहता हूं।
वाह! ‘ईश्वरी जेन्ट्स पार्लर’ के स्वामी अशोकजी वाह! इस तरह यदि हर स्तर पर सोचने लगें और अपना योगदान व सहयोग देने की कोशिश करें तो हमारी बेटियों का जन्म भी होगा और वह बच भी जाएंगी। अशोक यह भी कहते हैं कि हमारे यहां देवी का पूजन किया जाता है, पर घर में आई देवी स्वरूप बेटी का हम स्वागत नहीं करते। उसके जन्म को नहीं चाहते और खुश तो होते ही नहीं हैं। इस तरह की सोच को बदलना होगा, यह तभी संभव है जो जब हम सब उसके लिए कोशिश करेंगे।
जेन्ट्स पार्लर के इस मालिक अशोक का नाम इतना चर्चित हो गया कि आस-पास के गांवों और कस्बों के पुरुष उनके सेलून में आने लगे और वह भी अब अपने परिवार में बेटी होने और उसके जन्म की बात की नक्की करते हैं तभी अशोक उनके बालों में कैंची चलाता है और उनके चेहरों पर शेविंग क्रीम का झाग बनाता है। अशोक का प्रयास हम चाहे सागर में बंूद के समान समझ लें पर, इतना तो तय लगता है कि अशोक जैसे व्यक्तियों के सहयोग और उनके प्रयास से बेटियां जन्म लें, चहकें, खिलखिलाएं और पढ़-लिखकर आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बनें। इस शुभ कार्य में हवन में जितनी आहुतियां डाली जाएं उतनी कम हैं।
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